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राष्ट्रपति निवास,नाटी किंग और लज़ीज़ धाम

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175 साल का सफर पूरा कर रहे मशोबरा के राष्ट्रपति निवास की पृष्ठभूमि, पहाड़ों पर बहती ठंडी हवा, देवदार के घने जंगलों से गुजरकर आती भीनी भीनी खुशबू, लोकधुनों की मिठास और हिमाचल के पारंपरिक धाम की लज़ीज़ महक और इन सबके साथ नाटी किंग कुलदीप शर्मा और उनकी दिलकश आवाज पर झूमते लोग…किसी भी दिन का इससे बेहतर आगाज और क्या हो सकता है। तकरीबन चार घंटे का वक्त किसी मनपसंद फिल्म की तरह कब गुजर गया,पता ही नहीं चला। जब चलने की बारी आई तो मन ने कहा कुछ देर और ठहर जाएं लेकिन जिम्मेदारी ने कहा और ठहरे तो फिर काम का क्या होगा क्योंकि जो देखा है उसे ख़बर बनाकर मीडिया के साथियों को भी तो भेजना है। तभी तो, हिमाचल के लोगों को पता चल पाएगा कि राज्य में सांस्कृतिक मोर्चे पर कितना कुछ हो रहा है। दरअसल, राष्ट्रपति निवास, शिमला में शनिवार एक नवंबर को सालाना शरद उत्सव का आयोजन किया गया था। यह तारीख हमारे लिए तो वैसे भी खास है क्योंकि यह हमारे राज्य मध्यप्रदेश का स्थापना दिवस है और यदि आज हिमाचल प्रदेश में नहीं होते तो पक्का भोपाल में किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा होते। शायद, मन को पढ़कर यह अवसर खुद चलकर हमारे ...

नए राज्य: विकास, चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ

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बहु भाषा बोली, विविध संस्कृति, खानपान, क्षेत्रीय ढांचा, विशाल क्षेत्रफल से परिपूर्ण हमारा देश अपनी प्रशासनिक और क्षेत्रीय जटिलताओं के कारण हमेशा से ही दुनिया भर के आकर्षण का केंद्र रहा है। स्वतंत्रता के बाद से ही देश में नए राज्यों के गठन की मांग उठती रही है और तत्कालीन सरकारों ने समय समय पर क्षेत्रीय, भाषाई और विकास की जरूरत के आधार पर इन मांगों को पूरा भी किया है।    यदि हाल के वर्षों की बात करें तो वर्ष 2000 में एक साथ तीन राज्यों छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड के गठन ने भारत के संघीय ढांचे में एक नया अध्याय जोड़ दिया था। ये तीनों राज्य अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे कर चुके हैं और इस अवधि में इन्होंने विकास, नवाचार और सामाजिक-आर्थिक प्रगति के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं।  हालांकि, नए राज्यों के गठन के साथ देश में प्रशासनिक खर्चों में वृद्धि, संसाधनों के बंटवारे की चुनौतियाँ और क्षेत्रीय असंतुलन जैसे मुद्दे भी सामने आए हैं लेकिन इन राज्यों की विकास यात्रा ने कई नए राज्यों की उम्मीदों को भी जन्म दिया है। भविष्य में नए राज्यों के गठन के फायदे और नुकस...

70 साल बाद भी 'यंग' है आकाशवाणी का भोपाल केंद्र..!!

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मध्यप्रदेश में राजधानी भोपाल के सबसे खूबसूरत और वीवीआईपी इलाके श्यामला हिल्स में बने आकाशवाणी केंद्र में बारिश के बाद हल्की ठंडक है। सुबह सुबह स्टूडियो में मानस गान के बाद संगीत की स्वर लहरी बह रही है, जबकि पास ही न्यूज रीडर प्रदेश भर के श्रोताओं को लाइव ताजातरीन खबरें सुनाने के लिए स्वयं को तैयार कर रहा है। बाहर पार्किंग में आकाशवाणी से जुड़े स्टाफ की आवा जाही शुरू हो गई है और यहां के शांत वातावरण में कारों के हॉर्न की आवाजें गूंज रही हैं। आज यह केंद्र अपना 70 वां स्थापना दिवस मना रहा है, लेकिन उत्साह और युवा ऊर्जा से लबरेज इस केंद्र को देखकर लगता है जैसे यह कल ही शुरू हुआ हो।  सात दशक पहले, 1956 में 31 अक्टूबर को और मध्यप्रदेश के बनने से महज एक दिन पहले भोपाल के काशाना बंगले में स्थापित यह केंद्र आज भी शिक्षा, मनोरंजन, सूचना' के मंत्र को जीवंत बनाए हुए है। यही वजह है कि 70 साल बाद भी, यह केंद्र युवा ही लगता है। आकाशवाणी भोपाल का सफर भारत के रेडियो इतिहास से जुड़ा है। 1927 में मुंबई और कोलकाता में निजी ट्रांसमीटरों से रेडियो प्रसारण की शुरुआत हुई, लेकिन 1936 में इसे 'ऑल इंडिया...

8 हजार फीट ऊंचे शिखर पर 108 फीट के हनुमान…अद्भुत!!

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हिमाचल प्रदेश में ‘क्वीन ऑफ हिल्स’ शिमला के सबसे लोकप्रिय स्थान मॉल रोड पहुंचते ही दूर पर्वत की चोटी पर विराजमान पवनपुत्र हनुमान जी की प्रतिमा बरबस ही सभी का ध्यान खींच लेती है। इस प्रतिमा और बादलों की आंख मिचौली से शिमला के बदलते मौसम का अंदाजा भी लगता रहता है क्योंकि कभी यह प्रतिमा बादलों में छिपकर अदृश्य हो जाती है तो कभी सूर्य की किरणें को आत्मसात कर दिव्यता से चमकने लगती है।  यह प्रतिमा इस तरीके से स्थापित की गई है कि मॉल रोड से लेकर इसके आसपास के कई इलाकों से आप हनुमान जी के दर्शन कर सकते हैं और अब यह मॉल रोड के एक प्रमुख आकर्षणों में से एक है। इस पहाड़ को जाखू हिल्स और हनुमान जी को ‘शिमला के रक्षक’ कहा जाता है। आख़िर, हनुमान चालीसा में ऐसे ही थोड़ी लिखा गया है..’तुम रक्षक काहू से डरना।’ जाखू वाले हनुमान जी केवल एक मंदिर या पर्यटन स्थल नहीं है बल्कि यहां की गाथा रामायण काल से जुड़ी है और यह अकाट्य आस्था का स्थान है। शिमला की ऊंची चोटियों के बीच, समुद्र तल से लगभग 8 हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित यह जाखू मंदिर आस्था, प्रकृति और रोमांच का एक अद्भुत संगम है एवं शिमला के 'ताज' से...

क्या है शिमला का इटली से प्राकृतिक कनेक्शन..!!

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क्वीन ऑफ हिल्स शिमला के बारे में यह तो सभी को पता है कि अंग्रेजों ने अपने आराम के लिए इस स्थान को सजाया संवारा था लेकिन यहां इटेलियन कनेक्शन भी है। अंग्रेजों ने भले ही इसे सत्ता प्रतिष्ठान का केंद्र बनाया था और यहां की वादियों से देश दुनिया को रूबरू कराया लेकिन अन्य देशों के लोग भी शिमला के कैनवास को अपने रंगों से रंगने में पीछे नहीं रहे हैं। इसी शृंखला में एक बेहतरीन स्थान है - क्रेग्नानो नेचर पार्क।  क्रेग्नानो नेचर पार्क प्रकृति के चितेरो के लिए एक ऐसा कैनवास है जिसपर वे अपनी कलात्मकता से नए नए रंग भर सकते हैं, मनमाफिक पटकथा लिख सकते हैं और सुकून और सेहत के खुशनुमा पल गुजार सकते हैं। देवदार, चीड़ और चिनार के पत्तों के बीच से झांकती सूरज की नटखट किरणें हो या खूबसूरत फूलों पर अठखेलियां करती रंग बिरंगी तितलियां या पक्षियों के कलरव से उपजा दिलकश संगीत..या फिर अनोखी दिल को छू लेने वाली शांति। यहां आकर आपको प्रकृति से निकटता का अनूठा अनुभव होता है।   शिमला से मशोबरा की ओर तथा लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित इस क्रैग्नानो नेचर पार्क तक महज 40 मिनट की हरीभरी और ऊंचे देवदार की छत्रछ...

इस बार जलाएं एक दिया उम्मीदों का..!!

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फोन में घुसकर ऑनलाइन लाइटिंग,सजावट का सामान और कपड़े तलाशने में समय बर्बाद करने की बजाए एक बार सपरिवार घर से बाहर निकलिए और सड़क पर दिए बेचती बूढ़ी अम्मा की आंखों में पलती उम्मीदों की रोशनी देखिए या फिर रंगोली के रंग फैलाए उस नहीं सी बालिका के चेहरे पर चढ़ते उतरते रंग महसूस कीजिए..क्या आप हम इस बार ऐसे ही किसी व्यक्ति/परिवार के घर में उम्मीदों का दिया नहीं जला सकते?  हमें करना ही क्या है…बस,इस बार स्थानीय और खासतौर पर पटरी पर बाज़ार सजाने वालों से खरीददारी करनी है और अपने बच्चों में भी यही आदत डालनी है।  जाहिर सी बात है रोशनी, खुशहाली, समृद्धि और सामूहिकता का पर्व दीपावली क़रीब है। घर घर में सफाई,रंगाई पुताई और दीप पर्व से जुड़ी तैयारियों का दौर जारी है इसलिए सामान खरीदने का दौर भी शुरू हो गया है।  दीप पर्व केवल रोशनी और खुशियों का प्रतीक भर नहीं है, बल्कि यह सामुदायिक एकजुटता और आर्थिक सहयोग का भी अवसर है। इसलिए,इस दीवाली जब हम बाजारों में रंग-बिरंगे दीयों, मिठाइयों, और सजावटी सामानों की खरीदारी के लिए निकलें, तो अपनी आदत में क्यों न एक छोटा सा बदलाव लाएं ?  इस बार,...

‘मन की बात’ कैसे बनी जन जन की बात..!!

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रविवार को सुबह 11 बजे आकाशवाणी और दूरदर्शन से लेकर विभिन्न संचार माध्यमों पर गूंजने वाली आवाज ‘मेरे प्यारे देशवासियों’ अब न केवल मासिक मंत्र बन गई है बल्कि जन संवाद की पहचान भी है। इसे हम सभी मन की बात कार्यक्रम के नाम से जानते हैं जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशवासियों के साथ अराजनीतिक और प्रेरक संवाद करते हैं। 3 अक्टूबर को इस कार्यक्रम की 11वीं वर्षगांठ है। दरअसल श्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के करीब 5 महीने बाद बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व विजयादशमी के दिन 3 अक्टूबर 2014 को अपने इस सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यक्रम ‘मन की बात’ की शुरुआत की थी। आज यह कार्यक्रम महीने के आखिरी रविवार की पहचान और एक अनिवार्य जरूरत बन गया है। इस कार्यक्रम को रेडियो माध्यम को नया जन्म देने की दिशा में मील का पत्थर माना जाता है। खास तौर पर जब दुनिया संचार के नए युग के विभिन्न प्लेटफॉर्म के पीछे भाग रही हो तब किसी राष्ट्र प्रमुख द्वारा पारंपरिक और केवल आवाज़ पर केंद्रित माध्यम पर विश्वास जताना वाकई प्रशंसनीय एवं अचरज भरा प्रयास था लेकिन आज मन की बात कार्यक्रम के सवा...

शिव और प्रकृति का मेल है डमरू घाटी

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मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के  गाडरवारा शहर के करीब स्थित डमरू घाटी एक ऐसा धार्मिक स्थल है, जो प्रकृति की गोद में बसा होने के कारण भक्तों के मन को मोह लेता है। यह घाटी शक्कर नदी के तट पर स्थित है, जो नर्मदा की सहायक नदियों में से एक है।  घाटी का आकार भगवान शिव के डमरू के समान होने के कारण इसका नाम 'डमरू घाटी' पड़ा है। यहाँ की शांत वादियाँ और हरे-भरे पेड़ प्रकृति प्रेमियों को भी आकर्षित करते हैं। गाडरवारा पहले से ही आचार्य रजनीश (ओशो) के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का उद्घाटन 1980 के दशक में हुआ, और तब से यह शिवभक्तों का प्रमुख केंद्र बन गया है। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है इसका विशाल शिवलिंग, जो मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है। यह शिवलिंग लगभग 20-21 फुट ऊँचा है।  डमरू घाटी का वातावरण इतना शांतिपूर्ण है कि आने वाला हर यात्री मन की शांति का अनुभव करता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है, जिसमें विभिन्न भागों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।  डमरू घाटी न केवल एक मंदिर है, बल्कि भक्ति, प्रकृति और स्थानीय संस्कृति का जीवंत चित्रण है। यद...

केवल गंभीर नहीं, विनोदप्रिय भी थे बापू

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आज 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन है। आज अगर बापू हमारे बीच होते तो वे 156 साल के होते लेकिन कहते हैं न कि उम्र बड़ी नहीं होनी चाहिए बल्कि जीवन में किए गए कार्य बड़े होने चाहिए और यह बात मोहनदास करमचंद गांधी पर सौ फीसदी लागू होती है। महात्मा गांधी अपने कार्यों, आदर्शों, विचारों, सिद्धांतों और जीवन के उदाहरणों से इतना ऊंचा दर्जा रखते हैं कि देश क्या, दुनिया में उनकी बराबरी का कोई और शख्स नहीं दिखता। आमतौर पर गांधीजी जी की छवि को गंभीर, अत्यधिक अनुशासित और नीरस आंका जाता है लेकिन असलियत यह है कि गांधीजी विनोदप्रियता और हंसी मजाक में किसी से कम नहीं थे लेकिन गांधीजी की विनोदप्रियता में सबसे बड़ा अंतर यह था कि महात्मा गांधी का हास्य केवल मनोरंजन के लिए नहीं था, बल्कि उसमें हमेशा गहरा संदेश छिपा होता था। हम यह कह सकते हैं कि महात्मा गांधी का व्यक्तित्व जितना गंभीर, त्यागपूर्ण और आदर्शवादी था, उतना ही सहज और विनोदी भी था। उनका हास्य-बोध भी उनके अन्य कार्यों की तरह असाधारण था। अपनी विनोदप्रियता के कारण ही वे कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सहज भाव बनाए रखते थे ।  गांधी...

जिंदगी के खट्टे मीठे अनुभवों का खजाना है ‘थैंक यू यारा’

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‘थैंक यू यार’ एक ऐसा कहानी संग्रह है, जिसमें दस भावनात्मक और संवेदनशील कहानियाँ शामिल हैं, जो हमारे आसपास की रोज़मर्रा की जिंदगी, मानवीय रिश्तों और सामाजिक परिस्थितियों को गहराई से उकेरती हैं। यह संग्रह पाठकों को भावनाओं के एक गहरे समुद्र में ले जाता है, जहाँ प्रेम, दुख, संघर्ष, और उम्मीद की बारीकियां हर कहानी में स्पष्ट रूप से झलकती हैं। #थैंकयूयारा की कहानियाँ सामान्य लोगों के जीवन, उनके छोटे-छोटे सपनों, और रोज़मर्रा के संघर्षों को केंद्र में रखती हैं। ये कहानियाँ न केवल भावनात्मक गहराई लिए हुए हैं, बल्कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक परतों को भी उजागर करती हैं। ‘कटघरे’ से लेकर ‘यूं भी होता है’ तक संग्रह की हर कहानी एक अलग रंग और स्वाद लिए हुए है, फिर भी सभी में एक सामान्य सूत्र है—मानवीय संवेदनाओं का चित्रण और जीवन की साधारण परिस्थितियों में छिपी असाधारणता । ‘थैंक यू यारा’ संग्रह की तमाम कहानियाँ सीधे हमारे दिल को छूती हैं। चाहे वह ‘कटघरे’ कहानी में एक शिक्षक शबनम में अपने छात्र विजय भूषण के प्रति अपने बच्चे जैसी तड़प हो, ‘दूर्वा’ में शिक्षक और छात्रा रुचिरा के बीच मार्गदर्शन की गर्माहट ह...

हिमाचल में फलों का गोविंदा...!!

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न न, यह टमाटर नहीं है और न ही तेंदू है। रंग भले ही नारंगी है परन्तु संतरा भी नहीं है। यह है हिमाचल का अमर फल या चीनी सेब…जो स्वाद और सेहत का खजाना है। फिल्मों में जैसे पहले मिथुन चक्रवर्ती और बाद में गोविंदा को गरीबों का अमिताभ बच्चन कहा जाता था इसी तरह इस फल को भी पहले गरीबों का सेब कहा जाता था लेकिन धीरे धीरे इसने अपने स्वाद,कीमत और सेहत से भरपूर गुणों के कारण अलग पहचान कायम कर ली है..और अब यह सेब का विकल्प बन रहा है। स्थानीय भाषा में इसे 'जापानी फल' या 'काकी' कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Diospyros kaki है और पहली बार 1940 के दशक में शिमला के नारकंडा इलाके में इसका पदार्पण माना जाता है।  वैसे, अपने जन्मस्थान जापान में इसका मूल नाम काकी है, जिसका अर्थ होता है देवताओं का फल। अंग्रेजी में इसे पर्सिमन (Persimmon) के नाम से जाना जाता है। इजराइल में इसे शैरॉन फ्रूट तो कुछ देशों एबेन फ्रूट कहा जाता है। हिमाचल में इसे लंबे समय तक खराब नहीं होने के कारण अमर फल और सेब से सस्ता और उसका विकल्प होने के कारण चीनी सेब भी कहा जाता है। दूर से टमाटर की तरह दिखने वाला यह चमकीला नारंग...

ये Gen Z- जेन जी क्या है..ये जेन जी?

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जब से नेपाल में आंदोलन और सत्ता में बदलाव की खबरें मीडिया में दौड़ रही हैं तब से ‘जेन जी’ और ‘नेपो किड्स’ जैसे शब्द घर-घर में सुनाई देने लगे हैं। हालांकि नेपो किड्स हमारे देश में नया शब्द नहीं है क्योंकि मनोरंजन जगत और खासतौर पर बॉलीवुड, खेल, व्यवसाय एवं राजनीति जैसे तमाम क्षेत्रों में इसका भरपूर इस्तेमाल होता आ रहा है।   सामान्य रूप से समझे तो नेपो किड्स  (Nepo Kids) शब्द नेपोटिज्म (Nepotism) से लिया गया है, जिसका सामान्य अर्थ है भाई-भतीजावाद। यह तमगा उन युवाओं के लिए इस्तेमाल होता है जो अपने परिवार के प्रभाव के कारण राजनीति,मनोरंजन, फिल्म, खेल, व्यवसाय जैसे विभिन्न क्षेत्रों में आसानी से अवसर प्राप्त कर लेते हैं। इन पर यह आरोप लगता है कि वे प्रतिभा या मेहनत के बजाय अपने परिवार के नाम पर सफलता हासिल कर रहे हैं। हालांकि कई मामलों में यह बात सही नहीं है क्योंकि नेपो किड्स में कई युवा वाकई प्रतिभाशाली होते हैं और वे अपनी लगन, मेहनत और कौशल से लंबी रेस का घोड़ा साबित होते हैं।   जहां तक मौजूदा वक्त के सबसे चर्चित शब्द ‘Gen Z’ या जेनरेशन Z की बात है तो यह शब्द आमतौर...

और हमने नलिनी के ‘गुलाब जामुन’ खा ही लिए..!!

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हिल क्वीन शिमला में आमद दर्ज कराने के बाद से ही दोस्तों/परिचितों और शुभ चिंतकों ने सुझाव देना शुरू कर दिया था कि शिमला में क्या करना है और क्या नहीं, कहां घूमना है और पता नहीं क्या क्या। खाने पीने को लेकर भी आमतौर पर सुझाव मिलते रहते हैं। सेव और ताजे पहाड़ी फलों का स्वाद लेने के साथ एक सुझाव दो तीन जगह से आया कि  शिमला में नलिनी के गुलाब जामुन जरूर खाना। अब तक तो हम नलिनी को साड़ी के मशहूर ब्रांड के तौर पर जानते थे, लेकिन गुलाब जामुन का ब्रांड..!!  गुलाब जामुन का ज़िक्र हो और मुंह में पानी न आए,ऐसा संभव ही नहीं है। यह छोटा-सा सुनहरा गोला अपने अंदर स्वाद और नफासत का पूरा रुतबा समेटे है। यह न केवल स्वाद की दुनिया का कोहिनूर है, बल्कि भारतीय पर्वों, घरेलू आयोजनों और शादी ब्याह जैसे आयोजनों का अनिवार्य हिस्सा भी है इसलिए, सोशल मीडिया के इन्फ्लुएंसर्स की मीठे से परहेज करने की तमाम चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए हम नलिनी तक पहुंच ही गए।   माना जाता है कि गुलाब जामुन की जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप में खोया और चाशनी की परंपरा में पगी और बढ़ी हैं। हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह...

देवभूमि में क्यों बेखौफ नाच रहीं हैं डायन…!!

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देवभूमि में डायनों का क्या काम? तो फिर हिमाचल में इन दिनों डायन या चुड़ैल क्यों नाच रही हैं ? और ऐसा क्या है कि आम लोग भी उनका रंग रूप धरकर नाचने गाने में मशगूल है? क्यों महिलाएं घर में बैठकर कभी डायन की नाक तो कभी हाथ पैर काट रही है ? और डायनों के इतने खुले प्रदर्शन के बाद भी देवता क्यों चुप है? आप भी यह सब सवाल पढ़कर चौंक रहे होंगे और अचरज में पड़ना लाजमी भी है क्योंकि देवभूमि हिमाचल प्रदेश में जहां पग पग पर देवताओं का वास है ऐसे में किसी भी बुरी आत्मा की मौजूदगी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। लेकिन भाद्रपद मास की अमावस्या पर करीब दो दिन तक राज्य के कई इलाकों में कथित तौर पर डायनों का बोलबाला रहता है।कहीं यह स्थिति जन्माष्टमी के हफ्ते भर बाद बनती है तो कहीं रक्षाबंधन के पखवाड़े भर बाद।   दरअसल,हिमाचल प्रदेश की धरती अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ साथ समृद्ध लोक संस्कृति के लिए भी जानी जाती है। यहां के पर्व, मेलों और परंपराओं में पहाड़ के लोगों की आस्था, डर, विश्वास और सामूहिक जीवन की झलक मिलती है। इन्हीं लोकपर्वों में से एक है डगैली पर्व, जो इन दिनों मनाया जाता है। इसे डगयाली, ...

सौम्य सूरज का मतवाला अंदाज़

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लगातार कई दिन की घनघोर और तबाही भरी बारिश के बाद शिमला में आज शाम को सूरज ने बादलों का सीना चीरकर अपनी आमद दर्ज करा ही दी।  जब देशभर में सूरज ढल रहा हो तब पहाड़ों की रानी के माथे पर सूरज निकलना प्रकृति का जादू ही है।  बादलों और बूंदों में जकड़े पहाड़ भी सूरज की शह पाकर जकड़न को तोड़कर चमक उठे।  सूरज की किरणें अपनी सुनहरी तूलिका से पाइन और देवदार के पेड़ों के साथ साथ लाल हरी छतों पर हल्के-हल्के रंग बिखेर रहीं हैं। गीली मिट्टी की सोंधी खुशबू हवा में तैर रही है, और कोहरे की पतली चादर धीरे-धीरे हट रही है, मानो सूरज के स्वागत में रास्ता दे रही हो।  कई दिन बाद सूरज भी पूरी सौम्यता से बादल और बूंदों के रथ पर सवार मतवाला होकर अपने प्रिय पहाड़ों से मिलने आ गया है। पेड़ों की पत्तियों पर कब्जा जमाए बूंदों की लड़ियां भी चमकने लगी हैं जैसे सूरज के स्वागत में वंदनवार सज गए हो । रिज (आम बोलचाल में मॉल रोड) पर खड़े होकर देखो, तो लगता है सूरज ने बादलों के साथ लुकाछिपी का खेल खत्म कर दिया है।  कल तक बारिश की मोटी और ढीठ बूंदे में छिपी दूर हिमालय की चोटियाँ अब सुनहरे और गुलाबी रंग...

हंगामा है क्यों बरपा..शादी ही तो की है!!

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गुलाम अली की यह एक लोकप्रिय ग़ज़ल है- ‘हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है, डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है।’ अकबर इलाहाबादी की लिखी इस ग़ज़ल का मतलब है- ‘ जरा सी बात पर बेवजह शोर क्यों मचा है, क्यों हंगामा कर रहे हैं।’ इस ग़ज़ल का उल्लेख इसलिए क्योंकि कुछ इसी तरह के हंगामे की स्थिति देश के सोशल मीडिया और मीडिया की ‘वायरल प्रवृत्ति’ ने हिमाचल प्रदेश में हुई एक शादी को लेकर बना रखी है। उनके लिए यह शादी किसी अजूबे से कम नहीं है और जब विषय वायरल होने का माद्दा रखता हो तो फिर सोशल मीडिया के वीर कैसे पीछे रह सकते हैं।  दरअसल,हिमाचल प्रदेश में हाटी समुदाय के दो भाइयों द्वारा एक ही लड़की के साथ विवाह करने के मामले ने ऐसा तूल पकड़ा कि देश तो देश, विदेशी मीडिया हाउस भी इसमें दिलचस्पी दिखाने लगे। सामान्य रूप से सामाजिक परंपराओं के लिहाज से यह विवाह अलग और अनूठा भी है लेकिन उस क्षेत्र और समुदाय के लिए सामान्य बात है।  यही वजह है कि जब मीडिया ने उस गांव या समुदाय के लोगों से इस विवाह पर प्रतिक्रिया मांगी तो अधिकतर का यही उत्तर था कि इसमें नई बात क्या है? इनका कहना गलत भी नहीं...

फिल्म शोले में गीत-संगीत: कालजयी विरासत

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भारतीय सिनेमा के इतिहास में कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जो अपनी कहानी, किरदारों और संगीत के दम पर अमर हो जाती हैं। रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित 1975 में रिलीज़ हुई फिल्म शोले ऐसी ही एक कृति है, जिसने न केवल भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी, बल्कि इसके गीत-संगीत ने भी दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी।  शोले का संगीत, जिसे संगीतकार आर.डी. बर्मन और पंचम दा के नाम से लोकप्रिय  राहुल देव बर्मन ने तैयार किया, और जिसके बोल आनंद बख्शी ने लिखे, आज भी उतना ही ताज़ा और प्रासंगिक है, जितना वह अपने समय में था।   शोले का संगीत अपने आप में एक अनूठा मिश्रण है, जिसमें भारतीय और पश्चिमी संगीत का सामंजस्य देखने को मिलता है।  पंचम दा ने इस फिल्म के लिए संगीत रचते समय न केवल कहानी की गहराई को समझा, बल्कि किरदारों की भावनाओं और परिस्थितियों को भी संगीत के माध्यम से जीवंत किया। फिल्म के गीत विविधता से भरे हैं—कभी रोमांटिक, कभी हास्यपूर्ण, कभी भावनात्मक, और कभी उत्साहवर्धक।   फिल्म का सबसे मशहूर गीत "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे" दोस्ती की भावना को इस तरह व्यक्त करता है कि यह आज...

'वर्क फ्रॉम होम' से रचा इतिहास और लिख दी भरोसे की नई इबारत

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आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग के राज्य संवाददाता के तौर पर हमारे पास नेशनल न्यूज़ रुम से केवल खबरों और वॉयस ओवर के लिए ही फोन आते हैं लेकिन यदि आकाशवाणी समाचार की प्रमुख महानिदेशक का फोन आए तो चौंकना लाज़िमी है और संदेशा भी ऐसा कि ‘आप तत्काल प्रभाव से प्रादेशिक समाचार एकांश (आरएनयू), भोपाल का प्रसारण 14 दिन के लिए बंद कर दिए दीजिए और अपनी पूरी टीम के साथ क्वारंटाइन हो जाइए.....’। वैसे तो किसी भी कार्यालय और कर्मचारियों के लिए बिन मांगे एक पखवाड़े की छुट्टी मिलना लाटरी निकलने जैसा था लेकिन हुआ उल्टा....हमारे न्यूज़ रूम में मुर्दैनी सी छा गयी,सभी के चेहरे लटक गए और मुझे लगा कि ज्यादा बात की तो दिन रात धुंआधार समाचार बनाने-टाइप करने-पढने वाली हमारी टीम के कई सदस्य रो पड़ेंगे...। आखिर जब प्रदेश के लोगों को सबसे ज्यादा हमारी और आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले विश्वसनीय समाचारों की जरूरत थी तब यदि हम चुपचाप घर बैठ जाएँ तो ये हमारे काम और सबसे ज्यादा हमारे साथ सालों से जुड़े श्रोताओं के साथ नाइंसाफी होगी और एक तरह का धोखा होगा।  मैंने जून 2018 में भोपाल में राज्य संवाददाता के साथ साथ एकांश प्...