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व्यंग्य: गो मूत्र से वोट कहते हैं

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आवश्यकता आविष्कार की जननी है और भारत आविष्कारों (पढ़िये चमत्कारों) का देश है। आविष्कार (चमत्कार) भी ऐसे-ऐसे कि अमेरिका-जापान जैसे 'आविष्कार केंद्रित' देश और नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक भी दांतों तले अंगुली दबा लें। हमें स्कूल के दिनों से रटाया जाता है कि शून्य का आविष्कार भारत ने ही किया था। इस खोज का कितना लाभ हम उठा पाए यह तो वैदिक, ज्योतिष एवं कर्मकांडों को स्कूल-कालेजों में अनिवार्य विषय बनवाने वाले 'शिक्षा शंकराचार्य' जाने, पर इस शून्य को एक से लेकर नौ अंकों के साथ मनचाही बार प्रयुक्त कर 'रिश्वत' का आविष्कार जरूर हमने कर दिखाया है क्योंकि 'रिश्वत हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, इसे हम लेकर रहेंगे' की तर्ज पर 'रिश्वोत्री' (रिश्वत की गंगोत्री) को पूरे देश में समान गति से बहते देखकर इस आविष्कार की सार्थकता एवं कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है जैसी 'राष्ट्रीय भावनाओं का प्रकटीकरण' होता है। 'राष्ट्रीय भावनाओं का प्रकटीकरण' वाक्य का इस्तेमाल करने के लिए मैं हमारे हिन्दू मठाधीशों से माफी मांगता हूं। दरअसल इसका तो उन्हें पेटेंट करा...

वर्षा विगत चुनाव ऋतु आई...

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वर्षा विगत चुनाव ऋतु आई...... पढ़ कर इस गुस्ताख़ी के लिए संत तुलसीदास जी माफ़ करें क्योंकि उन्होंने तो वर्षा विगत शरद ऋतु आई... लिखा है। मौसम विभाग के बाबू भी नाराज़ न हों क्योंकि मौसम परिवर्तन की सूचना देना तो उनकी बपौती है। फिर चाहे वे गर्मी में पानी गिरने की और वर्षा में तीखी गर्मी की भविष्यवाणी क्यों न करते हों और उनके पूर्वानुमानों पर आस लगाकर कितने ही किसान हर साल बर्बाद होते हों। खैर, मौसम विभाग के किस्से तो कहानी घर घर की तरह देशभर में समान रुप से चर्चित हैं। यहाँ पेश है संत तुलसीदास की इन प्रसिद्ध पंक्तियों पर रामायण काल और आधुनिक काल की दो सखियों की बात-चीत:   सखी (एक): हे सखी, देख वर्षा ऋतु बीतने को है। शरद ऋतु के स्वागत की तैयारियों में धरती हरियाली और रंग-बिरंगे फूलों से सज गयी है।   सखी (दो): तुम गलत समझ रही हो सहेली, यह सजावट शरद ऋतु के स्वागत की नहीं, बल्कि चुनाव की तैयारियाँ हैं। जिसे तुम हरियाली और रंग-बिरंगे फूल समझ रही हो वे राजनीतिक पार्टियों के झंडे, बैनर, पोस्टर है। पगली ये चुनाव ऋतु है।   सखी (एक): पर देख, फूले काँस सकल महि छाये वर्षा...

कूड़ा नहीं ज़नाब, सोना कहिए सोना...!!!

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एक विज्ञापन की चर्चित पंचलाइन थी कि "जब घर में पड़ा है सोना, तो फिर काहे को रोना”, और आज लगभग यही स्थिति हमारे नगरों/महानगरों में की है क्योंकि वे भी हर दिन जमा हो रहे टनों की मात्रा में कचरा अर्थात सोना रखकर रो रहे हैं। इसका कारण शायद यह है कि या तो उनको ये नहीं पता कि उनके पास जो टनों कचरा है वह दरअसल में कूड़ा नहीं बल्कि कमाऊ सोना है और या फिर वे जानते हुए भी अनजान बने हुए हैं? अब यह पढ़कर एक सवाल तो आपके दिमाग में भी आ रहा होगा कि बदबूदार/गन्दा और घर के बाहर फेंकने वाला कूड़ा आखिर सोना कैसे हो सकता है? इस पहेली को सुलझाकर आपका इस निबंध को आगे पढ़ने का उत्साह खत्म करने से पहले हम इस बात पर चर्चा करते हैं कि सही तरह से निपटान की व्यवस्था नहीं होने के कारण कैसे आज कचरा हमारे नगरों/महानगरों और गांवों के लिए संकट बन रहा है। दिल्ली में रहने वाले लोगों ने तो गाज़ियाबाद आते जाते समय अक्सर ही कचरे के पहाड़ देखे होंगे। ऊँचे-ऊँचे, प्राकृतिक पर्वत मालाओं को भी पीछे छोड़ते कूड़े के ढेर, उनसे निकलता ज़हरीला धुंआ और उस पर मंडराते चील-कौवे...ये पहाड़ शहर का सौन्दर्य बढ़ने के स्थान पर धब्बे की...

एक मुलाकात…फलों के राजा से!!

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आइए, आपको मिलवाते हैं फलों के राजा हिमाचल से…जहाँ फल केवल उत्पाद नहीं बल्कि गर्व हैं। शिमला की पहाड़ियों पर लाल-गुलाबी सेब किसी राजकुमार से कम नहीं हैं। किन्नौर का अखरोट इतना चटकदार जैसे फलों का सेनापति। कुल्लू की चेरी महारानी सी लजाती है तो आड़ू गालों पर लाली लिए किसी राजकुमारी सा लगता है। नाशपाती, खुबानी, आलू बुखारा, केला, जापानी फल, मशरूम और कीवी राजा के नवरत्नों में शामिल हैं। यहाँ की मिट्टी में हिमालय का गौरव घुला मिला है…हवा में बर्फ की शान है तो धूप इतनी नफ़ासत से पड़ती है कि हर फल ‘रॉयल’ और ‘डिलिशियस’ बन जाता है। इसलिए आप जब भी कोई फल खाओ और मुँह से वाह निकले, तो समझ जाइए कि  वह फलों के राजा के दरबार से आया है। हिमाचल प्रदेश को प्रकृति ने शिद्दत से संवारा और अपनी पूरी उदारता से नवाजा है। हिमालय की गोद में बसा यह प्रदेश केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए ही विख्यात नहीं है, बल्कि अपने विविध,लज़ीज़,रसीले और सेहत से भरपूर फलों के कारण भी प्रसिद्ध है इसलिए इसे भारत का फलों का टोकरा (Fruit Basket of India) भी कहा जाता है। यहाँ देश के सबसे स्वादिष्ट, रसीले और उच्च गुणवत्ता वाले फलो...

शिमला से क्यों रूठा है रूमानियत का रहबर

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  शिमला में दिलकश मौसम के कारण मॉल रोड इन दिनों प्रेमी जोड़ों और नव युगलों की रूमानियत में सराबोर है। देश भर से हनीमून मनाने के लिए शिमला पहुंचने वाले जोड़ों की संख्या रोज बढ़ रही है लेकिन अपने अद्भुत रंग,कलेवर एवं पतझड़ से पूरे वातावरण में रोमांस बिखेरने वाले चिनार पर इस रूमानियत का कोई असर नजर नहीं आ रहा। यश चोपड़ा से लेकर कई फिल्म निर्माताओं ने अपनी फिल्मों में चिनार के पीले,गुलाबी और दहकते सौंदर्य का इस्तेमाल कर जबरदस्त रोमांस दर्शाया है। शिमला में चिनार की इस बेरुखी की वजह से युवा न तो शाहरुख खान की तरह बांहे फैलाकर अपनी ‘सेनोरिटा’ को लुभा पा रहे हैं और न ही उनकी ‘बंदी’ चिनार के खूबसूरत पत्तों से इज़हार-ए-लव कर पा रही हैं। रूमानियत के प्रतीक चिनार को पता नहीं क्यों शिमला की वादियां अब तक रास नहीं आ रहीं। कश्मीर की वादियों में तो यह अपने मनभावन रंग भरपूर बिखेरता है। एक एक पत्ता प्रेम,प्यार एवं रोमांस की पूरी कहानी का साक्षी बन जाता है लेकिन शिमला में चिनार के पेड़ न तो आतिश ए चिनार रच पा रहे हैं और न ही हरुद जैसा कुछ यहां नजर आ रहा है। गौरतलब है कि कश्मीर में चिनार के पेड़ों के...

ब्रह्म सरोवर: इतिहास, आस्था और अद्भुत सौंदर्य का संगम

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यह ब्रह्मसरोवर है…भारत की प्राचीन आध्यात्मिक धरोहरों में से एक । हर वर्ष गीता जयंती समारोह के दौरान ब्रह्मसरोवर की भव्यता चरम पर रहती है। इस वर्ष भी 25 नवंबर से 5 दिसंबर तक अंतर राष्ट्रीय गीता महोत्सव चल रहा है। कहा जाता है कि यही वह पवित्र स्थल है जहाँ सृष्टि के सृजन कर्ता भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। महाभारत में भी ब्रह्म सरोवर का विशेष महत्व देखने को मिलता है । हरियाणा के कुरुक्षेत्र में स्थित लगभग 3600 फुट लंबा और 1500 फुट चौड़ा यह सरोवर भारत के सबसे बड़े मानव-निर्मित जलाशयों में से एक है। चारों ओर बने घाट, शांत जल, और बीच में स्थित सर्वेश्वर महादेव मंदिर इसे दिव्यता का अनूठा स्पर्श देते हैं। देश-विदेश से आए श्रद्धालु यहाँ पवित्र स्नान कर जीवन के दोषों से मुक्त होने की कामना करते हैं।  सिर्फ धार्मिक ही नहीं, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी ब्रह्मसरोवर अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ के घाटों, दीवारों और शिलालेखों में प्राचीन भारतीय सभ्यता के निशान आज भी महसूस किए जा सकते हैं।  हम कह सकते हैं कि ब्रह्मसरोवर सिर्फ एक जलाशय नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास, सौंदर्य और आध...

कहां कण कण में बिखरा है धर्म, कर्म और मोक्ष का ज्ञान..!!

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यह कुरुक्षेत्र है.. पावन गीता के जन्म की पुण्य पावन भूमि..जहां सदियों पहले इस महाग्रंथ का प्रादुर्भाव हुआ जो आज भी दुनिया भर के लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है। कुरुक्षेत्र भारतीय इतिहास, संस्कृति, धर्म और दर्शन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह हरियाणा राज्य में स्थित वह पवित्र स्थल है जिसे भारतीय संस्कृति में धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे के नाम से जाना जाता है। हमें भी इस पुण्य भूमि का स्पर्श करने और यहां कण कण में व्याप्त भगवान श्रीकृष्ण की कृपा को महसूस करने का अवसर मिला। इस दौरान गीता जयंती जैसा विशेष अवसर भी था। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गीता जयंती हर साल मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस बार यह पर्व 1 दिसंबर को मोक्षदा एकादशी के दिन मनाया गया। माना जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। गीता में स्वयं कहा गया है- ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेताः युयुत्सवः’ अर्थात यहाँ धर्म की स्थापना के लिए महान युद्ध हुआ। यह महान ग्रंथ कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग और जीवन के हर पहलू पर गहन मार्गदर्शन देता है इसलिए कुरुक्षेत्र को गीतोपदेश स्थ...