बचपन ने दादी दो कंजूस भाइयों की कहानी सुनाती थी वह कहानी सार में इस प्रकार थी कि दो भाई बहुत कंजूसी से रहते थे.वे देसी घी को सदैव अलमारी में बंद कर के रखते थे जब रोटी खानी हो तो वे रोटी के ऊपर घी का डिब्बा घुमा लेते थे और मज़ा लेकर खा लेते थे.एक बार बड़ा भाई दो दिन के लिए बाहर गया और घी का डिब्बा अलमारी में बंद कर गया.जब वह लौटकर आया तो दुखी होकर छोटे भाई से कहने लगा कि मेरी वज़ह से तुझे दो दिन बिना घी के रोटी खानी पड़ी?इसपर छोटे भाई ने कहा नहीं भईया में अलमारी के ताले के आस-पास रोटी घुमा लेता था और मज़े से खा लेता था.इतना सुनते ही बड़े भाई ने उसे एक झापड़ लगाते हुए कहा कि तू दो दिन भी बिना घी के रोटी नहीं खा सकता?
यह पढने ने भले ही आश्चर्य जनक लगे पर हमें भविष्य मेंइस स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि घी ही क्या फल,सब्जी,सोना-चाँदी तथा अन्य रोजमर्रा कि चीजों के दम जिस तरह से आसमान छू रहे हैं उससे तो लगता है कि हमारी आने वाली पीढ़ी को देसी घी मुजियम में देखने को मिलेगा और सोने-चाँदी के जेवरात केवल तस्वीरों में नज़र आयेंगे.आज हम जिस तरह चटनी खा रहे हैं उस तरह भविष्य में सब्जी खायी जाएगी और कई सब्जिओं के बारे में बोटनी कि प्रयोगशालाओं में पढाया और दिखाया जायेगा क्यूकि बाज़ार में तो वे मिलेंगी ही नहीं.
ये कई मनगढ़ंत बात नहीं है बल्कि भारत सरकार के आंकड़े ही बताते हैं कि अभी भी मुद्रा स्फीति कि दर सर्कार के काबू से बाहर हो गयी है. सरकार के मुताबिक ढूध कि कीमतों में २१.९५ फीसदी का इजाफा हो चूका है.दल में ३०.४२ प्रतिशत का,सब्जिओं में ३१.९० का,ईंधन में १२.५५ का ,स्टील में ११.४० प्रतिशत का इजाफा हुआ है.यही हाल बाकी वस्तुओं का है.सोने-चाँदी के बारे में कुछ कहना सूरज को दिया दिखने के सामान है क्योंकि इनकी कीमतें तो इनकी कीमतें तो रोज ही नए रिकोर्ड बना रही हैं.खुद वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी मानते हैं कि मुद्रा स्फीति के और भी बढ़ने कि सम्भावना है.इसका मतलब है कि झोला भरकर पैसे (रूपये)ले कर बाज़ार जाओ और जेब में खाने-पीने का सामान रखकर लाओ.
“जुगाली” समाज में आमतौर पर व्याप्त छोटी परन्तु गहराई तक असर करने वाली बुराइयों, कुरीतियों और समस्याओं पर ‘बौद्धिक विलाप’ कर अपने मन का बोझ हल्का करने और अन्य जुगाली-बाज़ों के साथ मिलकर इन बुराइयों को दूर करने के लिए एक अभियान है. आप भी इस मुहिम का हिस्सा बनकर बदलाव के इस प्रयास में भागीदार बन सकते हैं..
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sahi kaha yahi haal hone wala hai...jhola bhar ke jaayenge muththi bhar ke laayenge...
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है...ऐसी स्थिति आ जाये तो कोई आश्चर्य नहीं :)..सरकार कहेगी हम तो आप की सेहत का ख्याल ही तो रख रहे हैं..घी /चीनी दूर रख कर!
जवाब देंहटाएं-------------
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[शुक्रिया ,आप ने मेरे प्रयास को सराहा.]
परसों ही एचएमएस एग्रो प्रोटीन लिमिटेड ने १०० फीसदी शुद्ध देशी घी देने का दावा करते हुए "संबंध" ब्रांड को दिल्ली में लांच किया। जिसके ब्रांड एंबेसडर धर्मेंद्र बने हैं। एक लि. पैक की कीमत ३५० रुपए है। सही है,धर्मेंद्र के वश का ही है ऐसी घी खाना।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब. महंगाई आज का रोना नहीं है, 1974 की मनोजकुमार की फिल्म रोटी-कपडा और मकान में इसी बात का रोना रोया जा चुका है, अब 36 साल बाद भी स्थिति वैसी ही है.कि झोला भरकर पैसा ले जाओ, और मुट्ठी में सामान ले आओ. इस बात पर राष्ट्रीय बहस होना चाहिए कि जब देश वही है, उत्पादन वही है, तो आखिर महंगाई क्यों बढ़ रही है? किसी भी सरकार की प्राथमिकता सबसे पहले सड़क होना चाहिए उसके बाद बिजली और पानी मगर, आज़ादी के 63 साल बाद भी न सड़क है, न पानी, न बिजली. विकास की कितनी कीमत वसूली जायेगी, आश्चर्य होता है कि हर साल देशवासियों से अरबों रूपये के टैक्स वसूले जाने के बाद भी देश पर विदेशी कर्ज़ा हर साल बढ़ता जा रहा है.देसी घी तो वैसे भी अभी से म्यूजियम में रखने लायक दुर्लभ खाद्य हो चुका है, यदि आज किसी को शुद्ध देसी घी खिला दिया जाए तो वह बीमार पद सकता है, दरअसल हमारा शरीर भी अब धीरे-धीरे इन चीज़ों को हज़म करने की क्षमता खो चुका है, इन चीज़ों के बारे में ज़्यादा लिखने-पढने से भी बीमार हो सकते हैं. आपका धन्यवाद कि आपने अरसे बाद घी की याद दिलवाई, मनो-मस्तिष्क पर इसकी यादें धुंधला सी गईं थी.
जवाब देंहटाएंइसीलिये हम सब्जी की खेती करने की सोच रहे हैं, जिससे कम से कम थोड़ी बहुत सब्जी तो लोगों को नसीब हो।
जवाब देंहटाएं"घी मिलेगा मुज़ियम में और सब्जी हो जायगी चटनी"
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha sir ji...
kunwar ji,