सायोनारा भोपाल…अल्पविराम के बाद फिर रचेंगे किस्सों का नया संसार!!

मेरे लिए भी यह बहुत ही भावुक और खास पल हैं। जिस शहर में पत्रकारिता का ककहरा सीखा, जहां ‘जब हम जवां होंगे..’ से ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे.. ‘ मार्का दिन गुजारे..उसे कैसे छोड़कर जा सकते हैं?  

जहां दोस्ती और रिश्तों को सतत संवाद के साथ बुना-गढ़ा और निरंतर मुलाकात की खाद-पानी से जीवंत बनाए रखा..उस शहर एवं वहां बने रिश्तों के ताने बाने से बाहर निकलना आसान कैसे हो सकता है ?   भोपाल ने पहली नौकरी से लेकर नौकरी की अंतिम पंचवर्षीय पारी के पहले तक फ्रंट फुट पर खुलकर बल्लेबाजी करने का मौका दिया …उस महबूब शहर भोपाल से फिर कुछ साल दूर जाना वाकई मुश्किल है। 

दरअसल, नौकरी की अपनी सीमाएं, दुश्वारियां, परिवार की जरूरत और शहर से प्यार के बीच के उलझे धागों को सुलझाना आसान नहीं है । शहर और परिवार में से किसी एक को चुनना तो और भी जटिल था..काफी सोच विचारकर मैंने परिवार चुना और शायद कोई भी भावनात्मक व्यक्ति यही करता।  वैसे भी, शहर तो स्थायी है,कायम है ही अपनी जगह पर,लेकिन परिवार के सदस्यों की जरूरत समय के साथ घटती बढ़ती रहती है और जब बात इकलौती बिटिया के स्नेह एवं साथ की हो तो उसके आगे सब कुर्बान है । फिर जब यह निश्चित हो कि वापस यहीं आना है एवं यहीं बसना है..इसलिए शहर भी दिल खोलकर कह रहा है कि जाओ कुछ दिन और वतन के नए इलाकों के दीदार कर आओ..मेरी बाहें हमेशा वापसी के इंतजार में खुली हुई हैं..तब जाने का दर्द भी कम हो जाता है । 

खैर, भोपाल में दो पारियों में करीब सात-सात साल जोड़कर कुल 14 साल अब तक गुजारे हैं। पहली पारी की ही तरह इस दूसरी पारी में बिताए सात साल मेरे जीवन का अनमोल हिस्सा हैं। यहाँ दिल खोलकर मिला प्यार, काम के मौके, बेतहाशा सम्मान और आकाशवाणी भोपाल में टीम न्यूजरूम से मिला पारिवारिक माहौल मेरे दिल में हमेशा बसा रहेगा। न्यूजरूम टीम ने तो अपनत्व से दफ्तर को न केवल घर बना दिया, बल्कि एक ऐसा विस्तारित परिवार दिया, जिसने हर कदम पर मेरा साथ निभाया। सिटी ऑफ लेक का ज़र्रा ज़र्रा और आकाशवाणी भोपाल का हर गलियारा, हर चेहरे पर खिली मुस्कान,  साथ बिताए हँसी-खुशी के पल और हर छोटी-बड़ी यादें मेरे लिए जीवंत खजाना हैं। 

इस शहर ने ‘चार देश चालीस कहानियां’ और ‘अयोध्या 22 जनवरी’ जैसी किताबें, सैकड़ों खबरें, हजारों बार रेडियो पर आने का मौका और अनगिनत लेख लिखने का हौंसला दिया।  यहां रहकर सबसे बड़े मीडिया संस्थान माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्विद्यालय में ‘बोर्ड ऑफ स्ट्डीज’ का सम्मानित सदस्य बनने और दुनिया में अपनी तरह के अनूठे माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान के प्रतिष्ठित ‘परामर्श मंडल’ का मानद सदस्य होने जैसे गौरव के पल दिए।  

इसी शहर में हमने ‘रीडर्स क्लब’ नामक एक ऐसा पौधा रोपा जो पठन पाठन की मुहिम को आगे बढ़ाकर लगातार पुष्पित पल्लवित हो रहा है। यहां मीडिया के  मित्रों सहित सभी साथियों ने मुझे इतना प्यार, सम्मान, सहयोग और समर्थन दिया कि मैं इसे शब्दों में बयान नहीं कर सकता। 

 इस शहर ने मुझे नई ऊँचाइयों तक पहुँचने ( शिमला भी ऊंचाई पर है😆) का बल दिया और एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा भी दी। अब जब मैं एक नए शहर देवभूमि हिमाचल की राजधानी और मशहूर पर्यटन स्थल शिमला में पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) की जिम्मेदारी उठाने की ओर कदम बढ़ा रहा हूँ, तो मेरा दिल इन सभी यादों और भोपाल की गर्मजोशी से भरा हुआ है। मैं उन सभी का तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने मेरे इस सफर को इतना सुंदर बनाया।  

मेरे इन सात सालों के सफर को भोपाल ने खूबसूरत,सहज और संग्रहणीय बनाया है और मैं इन पलों को हमेशा संजोकर रखूँगा । यहां बिताए लम्हे और आपका साथ मेरे लिए अनमोल है। हम भौगोलिक दूरियों को कभी हमारे बीच नहीं आने देंगे और निश्चित ही यहां की यादें मेरी नई शुरुआत को आसान बनाएंगी और मजबूती से मेरे साथ हमेशा डटी रहेंगी। 

 …अंत में अपने शहर से एक वादा भी कि अब तीसरी पारी स्थायी होगी और फिर साथ साथ किस्सों का नया संसार रचेंगे…फिलहाल अलविदा..सायोनारा!!  

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