सोमवार, 1 जनवरी 2024

आपने, आखिरी बार कब अपने दोस्त से बात की थी…!!

सीधा सवाल…आपने अपने मित्र से अंतिम बार कब 'बात' की थी…ध्यान रखिए बात,चैट नहीं, न ही इमोजी के जरिए होने वाली बात और न ही सिर्फ काम वाली बात। ईमानदारी से, दिल पर हाथ रखकर सोचिए कि कब मारी थी दोस्त के संग खुलकर गप। दूसरा सवाल…क्या आपने इस बार अपने दोस्त/दोस्तों को जन्मदिन पर शुभकामनाएं कैसे दी थीं मिलकर/फोन से/मैसेज के जरिए/सोशल मीडिया के बने बनाए शुभकामना संदेश से या फिर इमोजी के जरिए? ये सवाल इसलिए पूछने पड़ रहे हैं क्योंकि मोबाइल फोन और उस पर सवार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के झांसे में आकर हम बात से ज्यादा चैट करने लगे हैं और बातूनी से गूंगे होने लगे हैं। हम दिनभर अंगुलियां और अंगूठा तो मोबाइल के स्क्रीन पर चलाते रहते हैं लेकिन मुंह का इस्तेमाल कम करते जा रहे हैं। यहां तक कि साथ बैठे दोस्त भी परस्पर बातचीत से ज्यादा ग्रुप चैटिंग में मशगूल रहना ज्यादा पसंद करते हैं और हमारी बातचीत काम/मतलब की बात तक सिमट गई है।

जैसे, घर-घर में बनने वाली मिठाइयों की जगह कुछ मीठा हो जाए मार्का चॉकलेट या बाज़ार में बिकने वाली मिठाइयों ने ले ली है,उसी तरह हमारे शुभकामना संदेश भी बाज़ार के हवाले होते जा रहे हैं। पहले हम जन्मदिन/त्यौहारों/खुशी के मौकों पर परस्पर मिलकर और फोन करके बधाई देते थे लेकिन अब सोशल मीडिया में उपलब्ध स्थाई संदेश से काम चला लेते हैं। केक, फूल और मिठाई की तस्वीरें हमारी व्यक्तिगत शुभकामनाओं का स्थान तेजी से घेरती जा रही हैं। हम ठहाका लगाने वाले दौर से इशारों में बात करने वाले इमोजी में बदलते जा रहे हैं। आमने सामने बैठकर गप का स्थान झुकी गर्दन और मचलती अंगुलियों ने ले लिया है। हम घंटों चैट कर सकते हैं लेकिन अपने दोस्तों/परिवार के साथ फोन पर काम की बात करने से ज्यादा समय हमारे पास नहीं होता।
अगर हम इसी तरह कम बोलते रहे और इमोजी के सहारे चैट करते रहे तो जैसे पहले भाषाएं/बोलियां गुम हुई हैं, वैसे ही शब्द गुम होने लगेंगे और हम परस्पर संपर्क में इंसान से ज्यादा रोबोट जैसे होते जाएंगे। कहा जाता है न कि बात से बात निकलती है लेकिन जब हम बात ही नहीं करेंगे तो बात निकलेगी कहां से? घर,ऑफिस, बाजार, ट्रेन या किसी भी अन्य सार्वजनिक जगह पर अब यह सामान्य हो गया है कि कई लोग एक साथ बैठकर भी वर्चुअल दुनिया में रहेंगे। दादी-नानी के पास बैठकर कहानियां सुनना तो गुजरे जमाने की बात हो गई,अब तो नानी से लेकर नाती तक सब रील का हिस्सा हैं। कितना कुछ खोते जा रहे हैं हम इस करिश्माई मशीन के कारण…हालांकि, इसमें मोबाइल की कोई गलती नहीं है बल्कि वह तो सतत संपर्क के अवसर बढ़ा रहा है,पर हम उसे ही मौलिक या वास्तविक संपर्क की बाधा बनाते जा रहे हैं…दोस्तों, फोन उठाइए..खूब बतियाइये,बिना काम,बिना मतलब…मिलने के मौके निकालिए, मिलकर बधाई संदेश दीजिए…आख़िर इंसानी फितरत भी कुछ होती है न…वरना हम में और मशीनों में क्या फर्क रह जाएगा!! (19 Oct 2023)

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