न्यूजरूम परिवार के नाम एक पाती

 

मेरे न्यूजरूम परिवार के सभी प्रिय सदस्यों,

  • सभी को नमस्कार


मजरूह सुल्तानपुरी 

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर

लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया


आज मेरे लिए एक ऐसा क्षण है, जो मन में मिश्रित भावनाओं का तूफान लिए हुए है—खुशी, गर्व, और कहीं न कहीं एक हल्की-सी उदासी। सात साल पहले जब मैंने इस दफ्तर में कदम रखा था, तब यह स्थान मेरे लिए सिर्फ एक कार्यस्थल था। लेकिन आप सभी ने इसे मेरे लिए एक घर बना दिया, एक ऐसा परिवार जहाँ हर दिन नई सीख, हँसी, और अपनत्व का एहसास हुआ। आज, जब मैं ट्रांसफर के साथ एक नए सफर की ओर बढ़ रहा हूँ, तो यह विदाई मेरे लिए उतनी ही मुश्किल है, जितनी किसी अपने को अलविदा कहना।


इन सात सालों में हमने मिलकर अनगिनत चुनौतियों का सामना किया। चाहे वो डेडलाइन का दबाव हो, प्रोजेक्ट्स की जटिलताएँ हों, या फिर नई योजनाओं को आकार देना हो—आप सभी का साथ मेरे लिए एक ढाल की तरह रहा। कॉफी ब्रेक में की गई हल्की-फुल्की बातें, लंच टाइम की वो छोटी-छोटी कहानियाँ, और उत्सवों में एक साथ नाचना-गाना—ये वो पल हैं जो मेरे दिल में हमेशा जिंदा रहेंगे। आप में से हर एक ने मुझे कुछ न कुछ सिखाया—कोई धैर्य, कोई मेहनत, तो कोई मुस्कुराते हुए हर मुश्किल को आसान बनाने का हुनर।

मुझे याद है वो दिन जब हमने एक साथ मिलकर असंभव-से लगने वाले लक्ष्य को हासिल किया था, और वो रातें जब हम सब देर तक बैठकर हँसते-बतियाते रहे। यहाँ के हर गलियारे, हर डेस्क, और हर मीटिंग रूम में मेरी यादें बसी हैं। यह दफ्तर मेरे लिए सिर्फ ईंट-पत्थर की इमारत नहीं, बल्कि एक जीवंत कहानी है, जिसमें आप सभी किरदार हैं।

इस मौके पर मुझे मशहूर शायर बशीर बद्र का एक शेर याद आ रहा है, जो मेरे मन की बात को बयान करता है:

"याद इतनी सी बनी रहे बस हमारे बाद,

कोई मुड़कर देख ले हमें, ये तमन्ना है बहुत।"

मैं चाहता हूँ कि मेरी मेहनत, मेरी मौजूदगी, और मेरे योगदान की एक छोटी-सी छाप यहाँ रह जाए। और अगर मैंने अनजाने में किसी का दिल दुखाया हो, कोई गलती की हो, तो इसके लिए मैं आप सभी से दिल से माफी माँगता हूँ।

ट्रांसफर मेरे लिए एक नया अध्याय है, एक नई राह, जहाँ मैं आप सभी से मिली सीख और प्रेरणा को साथ ले जा रहा हूँ। मैं वादा करता हूँ कि जहाँ भी रहूँ, इस परिवार की गरिमा और मूल्यों को ऊँचा रखूँगा। आप सभी से मेरा निवेदन है कि इस दफ्तर के इस पारिवारिक माहौल को हमेशा बनाए रखें, क्योंकि यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है।


अंत में, मैं एक और कविता की पंक्तियाँ साझा करना चाहूँगा, जो मेरे इस सफर को बयान करती हैं। ये पंक्तियाँ हैं हरिवंश राय बच्चन की:

"मंजिलें अपनी जगह हैं, रास्ते अपनी जगह,

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल, जिंदगानी फिर कहाँ।"

आप सभी का हृदय से आभार, जो आपने मुझे इतना प्यार, सम्मान, और साथ दिया। मेरी कामना है कि यह परिवार हमेशा यूँ ही मुस्कुराता रहे, एक-दूसरे का हौसला बढ़ाता रहे। मेरे नए सफर के लिए आपकी शुभकामनाएँ मेरी ताकत होंगी। उम्मीद है, भविष्य में हम फिर मिलेंगे, और नई यादें बनाएंगे।

धन्यवाद, और अलविदा नहीं, बल्कि फिर मिलने की उम्मीद के साथ!



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