बिटिया की कविता मम्मी पापा के नाम..!!

अब इसे मम्मी-पापा से एक हजार किमी से ज्यादा की दूरी कहें या फिर पत्रकार पिता और लेखक मां के संस्कार का असर...बिटिया,पहले ब्लॉगर बनी और अब उसने लिखी पहली कविता (काव्य अभिव्यक्ति  या आधुनिक कविता कहना ज्यादा उचित है)...हो सकता है कविता की कसौटी पर यह कच्ची हो लेकिन भावनाओं के लिहाज से पूरी पक्की है । कविता के शब्द जहां आत्मविश्वास का अहसास कराते हैं, वहीं दिल से आंखों की दूरी को पलभर में पाट देते हैं। हम इसे "बिटिया की कविता मम्मी-पापा के नाम" जैसा अच्छा सा शीर्षक भी दे सकते हैं...पढ़िए, तकनीकी से ज्यादा भाव से,शब्द नहीं मनोभाव से और  कुल मिलाकर ♥️ से।

'अब मैं जीना सीख गई हूं'

मम्मी-पापा,

आपकी ये नन्हीं सी जान

अब सचमुच बड़ी हो गई है।

अब जिंदगी जीना

 सीख गई हूं मैं।


 दुनिया न

 बहुत बुरी है..!

 बचपन से

 यही बताते थे न...?

सच कहते हो आप

 ये दुनिया

 सच में बहुत बुरी है,

 पर मैंने भी न,

 दुनिया से डील करना

 सीख ही लिया है।


 अब न ,अँधेरे से

 डर नहीं लगता

 रात को अचानक

 नींद खुलने पर अब

 सहम नहीं

 जाती हूं मैं।

 मैं सीख गई हूं,

 हर वो तौर-तरीका

 जो आप सिखाते थे 

 

पर,पता है क्या आपको...?

शहर चाहे कितना भी बड़ा 

या छोटा क्यों ना हो....!

अपने घर आंगन की खुशबू 

नहीं मिलती उसमें🥺


अपने पसंद की चीज़

खुद से खरीद लेती हूं मैं...

पर पापा का लाड़

नहीं मिलता इसमें।


 माँ, अब तो खाना बनाना 

भी आ गया

पर आपके हाथ का प्यार

नहीं होता इसमें।


 नाम-रुतबा 

 सब बनाने के पीछे

 निकल गयी हूँ मै

 पर बचपन जैसा

 आप दोनों का हाथ

 थाम के चलने का

 वो सुकून🥰

 नहीं मिलता ।।

(बिटिया आद्या द्वारा शिमला में ताज होटल में ड्यूटी के बाद व्यक्त एक शाम के भाव)


टिप्पणियाँ

  1. अहसास से भरी समझदारी की कविता 😍
    बढ़िया प्रयास 💞💞

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  2. घर से बेटी को दूर भेजना बहुत कठिन होता
    दिल भर आया 💕🎈

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  3. मार्मिक, हृदय स्पर्शी।

    जवाब देंहटाएं

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