शनिवार, 8 जुलाई 2023

अब करिए प्रधानमंत्री के साथ कदमताल और खिंचवाइए तस्वीर...!!

एक समय हम आप अपने पसंदीदा नेता की एक झलक देखने के लिए परेशान रहते थे लेकिन अब आप उनके साथ तस्वीर निकलवा सकते हैं,घूम सकते हैं और उनके ऑटोग्राफ हासिल कर सकते हैं…वह भी महज पचास रुपए में। इतने कम पैसे में इंदिरा गांधी आपको हस्ताक्षरित पत्र लिख सकती हैं और पचास रुपए में ही अटल बिहारी वाजपेई आपके साथ फोटो खिंचवा सकते हैं..कुछ और पैसे खर्च करें तो आप सौ रुपए में पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर लाल बहादुर शास्त्री तक और राजीव गांधी से लेकर चंद्रशेखर तक किसी के भी साथ वॉक कर सकते हैं…और बिना फूटी कौड़ी खर्च किए भी आप अपनी तस्वीर के साथ ज्ञान बांट सकते हैं और हाथों में हाथ डालकर एकता श्रृंखला यानि यूनिटी चेन बना सकते हैं… इतना ही नहीं, और भी बहुत कुछ है दिल्ली में सुप्रसिद्ध तीन मूर्ति के साथ बने अनूठे प्रधानमंत्री संग्रहालय यानि पीएम म्यूज़ियम में। वैसे, प्रधानमंत्री संग्रहालय में लगने वाली फीस केवल हमारे अंदर जिम्मेदारी का भाव जगाने के लिए है क्योंकि मुफ़्त में तो ताजमहल की भी कद्र नहीं है। 

43 गैलरी में सजायी गई 15 प्रधानमंत्रियों की जीवन गाथा,उपलब्धियों,फैसलों और तस्वीरों को ऑडियो,वीडियो, लाइटिंग,आईटी और एआई जैसी तमाम तकनीकों के जरिए इतने अद्वितीय तरीके से संजोया गया है कि आप यहां घंटों गुजारने के बाद भी अतृप्त लौटते हैं। हमारी आज़ादी की लड़ाई से लेकर उसके बाद के 75 सालों की सभी बड़ी घटनाएं यहां जीवंत हो उठी हैं। 

हम कह सकते हैं कि प्रधानमन्त्री संग्रहालय स्वतंत्रता के बाद से भारत के प्रत्येक प्रधान मंत्री को एक आदरांजलि है, और पिछले 75 वर्षों में हमारे देश के विकास में उनके योगदान का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है। यह प्रधानमंत्रियों के सामूहिक प्रयास का इतिहास है और भारत के लोकतंत्र की रचनात्मक सफलता का शक्तिशाली प्रमाण भी ।

इसलिए, दिल्ली जाएं तो प्रधानमंत्री संग्रहालय ज़रूर जाए…यह इंडिया गेट,नया संसद भवन और कर्तव्य पथ जैसा ही एक प्रमुख आकर्षण है।

मानवीय बुद्धिमत्ता के सामने कृत्रिम ज्ञान की क्या बिसात…!!


इन दिनों सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल है जिसमें एआई यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए बने फोटो से यह बताया जा रहा है कि भगवान राम 21 साल की उम्र में कैसे दिखते थे!! इसमें दावा किया गया है कि फोटो के लिए राम के स्वरूप के इनपुट देश विदेश में उपलब्ध रामायणों, रामचरित मानस और भगवान राम पर केंद्रित पुस्तकों से लिए गए हैं। सीधी भाषा और बिना किसी लाग लपेट के कहा जाए तो सभी मसालों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मिक्सी में मिलाकर पीस दिया। हालांकि, यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि फेसबुक और इंस्टाग्राम पर ऐसे तमाम एप्लिकेशन हैं जो हमें यह बताते रहते हैं कि हम बचपन में कैसे दिखते थे या वृद्धावस्था में कैसे दिखेंगे। बस,इस बार नया यह था कि भगवान के स्वरूप के साथ छेड़छाड़ की गई।

अब बंदर के हाथ में उस्तरा की तर्ज पर सोशल मीडिया के नौसिखियों के हाथ चैट जीपीटी नाम का नया खिलौना लग गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (अलादीन) के चिराग़ से निकले इस नए जिन्न ने तूफ़ान सा ला दिया है। यह वाकई जिन्न की तरह चमत्कारी है और बस आपके आदेश देते ही जो हुक्म मेरे आका के अंदाज़ में उस आदेश पर झट से अमल कर देता है। यह काम भी यह चैट जीपीटी इतने सपाटे और सफाई से करता है कि दुनिया भर के विषेशज्ञ चमत्कृत और सहमे हुए हैं।

सबसे पहले यह जान लेते हैं कि आख़िर यह चैट जीपीटी है क्या बला? चैट जीपीटी (Chat GPT) का पूरा नाम चैट जेनरेटिव प्री ट्रेंड ट्रांसफार्मर (Chat Generative Pre-trained Transformer) है । इसके माध्यम से आप किसी भी सवाल का जवाब जान सकते हैं । यहां तक इसकी प्रक्रिया गुगल सर्च की तरह ही है लेकिन दोनों का फर्क इसके बाद दिखता है । गूगल सर्च और चैट जीपीटी के बीच में सबसे बड़ा अंतर ये है कि गूगल सर्च में हम किसी विषय को सर्च करते है और गूगल हमें उस विषय से संबंधित विभिन्न वेबसाइट पर ले जाता है जबकि चैट जीपीटी विभिन्न वेबसाइटों को खंगालकर सवालों का सीधा जवाब बनाकर देता है। इसमें वांछित उत्तर तलाशने के लिए संबंधित वेबसाइट पर जाने की जरूरत नहीं होती बल्कि पका पकाया उत्तर मिल जाता है। एक और बड़ा अंतर यह है कि चैट जीपीटी पर प्रश्नों के उत्तर भर नहीं बल्कि निबंध, स्क्रिप्ट, कवर लेटर, बायोग्राफी, छुट्टी की एप्लीकेशन,समीक्षा,शोध जैसे तमाम काम कराए जा सकते हैं । 

चैट जीपीटी की खूबियों में यह भी शामिल है कि यह अपने यूजर की सौ फीसदी संतुष्टि तक काम करता है मसलन यदि यूजर चैट जीपीटी द्वारा दी गई जानकारी से सन्तुष्ट नहीं है तो Chat GPT अपने डेटा में फिर से बदलाव कर प्रदर्शित करता है। यह लगातार तब तक अपने डेटा में परिवर्तन करता रहता है जब तक की यूजर्स जानकारी से संतुष्ट नहीं हो जाता।

इटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़ चैट जीपीटी को 30 नवंबर 2022 में सैम अल्टमैन ने लांच किया था और इतने कम समय में ही इसके यूजर की संख्या कई मिलियन तक पहुंच गई है। इसके साथ एलन मस्क और बिल गेट्स जैसे दिग्गज कभी न कभी जुड़े रहे हैं। चैट जीपीटी की मातृ वेबसाइट chat.openai.com है और कंपनी ने इसे फिलहाल अंग्रेजी भाषा में लांच किया गया है लेकिन इसको लेकर आम लोगों में जिसतरह उत्साह दिख रहा है उससे साफ जाहिर है कि जल्दी ही यह उन सभी भाषाओं में उपलब्ध होगा जिनकी दुनिया भर में मांग है और क़रीब 130 करोड़ की आबादी के कारण भारत और हिंदी सहित हमारी भाषाएं इसकी पहुंच से दूर नहीं हैं। कंपनी की तरफ से भी संकेत दिए जा रहे है कि आने वाले दिनों में यह कई भाषाओं में उपलब्ध होगा।  

अब सवाल यह उठता है कि जब चैट जीपीटी इतना अच्छा है तो फिर दिक्कत कहां है और इसको लेकर विवाद क्यों है? दरअसल, दिक्कत चैट जीपीटी या इसकी चमत्कारिक कार्यप्रणाली में नहीं है बल्कि विभिन्न कंपनियों द्वारा इसके इस्तेमाल में है। अभी तक विवाद कुछ उसी अंदाज़ में सामने आ रहे हैं जैसे रोबोट की लांचिंग के समय आए थे। आपको याद होगा कि एक समय रोबोट को मानव जाति के लिए खतरा मान लिया गया था। कुछ ऐसी ही चिंता अभी चैट जीपीटी को लेकर हो रही है। कोई इसे रचनात्मक लेखन के लिए खतरा बता रहा है तो कोई शोध के लिए और कोई रोज़गार के लिए। इस चिंता के कारण भी हैं क्योंकि कथित प्रयोगधर्मी कंपनियां लेखन के बाद चैट जीपीटी के जरिए एआई बेस्ड हेल्पलाइन, वकील,सलाहकार और समाचार वाचक तक बनाने लगी हैं। इसका अर्थ यह है कि आपकी मानसिक या कानूनी समस्या का समाधान कोई मानवीय संवेदनाओं वाला व्यक्ति या विशेषज्ञ नहीं बल्कि चैट जीपीटी से तैयार डाटा करेगा। इसी प्रकार किसी समाचार चैनल पर आपको चैट जीपीटी द्वारा तैयार समाचार पढ़ती कोई मशीन दिख सकती है या भविष्य का कोई संपादक चैट जीपीटी जैसे किसी एआई से बना हो सकता है। इसमें सबसे बड़ा खतरा सूचनाओं के गलत विश्लेषण का है जो सुरक्षा से लेकर परस्पर संबंधों तक के लिए खतरनाक हो सकता है। अभी एआई आधारित तमाम ऐप प्रायोगिक परीक्षण की स्थिति में है और उनके उपयोग को लेकर सरकारों के स्तर पर कोई गाइड लाइन नहीं बनी हैं इसलिए इनके उपयोग से धोखाधड़ी का खतरा है। विदेशों में तो ऐसे ऐप द्वारा यूज़र के साथ बदतमीजी करने या गलत भाषा का इस्तेमाल करने की खबरें भी आई हैं। वहीं, कुछ लोगों ने इसे कमाई का धंधा बना लिया है। जैसे लेंस जंक नामक एक शख्स ने एक ऑनलाइन कोर्स लॉन्च किया था. ये कोर्स लोगों को चैट जीपीटी इस्तेमाल करना सिखा रहा है और वह अब करीब 28 लाख रुपए कमा चुका है।

इस सारी कवायद का लब्बो लुआब यह है कि चैट जीपीटी हो या कोई अन्य एप्लीकेशन, वह होगा तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित ही। जब उसका ज्ञान ही आर्टिफिशियल या कृत्रिम है तो वह मूल या मानवीय ज्ञान की बराबरी कैसे कर सकता है। वह उपलब्ध आंकड़ों के गुणा भाग से कोई समाधनपरक जवाब तो बना देगा लेकिन मानवीय सोच,समझ और त्वरित बौद्धिकता का मुकाबला कैसे करेगा। खुद चैट जीपीटी की मातृ कंपनी OpenAI ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि यह एप्लीकेशन कभी-कभी ऐसा उत्तर या लेखन करता है जो देखने में तो प्रशंसनीय लगता है लेकिन होता गलत या निरर्थक है।इसलिए फिलहाल चिंतित होने की नहीं बल्कि चैट जीपीटी को परखने की जरूरत है।

ढाई राज्यपाल और दो मुख्यमंत्रियों वाला अनूठा शहर…!!

ढाई राज्यपाल और दो मुख्यमंत्री…शीर्षक चौंकाता है न? वैसे, पत्रकारिता की पहली सीख  यही है कि शीर्षक चौंकाने वाला या आश्चर्य चकित करने वाला हो ताकि पाठक आपकी ख़बर पढ़ने के लिए मजबूर हो जाए लेकिन यहां शीर्षक से ज्यादा कमाल का यह शहर है जो खुद आपको अपनी कहानी सुनाने के लिए मजबूर करता है। 

अब तक मुख्यमंत्री पद पर एक से ज्यादा दावेदारियां, ढाई-ढाई के मुख्यमंत्री और कई उपमुख्यमंत्री जैसी तमाम कहानियां हम आए दिन समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते रहते हैं लेकिन कोई शहर अपने सीने पर बिना किसी विवाद के दो मुख्यमंत्रियों की कुर्सी रखे हो और उस पर तुर्रा यह कि मुख्यमंत्रियो से ज्यादा राज्यपाल हों तो उस शहर पर बात करना बनता है। 

देश का सबसे सुव्यवस्थित शहर चंडीगढ़ वैसे तो अपने आंचल में अनेक खूबियां समेटे है लेकिन दो मुख्यमंत्री और ढाई राज्यपाल की खूबी इसे देश ही क्या दुनिया भर में अतिविशिष्ट बनाती है। जैसा की हम सभी जानते हैं कि चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा की राजधानी है इसलिए यहां पंजाब के मुख्यमंत्री भी रहते हैं तो हरियाणा के मुख्यमंत्री का भी सचिवालय है। अब जब मुख्यमंत्री दो हैं तो पंजाब और हरियाणा के राज्यपालों को मिलाकर राज्यपाल भी दो ही होंगे? लेकिन लेख का शीर्षक तो 'ढाई राज्यपाल' की बात कर रहा है तो फिर सवाल उठता है कि यह आधे राज्यपाल का क्या गणित है? 

दरअसल चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा की राजधानी होने के साथ साथ केंद्रशासित प्रदेश भी है इसलिए यहां लेफ्टिनेंट गवर्नर भी होते हैं। चूंकि, अभी यह दायित्व भी पंजाब के राज्यपाल के पास है इसलिए हम उन्हें आम बोलचाल में समझने के लिए आधा राज्यपाल कह सकते हैं। वैसे, लेफ्टिनेंट गवर्नर के 'पॉवर' की बात करें तो कई मामलों में आधा राज्यपाल पूरे मुख्यमंत्री पर भारी पड़ता है और दिल्ली से बेहतर इसका ज्वलंत उदाहरण और क्या हो सकता है।

राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों के कारण चंडीगढ़ का सेक्टर एक और दो वीआईपी रुतबा रखते हैं पर इतना अहम शहर होने के बाद भी यहां 'वीआईपी मूवमेंट' हमारे शहरों की तरह परेशान नहीं करता बल्कि आम लोगों की आवाजाही के बीच वीआईपी भी समन्वय के साथ 'मूव' करते रहते हैं। वैसे चंडीगढ़ का इतिहास और दो मुख्यमंत्रियों वाला शहर बनने की कहानी तो हम सब जानते ही हैं कि आजादी के बाद कैसे पंजाब का एक हिस्सा पाकिस्तान चला गया और उसकी तत्कालीन राजधानी लाहौर भी।  फिर शेष पंजाब,हरियाणा और हिमाचल को मिलाकर बने संयुक्त प्रांत की राजधानी के लिए 1953 में चंडीगढ़ बनाया गया। बताया जाता है कभी शिमला भी पंजाब की राजधानी थी। एक नवम्बर 1966 को पंजाब और हरियाणा अलग हो गए और इसके बाद, 1971 में हिमाचल प्रदेश का स्वतंत्र अस्तित्व वजूद में आ गया। हिमाचल को तो शिमला के रूप राजधानी की सौगात मिल गई परंतु हरियाणा और पंजाब का मन चंडीगढ़ पर अटक गया और महाभारत में द्रौपदी को पांच पांडवों को पत्नी का दर्जा मिला था तो चंडीगढ़ को दो राज्यों की राजधानी का गौरव। तब यही तय हुआ था कि हरियाणा के लिए अलग राजधानी मिलने तक चंडीगढ़ उसकी भी राजधानी बनी रहेगी। खास बात यह है कि छह दशक पूरे करने जा रहे इस शहर ने द्रौपदी की तरह कभी अपने आत्मसम्मान को खंडित नहीं होने दिया और अपने गौरव को हमेशा सर्वोपरि रखा है। शायद, इस शहर की खूबसूरती, व्यवस्थापन, पर्यावरण देखकर ही केंद्र सरकार का भी इस पर मन आया होगा और 1966 में उसने अपना एक प्रतिनिधि यहां बिठा दिया और इस तरह देश के खूबसूरत शहरों में से एक चंडीगढ़ दो मुख्यमंत्रियों और ढाई राज्यपालों का अनूठा शहर बन गया।

#Chandigarh #CityOfBeauty  #Rock Garden 

गुरुवार, 22 दिसंबर 2022

अब डिजिटल दुनिया में भी परचम लहराते आकाशवाणी और दूरदर्शन



देश में रेडियो और और टेलीविजन की दुनिया में अपना परचम लहराने के बाद अब प्रसार भारती ने डिजिटल क्षेत्र में अपने पैर फैलाने शुरू किए हैं। गौरतलब है कि प्रसार भारती देश में देश में आकाशवाणी और दूरदर्शन के नाम से रेडियो और टीवी चैनलों का संचालन करता है। यह न केवल देश का सबसे लोकप्रिय लोकसेवा प्रसारक है बल्कि अपनी बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की नीति का पालन करते हुए देश के कोने कोने में सूचना, मनोरंजन और शिक्षा का सबसे बड़ा माध्यम भी है। दूरदर्शन और आकाशवाणी के जरिए यह देश के साथ-साथ विदेश में भी भारतीय संस्कृति, कला, साहित्य और सरकार से जुड़ी सूचनाएं संप्रेषित कर रहा है । 


डिजिटलीकरण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों के पहले मजबूत कदम के रूप में अब तक शार्ट और मीडियम वेब के जरिए अपनी सेवाएं दे रहे आकाशवाणी ने अब डिजिटल तकनीक के सहारे देश के साथ-साथ विदेश में भी क्रिस्टल क्लियर आवाज में अपनी बात पहुंचाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन पहले ही सभी लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मसलन यूट्यूब, ट्विटर,फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपनी पकड़ मजबूत बना रहे हैं। ट्विटर पर आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग के हैंडल ऑल इंडिया रेडियो न्यूज़ के ही 3 मिलियन से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं। यदि इसमें आकाशवाणी के हिंदी समाचार चैनल और प्रादेशिक चैनलों को जोड़ दिया जाए तो यह संख्या और भी कई गुना बढ़ जाएगी।


यही स्थिति यूट्यूब पर है। रेडियो के नेशनल चैनल के 5 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर और करोड़ों में व्यूज है। शिलांग सहित कई क्षेत्रीय चैनलों के सब्सक्राइबर की संख्या भी लाखों को पार कर चुकी है। भोपाल से प्रसारित समाचारों से यूट्यूब पर जुड़ने वालों की संख्या करीब 60 हज़ार और सुनने वालों की संख्या एक करोड़ होने वाली है। यही हाल अन्य क्षेत्रीय चैनलों का है। दिलचस्प बात यह है कि भारतीय डिजिटल मीडिया उद्योग में प्रसार भारती के डिजिटल नेटवर्क ने सिर्फ राजस्व आधारित विकास नहीं किया है बल्कि समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करके एक विशेष जगह बनाई है। डिजिटल दुनिया में भी जनता की सेवा करते हुए, पूर्वोत्तर के दूरस्थ क्षेत्रों में प्रसार भारती के डिजिटल प्लेटफॉर्म ने यू-ट्यूब पर 220 मिलियन से अधिक बार देखे जाने और 1 मिलियन से अधिक सब्सक्राइबर्स को एक साथ जोड़कर महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं।


हाल ही में, दूरदर्शन आइजोल के यू-ट्यूब चैनल ने 1 लाख सब्सक्राइबर्स की संख्या को पार कर लिया है। निश्चित रूप से व्यूज और सब्सक्राइबर्स आधार में ये वृद्धि टेलीविज़न नाटक, टेलीफिल्म्स और फिल्मों की शैलियों में उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री के कारण हुई है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो के कई ट्विटर हैंडल के हजारों की संख्या में फॉलोअर्स हैं। डीडी मिजोरम, डीडी गुवाहाटी, डीडी शिलॉन्ग और आकाशवाणी पूर्वोत्तर सेवा के यू-ट्यूब न्यूज चैनलों के सब्सक्राइबर्स का आधार काफी बड़ा है। उल्लेखनीय बात यह भी है कि प्रसार भारती के इन पूर्वोत्तर चैनलों में से अधिकांश के डिजिटल माध्यम पर लाखों में व्यूज़ हैं और देखे गए कार्यक्रम का समय लाखों घंटों में हैं, जिसमें मणिपुर का दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो चैनल सारणी में शीर्ष स्थान पर हैं।


अगर हम आकाशवाणी की बात करें तो, शॉर्ट-वेव बैंड में डिजिटल ट्रांसमिशन के आगमन से आकाशवाणी कार्यक्रमों के प्रसारण और कवरेज में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। यही कारण है कि प्रसार भारती ने खर्चीली और अब आउट डेटेड मानी जा रही इस तकनीक को त्यागकर डिजिटल रास्ता अपनाया है।  लोग अब महज एक ऐप न्यूज़ ऑन एआईआर के माध्यम से देश भर के रेडियो स्टेशनों के प्रसारण को महज एक क्लिक पर क्रिस्टल क्लियर आवाज में सुन सकते हैं। यही नहीं, संसद टीवी, डीडी न्यूज़, डीडी इंडिया,किसान चैनल, डीडी उर्दू लाइव और प्रसार भारती न्यूज नेटवर्क के अपडेट भी एक क्लिक पर देख सकते हैं। इसके अलावा इस ऐप पर वे समाचार पढ़ भी सकते हैं।    


गौरतलब है कि प्रसारण उद्योग के डिजिटलीकरण का अध्ययन करने के लिए योजना आयोग द्वारा "सब-ग्रुप ऑन गोइंग डिजिटल" नामक एक अध्ययन समूह की स्थापना की गई थी।  उप-समूह की अध्यक्षता योजना आयोग के सदस्य सचिव द्वारा की गई थी।  समूह ने एनालॉग ट्रांसमिशन से डिजिटल डोमेन में माइग्रेशन पथ निर्धारित किया है और आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के मौजूदा प्रसारण को पूर्ण रूप से डिजिटल मोड में बदलने का लक्ष्य सुझाव दिया था ।


डिजिटल वर्ल्ड में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने के लिए प्रसार भारती ने अमेजन वेब सर्विस- AWS के साथ भी समझौता किया है।  इस समझौते से प्रसार भारती का प्रसारण 190 से अधिक देशों में 894 मिलियन से अधिक दर्शकों और श्रोताओं तक पहुंच जाएगा।  इस डिजिटल परिवर्तन के माध्यम से, पीबीएनएस का उद्देश्य नवीन डिजिटल सामग्री प्रारूप प्रदान करना और अपने लक्षित दर्शकों, विशेष रूप से युवा दर्शकों और श्रोताओं को बेहतर ढंग से जोड़ना है।


प्रसार भारती का मानना है कि यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह समय पर और सटीक समाचार प्रदान करें।  वह दुनिया भर में जनता को भारत के विकास और सांस्कृतिक विविधता के बारे में सूचित और शिक्षित करने का दायित्व संभाल रहा है। इसलिए एडब्ल्यूएस, प्रसार भारती के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन रोडमैप के लिए महत्वपूर्ण है, जो उसे मौजूदा और उन नए दर्शकों तक पहुंचने में मदद करेगा, जो डिजिटल रूप से सामग्री का उपभोग करते हैं।


अपने डिजिटल ढांचे को और पुख्ता करने के लिए प्रसार भारती संगठन ने अपना डिजिटल न्यूज़ डेटा मैनेजमेंट सिस्टम (NDMS) भी बनाया है। यह आंतरिक समाचार इकाइयों, सोशल मीडिया टीमों और बाहरी समाचारों के बीच सहयोग को बेहतर बनाने,  क्षेत्रीय समाचार इकाइयों में सामग्री को वर्गीकृत करने, संग्रह करने और साझा करने के लिए बनाया गया है। इसका उद्देश्य रिपोर्टरों और देशभर में फैले संवाददाताओं के लिए अपनी खबरें जल्दी से अपलोड करना और समाचार संगठनों के लिए तेजी से समाचार प्रसारित करने की प्रक्रिया को आसान बनाना है।  


कुल मिलाकर देखा जाए तो भविष्य के मीडिया को समय से पहले भांपते हुए प्रसार भारती ने अपने रेडियो और टीवी प्रसारण को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पहुंचाने के तमाम रास्ते तैयार कर लिए हैं और वह दिन दूर नहीं जब देश के ये सर्वाधिक लोकप्रिय और विश्वसनीय समाचार और कार्यक्रम चैनल दुनिया भर में अपनी लोकप्रियता और त्वरित सेवाओं का परचम लहराएंगे।



बुधवार, 14 दिसंबर 2022

हमारी एकसाथ यात्रा बहुत छोटी है !


एक महिला बस में चढ़ी और एक आदमी के बगल में खाली पड़ी सीट पर बैठ गई...जगह कम होने और सामान ज्यादा होने के कारण और शायद जानबूझकर भी, वह महिला अपने सहयात्री को सामान से चोट पहुंचाती रही ।
जब काफी देर तक भी पुरुष चुप रहा, तो अंततः महिला ने उससे पूछा - क्या मेरे सामान से आपको चोट नहीं पहुंच रही और आपने अब तक कोई शिकायत क्यों नहीं की?
उस आदमी ने हल्की सी मुस्कान के साथ उत्तर दिया: "इतनी छोटी सी बात से परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारी *एक साथ यात्रा बहुत छोटी है,* ...मैं अगले पड़ाव पर उतर रहा हूँ।"
इस जवाब ने औरत को मानसिक ग्लानि से भर दिया और उसने उस आदमी से माफ़ी माँगते हुए कहा कि आपके इन शब्दों को स्वर्णिम अक्षरों में लिखने की ज़रूरत है !!
यह बात हम सभी पर लागू होती है। हम में से प्रत्येक को यह समझना चाहिए कि इस दुनिया में हमारा समय इतना कम है कि इसे बेकार तर्कों, ईर्ष्या, जलन, प्रतिस्पर्धा, नाराज़गी,दूसरों को क्षमा न करने, असंतोष और परस्पर बुरे व्यवहार के साथ अपने समय और ऊर्जा को बेकार में बर्बाद करना कितना उचित है?
क्या किसी ने आपका दिल तोड़ा? शांत रहो क्योंकि हमारी परस्पर *यात्रा बहुत छोटी है..*
क्या किसी ने आपको धोखा दिया या अपमानित किया? आराम से रहें - तनावग्रस्त न हों क्योंकि उसका और आपका साथ साथ *सफर बहुत छोटा है...*
क्या किसी ने बिना वजह आपका अपमान किया? शांत रहो, उसे अनदेखा करो क्योंकि उसके साथ आपका *सफर बहुत छोटा है...*
क्या किसी ने ऐसी टिप्पणी की जो आपको पसंद नहीं आई? शांत रहो, उपेक्षा करो और क्षमा करो । आख़िर हम दोनों का साथ साथ *सफर बहुत छोटा है...।*
जो भी समस्याएँ हमारे सामने आती हैं, उसे महज एक समस्या माने, अगर हम उसके बारे में ही दिनरात सोचते रहेंगे तो जीवन का आनंद कब लेंगे...हमेशा याद रखें कि *हमारी किसी के साथ भी यात्रा बहुत छोटी है...*
ये सच है कि हमारी यात्रा की लंबाई कोई नहीं जानता….कल किसी ने नहीं देखा….कोई नहीं जानता कि वह अपने पड़ाव पर कब पहुंचेगा। परंतु यह भी उतना ही सत्य है कि:
*साथ साथ हमारी यात्रा बहुत छोटी है...।*
इसलिए,आइए हम दोस्तों और परिवार की सराहना करें….उन्हें हमेशा खुश रखें...उनका सम्मान करें..उन्हें मान दें।
तभी तो हम स्वयं और शायद हमारे आसपास के लोग भी परस्पर खुशी,आनंद, प्रसन्नता और कृतज्ञता से भरे रहेंगे...।
*आखिर हमारी एक साथ यात्रा है ही कितनी.!!* (अनाम लेखक की अंग्रेजी कथा से प्रेरित)

आज क्यों जरूरी हैं रसखान और उनका रचना संसार..!!

यह महाकवि रसखान की समाधि है। भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त रसखान की स्मृति और वर्तमान परिदृश्य में हिंदू-मुस्लिम समभाव का एक सशक्त स्थल । उप्र के मथुरा के क़रीब गोकुल और महावन के बीच मां यमुना के आंचल में स्थित यह समाधि अपने अंदर पूरा इतिहास समेटे है। घने पेड़ों के बीच बनी रसखान की यह समाधि धर्मनिरपेक्ष सरकारों के दौर में रख रखाव के मामले में वाकई 'निरपेक्ष' ही थी पर 8 दिसंबर 2021 में इसकी क़िस्मत पलटी और करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए में इस समाधि का जीर्णोद्धार हुआ और तब जाकर इसे यह मौजूदा गौरवमयी स्वरूप मिला। चौतरफा घिरी हरियाली के बीच बेहद साफ-स्वच्छ रसखान समाधि स्थल आपको बरबस ही कुछ वक्त यहां बिताने के लिए मजबूर कर देता है। यहां निशुल्क विशाल पार्किंग के साथ बैठने की बढ़िया व्यवस्था है तो खानेपीने के लिए कैंटीन भी ।

समाधि स्थल पर लगे पटल के मुताबिक करीब 1551 ईस्वी में मुगल बादशाह हुमायूं के शासनकाल के अंतिम दौर में मची कलह से ऊबकर रसखान बृज भूमि में आ गए थे। ये दिल्ली के एक पठान सरदार थे लेकिन जब लौकिक प्रेम से कृष्ण प्रेम की ओर उन्मुख हुए तो जन्म जन्मांतर तक बृज के होकर रह गए। फिर गोस्वामी विट्ठलनाथ के सबसे बड़े कृपापात्र शिष्य बनकर रसखान ने अपने सहज, सरस, प्रवाहमय लेखन से कृष्ण की विभिन्न लीलाओं को घर घर तक पहुंचा दिया। बृजभाषा का ऐसा सहज प्रवाह अन्यत्र बहुत कम मिलता है। रसखान की रचनाओं में उल्लास, मादकता और उत्कटता तीनों का संयोग है और ब्रज भूमि के प्रति खास मोह भी। उप्र राज्य पुरातत्व विभाग के अनुसार रसखान के 53 दोहे वाले प्रेम वाटिका ग्रंथ के साथ साथ अब तक उनके 66 दोहे, 4 सोरठे, 225 सवैए, 20 कवित्त और 5 पद सहित कुल 310 छंद प्राप्त हुए हैं। उनकी सुजान रसखान भी एक अनमोल कृति है। 85 साल की आयु में 1618 ईस्वी में वे मानव शरीर त्यागकर ईश्वर की स्थाई शरण में चले गए।
आज के दौर में जब धर्म राजनीति का सबसे बड़ा असलहा बन रहा है तब रसखान, धार्मिक विवादों के बीच सफेद ध्वज लिए युद्ध विराम कराने वाले प्रेम और शान्ति के मसीहा नज़र आते हैं। बढ़ती धार्मिक वैमनस्यता की भड़कती आग के इस दौर में रसखान और उनकी रचनाएं शीतल जल की फुहार सी लगती हैं । उनके शब्दों में प्रेम बरसता है। प्रेम को परिभाषित करते हुए वे कहते हैं:
प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥
मुस्लिम रसखान न्यौछावर हैं कृष्ण पर, समर्पित हैं उनकी भक्ति के लिए और बृजभूमि के कण कण में बिखरे मानववाद के लिए । तभी तो उन्होंने लिखा है:
"मानुष हौं तो वही रसखानि
बसौ ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बसु
मेरा चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को
जो धर्यौ कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल-कदंब की डारन॥"
अपने इस पद में रसखान कहते हैं कि यदि मुझे आगामी जन्म में मनुष्य-योनि मिले तो मैं वही मनुष्य बनूँ जिसे ब्रज और गोकुल गाँव के ग्वालों के साथ रहने का अवसर मिले। यदि मुझे पशु-योनि मिले तो मेरा जन्म ब्रज या गोकुल में ही हो, ताकि मुझे नित्य नंद की गायों के मध्य विचरण करने का सौभाग्य प्राप्त हो सके। यदि मुझे पत्थर-योनि मिले तो मैं उसी पर्वत का एक भाग बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र का गर्व नष्ट करने के लिए अपने हाथ पर छाते की भाँति उठा लिया था। यदि मुझे पक्षी-योनि मिले, तो मैं ब्रज में ही जन्म पाऊँ ताकि मैं यमुना के तट पर खड़े हुए कदम्ब वृक्ष की डालियों में निवास कर सकूँ।
रसखान की रचनाओं को इसलिए गागर में सागर कहा जाता है क्योंकि इससे कम शब्दों में बृज भूमि की इससे बेहतर व्याख्या और कौन कर सकता है। कृष्ण की बात हो, बृज भूमि की चर्चा निकले और रसखान का ज़िक्र न आएं तो कुछ अधूरा सा लगता है बिल्कुल वैसे ही जैसे सम्पूर्ण भोजन के बाद मीठे से जो तृप्ति मिलती है । कृष्ण की लीलाओं के रसखान के शब्दों में ढलने से वैसा ही आनंद आता है जैसे खाने के बाद कोई पान प्रेमी अपना मनपसंद पान मुंह में दबाकर टहलते हुए उस का बूंद बूंद रसपान करता है । कृष्ण और बृज पर रसखान के दोहे,सोरठे, सवैया और पद पढ़कर कुछ कुछ वैसा ही सुख आता है।
आखिर कुछ तो अनूठा और दिव्य था कृष्ण में तभी तो वे वासुदेव, मोहन, द्वारिकाधीश, केशव, गोपाल, नंदलाल, बाँके बिहारी, कन्हैया, गिरधारी, मुरारी, मुकुंद, गोविन्द, यदुनन्दन, रणछोड़, कान्हा, गिरधर, माधव, मधुसूदन, बंशीधर, और मुरलीधर जैसे विविध नामों से हमारे आसपास मौजूद हैं..और तभी रसखान उनके अनूठे रूप का वर्णन कुछ इस तरह करते हैं:
धूरि भरे अति शोभित श्याम जू,
तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरैं अँगना,
पग पैंजनिया कटि पीरी कछौटी।।
वा छवि को रसखान विलोकत,
वारत काम कलानिधि कोटी
काग के भाग कहा कहिए
हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।
शायद योगेश्वर श्रीकृष्ण का यही आकर्षण मीरा से राधा तक,सुदामा से उद्धव तक और सूरदास से रसखान तक को देश के कौने कौने से जाति धर्म संप्रदाय और ऊंच नीच की तमाम बेड़ियों को तोड़कर बृज भूमि और कृष्ण की ओर खींच लाता है।

ये दाल टिक्कड़ है

 

ये दाल टिक्कड़ है..देशी घी में लहालोट मतलब तरबतर गरमागरम टिक्कड़ और हरी मिर्च के साथ बघारी (फ्राई) गई दाल…इसकी खुशबू और स्वाद के आगे शाही पनीर और मलाई कोफ्ते की भी क्या बिसात।

हाल ही में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मप्र के श्योपुर जिले के कूनो नेशनल पार्क और कराहल आए तो उनकी यात्रा को आकाशवाणी भोपाल और #दिल्ली के जरिए देशभर के श्रोताओं तक पहुंचाने के लिए हम भी वहां पहुंचे। चूंकि, भोपाल से श्योपुर क़रीब साढ़े तीन सौ से चार सौ किमी दूर है इसलिए राष्ट्रीय राजमार्ग होने के बाद भी छह से आठ घंटे लग ही जाते हैं। ऐसे में खाने के लिए कुछ नया तलाशने की अपनी आदत के चलते हम गुना के आसपास जाट साहब के इस ढाबे पर पहुंच गए। यहां आए तो थे चाय की तलब लेकर लेकिन अनुशासित ढंग से सजे टिक्कड़ ने अपनी ओर ललचाया और हम भी इनसे मुलाकात करने से अपनी जीभ को नहीं रोक पाए ।
..अगर, अब तक न बूझ पाएं हों तो जान लीजिए कि ये गक्कड़ का करीबी रिश्तेदार और हमारी बाटी से अगली पीढ़ी का सदस्य है। दरअसल, पुराने जमाने मे जब यात्री पैदल ही सैकड़ों मील का सफर करते थे तब सीमित संसाधनों में रोटी/पूरी/पराठा या नान तो बन नहीं सकता था इसलिए शायद पेट भरने के लिए टिक्कड़/गक्कड़ का जन्म हुआ था । अब यह कुछ होटलों के महंगे मैन्यू में भी शान और मान सम्मान के साथ मौजूद है।
हमारी नई पीढ़ी की जानकारी के लिए टिक्कड़ गेहूं के मोटे पिसे आटे की छोटे आकार की मोटी रोटी है, जिसे सीधे बिना तवे का उपयोग किये कंडे/उपले की आंच पर सेंक कर बनाया जाता है। हालांकि जाट साहब के इस ढाबे पर इसे सेंकने के लिए मिट्टी के उल्टे तवे का इस्तेमाल हो रहा है। टिक्कड़ की जोड़ी बैगन के भरते या दाल के साथ ज्यादा जमती है । समझने के लिए लिट्टी चोखा और दाल बाटी भी टिक्कड़ के खानदान के ही हैं। दाल बाफले को भी इनका कुछ रईस टाइप का रिश्तेदार मान सकते हैं। नए दौर के बच्चे इसे बिना स्टफिंग वाला बटर पिज़्ज़ा या आटे का पिज़्ज़ा बेस भी मान सकते हैं। करीब सौ रुपए में चार टुकड़ों में विभाजित दो टिक्कड़ और कटोरी भर दाल आपका मन और पेट दोनों भरने के लिए पर्याप्त है।
तो,कभी घर में फुरसत में टिक्कड़ और दाल की जोड़ी बनाइए..खाइए और खिलाइए, लेकिन एक सलाह भी.. टिक्कड़ को अच्छे से सेंकिए वरना यह पेट में गुड़गुड़ का कारण भी बन सकता है।

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...