सोमवार, 1 जनवरी 2024

भोपाल की रावण मंडी: जहां नहीं बिक पाना अभिशाप है…!!

यह भोपाल की रावण गली है। हालांकि भोपाल के लोग इसे बांसखेड़ी के नाम से जानते हैं लेकिन क़रीब महीने भर से यह रावण की गढ़ी है, लंका है…अच्छी खासी चौड़ी सड़क को रावण और उसके भाइयों ने घेर कर गली बना दिया है और आप यहां से बिना रावण निहारे गुजर भी नहीं सकते। यहां एक नहीं, अनेक रावण हैं,सैकड़ों रावण हैं और उतने ही उनके बंधु बांधव। यहां हर किस्म और आकार प्रकार के रावण हैं मतलब दो फुटिया रावण से लेकर बीस और पचास फुटिया तक…सौ फुटिया भी मिल सकते हैं लेकिन उसके लिए पहले से आर्डर देना होगा। छोटे रावण इस सड़क पर मुस्तैदी से सीना तान कर खड़े रहते हैं जबकि बड़े रावण लेटे रहते हैं…शायद,उनका बड़ापन (बड़प्पन नहीं) ही उन्हें लेटे रहने पर मजबूर कर देता है।
भोपाल यदा-कदा आने वाले लोगों की जानकारी के लिए, बांसखेडी से किसी गांव की कल्पना मत कर लीजिए। यह भोपाल के सबसे पॉश इलाकों को जोड़ने वाली अहम सड़क हैं। यहां से अरेरा कालोनी जैसे महंगे घरों वाले लोग भी गुजरते हैं तो प्रशासनिक अकादमी में प्रशासन का ककहरा सीखने और सिखाने वाले छोटे-बड़े अफसर भी। बांसखेड़ी के सामने स्थित भारतीय खान पान प्रबंधन संस्थान दिन-रात अपने लज़ीज़ और प्रयोगधर्मी व्यंजनों की भीनी भीनी खुशबू से यहां से आने जाने वालों को ललचाते रहता है तो सामने की सड़क ग्यारह सौ क्वार्टर और आजकल यहां तेजी से बढ़ रहे इडली डोसे और सांभर के ढेलों तक खींच ले जाती है। यही सड़क कैंपियन स्कूल और कभी उसके सामने लगने वाली लोकप्रिय खाऊ गली यानि चौपाटी तक ले जाती है तो मनीषा मार्केट और शाहपुरा झील तक भी छोड़ती है। यहीं से बंसल अस्पताल जाते हैं और थोड़ा सा आगे जाकर कोलार के कोलाहल घुलमिल जाते हैं ।
जब हम रावण के इस मोहल्ले से गुजरते हैं तो कोई हमें घूरता दिखता है तो कोई मुस्कराकर हमारी हंसी उड़ाता…जो भी हो,रंग बिरंगे कपड़ों में सजे रावण और उसके परिजन हमारा ध्यान खींचते ज़रूर हैं। जलने के कुछ घंटे पहले उनका आकर्षण और भी बढ़ जाता है क्योंकि वे जानते हैं कि उनका पुनर्जन्म तय है और अगले साल फिर उन्हें इसी जगह पर और भी आकर्षक रंग रूप में फिर अवतरित होना है। जितनी आकर्षक सज्जा उतनी अच्छी पूछ परख यानि कीमत। हमें रावण भी सुंदर चाहिए,उसका आकार भी बड़ा चाहिए और उसके अंदर आतिशबाजी भी आकर्षक और विदेशी चाहिए…शायद,रावण के जरिए हम अपनी कमियों को ढकने का प्रदर्शन करते हैं और फिर उसे जलाकर इन कमियों की भरपाई नहीं कर पाने का रोष व्यक्त करते हैं। हमारे अंदर भी राम-रावण द्वंद चलता रहता है। कभी हम बाहर से राम और मन से रावण होते हैं तो कभी इसके उलट…इसलिए, बांसखेड़ी से गुजरते समय रावण और उसका कुनबा हमें देखकर हंसता है। उसे अपनी नियति पता है और हमारी भ्रमित मनोदशा भी..शायद वह इसी का पूरा आनंद लेता है।
अब रावण और उसके कुनबे का परिवहन शुरू हो गया है। वे लेटकर,बैठकर और खड़े रहकर अपनी नियति की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। प्रदेश की इस सबसे बड़ी रावण मंडी में जिनकी बुकिंग पहले हो गई थी,वे रावण भरपूर कीमत में अट्टाहस करते हुए वाहनों में चढ़ रहे हैं। वहीं, अभी मोलभाव में उलझे पुतले हर पल अपनी कीमत घटा रहे हैं। समय पर अपना मूल्य निर्धारित नहीं कर पाने का खामियाजा तो सभी को भुगतना पड़ता है। जैसे जैसे जलने का समय क़रीब आ रहा है,पुतलों की छटपटाहट बढ़ रही है और क़ीमत घट रही है। यदि इस बार जलने से चूक गए तो किसी टोकनी, सूपा का हिस्सा बनकर जीवित रह जाएंगे और फिर अगले साल रावण कुनबे से दूर हो जाएंगे…कोई भी अपनी नियति से दूर नहीं होना चाहता और नियति को पाने के लिए विचारधारा से लेकर रीति/नीति और संस्कृति को त्यागने में भी पीछे नहीं रहता…शायद, इसी लिए चुनाव के दौरान असंतोष और दल बदल आम बात हो गई है। (24 Oct 2023)
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