बिटिया की कविता मम्मी पापा के नाम..!!
'अब मैं जीना सीख गई हूं'
मम्मी-पापा,
आपकी ये नन्हीं सी जान
अब सचमुच बड़ी हो गई है।
अब जिंदगी जीना
सीख गई हूं मैं।
दुनिया न
बहुत बुरी है..!
बचपन से
यही बताते थे न...?
सच कहते हो आप
ये दुनिया
सच में बहुत बुरी है,
पर मैंने भी न,
दुनिया से डील करना
सीख ही लिया है।
अब न ,अँधेरे से
डर नहीं लगता
रात को अचानक
नींद खुलने पर अब
सहम नहीं
जाती हूं मैं।
मैं सीख गई हूं,
हर वो तौर-तरीका
जो आप सिखाते थे
पर,पता है क्या आपको...?
शहर चाहे कितना भी बड़ा
या छोटा क्यों ना हो....!
अपने घर आंगन की खुशबू
नहीं मिलती उसमें🥺
अपने पसंद की चीज़
खुद से खरीद लेती हूं मैं...
पर पापा का लाड़
नहीं मिलता इसमें।
माँ, अब तो खाना बनाना
भी आ गया
पर आपके हाथ का प्यार
नहीं होता इसमें।
नाम-रुतबा
सब बनाने के पीछे
निकल गयी हूँ मै
पर बचपन जैसा
आप दोनों का हाथ
थाम के चलने का
वो सुकून🥰
नहीं मिलता ।।
(बिटिया आद्या द्वारा शिमला में ताज होटल में ड्यूटी के बाद व्यक्त एक शाम के भाव)
अहसास से भरी समझदारी की कविता 😍
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रयास 💞💞
शुक्रिया वंदना
हटाएंप्यारी कविता
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंघर से बेटी को दूर भेजना बहुत कठिन होता
जवाब देंहटाएंदिल भर आया 💕🎈
धन्यवाद मित्र
हटाएंमार्मिक, हृदय स्पर्शी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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