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एक अनूठा मंदिर…जहां प्रसाद की जगह चढ़ते हैं घोड़े!!

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जी हां, वाकई मंदिर में प्रसाद की जगह चढ़ते हैं घोड़े और वे भी सफेद घोड़े, लाल घोड़े, पीले, काले, नारंगी, हरे घोड़े..बस घोड़े ही घोड़े। आप देखकर अचरज में पड़ जाएंगे क्योंकि मंदिर में तो नारियल- चिरौंजी या लड्डू-पेड़े चढ़ते हैं तो फिर इतने घोड़ों का क्या काम। दरअसल समझने के लिए हम कह सकते हैं कि यहां प्रसाद के रूप में घोड़े अर्पित किए जाते हैं।  अरे रुको जरा…आपकी बड़ी होती आंखों को थोड़ा छोटा कर लीजिए और कंफ्यूज मत होइए। हम बात कर रहे हैं खिलौने वाले घोड़ों की, न की असल की..आखिर, कितना भी बड़ा मंदिर हो वहां सैकड़ों घोड़े कैसे बन पाएंगे? लेकिन असलियत यही है कि कहानी असल घोड़ों से ही शुरू हुई थी..जो बदलते वक्त के साथ जरूर खिलौने वाले घोड़ों में तब्दील हो गई है।  तो पहले जानते हैं असल घोड़ों की कहानी…महाभारत का युद्ध शुरू होने में बस कुछ ही दिन बचे थे। कौरवों की विशाल सेना और तैयारियों को देखकर पांडवों का मन भय से भरा था और वे कुछ विचलित नज़र आ रहे थे। यह बात युद्ध भूमि में गीता उपदेश के भी पहले की है। भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के मन को पढ़कर मुस्कुराते हुए बोले- “जाओ, पहले माँ भद्रक...

देश में इकलौता और दुनिया में सबसे अलग..क्या है ये !!

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लकड़ी और पत्थर से बनी इस इमारत में कुछ तो खास बात है कि दुनिया भर से लोग इसे पैसे देकर देखने आते हैं। यहां भारतीय लोग 100 रुपए देकर और विदेशी 200 रुपए देकर अन्दर से देख सकते हैं। अचरज की बात यह है कि यह इमारत आगरा के ताजमहल या अयोध्या के राम मंदिर जैसा स्थान भी नहीं है कि दुनिया में और कहीं न हो। दुनिया भर के कई देशों में अपने हम नाम और समान आर्किटेक्चर  शैली के भाई बंधुओं के बाद भी इसका आकर्षण बरकरार है। शायद इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि इसके समकालीन साथी समय के साथ दम तोड़ चुके हैं और दूसरा कारण यह भी है कि विदेशी पर्यटक और खासकर ब्रिटेन के लोग इसे अपनी विरासत से जोड़कर देखते हैं।  हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के मशहूर गैटी/गेयटी थिएटर (Gaiety Theatre)  की । जिसे अब गेयटी हेरिटेज कल्चरल कॉम्प्लेक्स के नाम से जाना जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि अंग्रेजों ने लंबे समय तक शिमला का इस्तेमाल अपनी सत्ता के शीर्ष केंद्र की तरह किया है और इसीलिए अपने मनोरंजन के कई ठिकाने भी यहां बनाए। इनमें से मॉल रोड अंग्रेजों की शिमला को सबसे खूबसूरत देन है और इसी मॉल...

आइए, चले…देश के आखिरी गांव !!

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  वैसे तो, पूरा हिमाचल प्रदेश ही रोमांच और प्रकृति के अबूझ रहस्यों से भरपूर है लेकिन यहां भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां सड़क मार्ग से गुजरकर आप देश की सबसे रोमांचक यात्राओं में से एक का आनंद ले सकते हैं। तो चलिए, हम चलते हैं हिमाचल में स्थित और भारत चीन सीमा के पास देश के सबसे आखिरी गांव की यात्रा पर। करीब साढ़े 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित छितकुल की यात्रा एक रोमांचक तीर्थयात्रा की तरह है। यहां आकर हमारी सड़क यात्रा भी खत्म हो जाती है और हमारा धैर्य भी, फिर हमसे रूबरू होती हैं बर्फ़ की सफेद चादर ओढ़े हिमालय की गर्वीली चोटियां। छितकुल को भारत तिब्बत सीमा पर देश का आखिरी गांव कहा जाता है। यदि सकारात्मक अंदाज़ में कहें तो यह इस इलाके में देश का पहला गांव है क्योंकि इसके जरिए ही हम देश के दर्शन के लिए आगे बढ़ते हैं। यहाँ की हवा इतनी शुद्ध है कि इसे भारत की सबसे स्वच्छ हवा माना जाता है तो जाहिर है आपको हर सांस में ताजगी का अहसास भी होता है और आप इस शुद्धता को फेफड़ों में सहेजकर अवश्य ले जाना चाहेंगे। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में सतलुज और बस्पा नदियों के संगम के पास बसा भारत का आखिरी/प...

राष्ट्रपति निवास,नाटी किंग और लज़ीज़ धाम

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175 साल का सफर पूरा कर रहे मशोबरा के राष्ट्रपति निवास की पृष्ठभूमि, पहाड़ों पर बहती ठंडी हवा, देवदार के घने जंगलों से गुजरकर आती भीनी भीनी खुशबू, लोकधुनों की मिठास और हिमाचल के पारंपरिक धाम की लज़ीज़ महक और इन सबके साथ नाटी किंग कुलदीप शर्मा और उनकी दिलकश आवाज पर झूमते लोग…किसी भी दिन का इससे बेहतर आगाज और क्या हो सकता है। तकरीबन चार घंटे का वक्त किसी मनपसंद फिल्म की तरह कब गुजर गया,पता ही नहीं चला। जब चलने की बारी आई तो मन ने कहा कुछ देर और ठहर जाएं लेकिन जिम्मेदारी ने कहा और ठहरे तो फिर काम का क्या होगा क्योंकि जो देखा है उसे ख़बर बनाकर मीडिया के साथियों को भी तो भेजना है। तभी तो, हिमाचल के लोगों को पता चल पाएगा कि राज्य में सांस्कृतिक मोर्चे पर कितना कुछ हो रहा है। दरअसल, राष्ट्रपति निवास, शिमला में शनिवार एक नवंबर को सालाना शरद उत्सव का आयोजन किया गया था। यह तारीख हमारे लिए तो वैसे भी खास है क्योंकि यह हमारे राज्य मध्यप्रदेश का स्थापना दिवस है और यदि आज हिमाचल प्रदेश में नहीं होते तो पक्का भोपाल में किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा होते। शायद, मन को पढ़कर यह अवसर खुद चलकर हमारे ...

नए राज्य: विकास, चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ

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बहु भाषा बोली, विविध संस्कृति, खानपान, क्षेत्रीय ढांचा, विशाल क्षेत्रफल से परिपूर्ण हमारा देश अपनी प्रशासनिक और क्षेत्रीय जटिलताओं के कारण हमेशा से ही दुनिया भर के आकर्षण का केंद्र रहा है। स्वतंत्रता के बाद से ही देश में नए राज्यों के गठन की मांग उठती रही है और तत्कालीन सरकारों ने समय समय पर क्षेत्रीय, भाषाई और विकास की जरूरत के आधार पर इन मांगों को पूरा भी किया है।    यदि हाल के वर्षों की बात करें तो वर्ष 2000 में एक साथ तीन राज्यों छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड के गठन ने भारत के संघीय ढांचे में एक नया अध्याय जोड़ दिया था। ये तीनों राज्य अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे कर चुके हैं और इस अवधि में इन्होंने विकास, नवाचार और सामाजिक-आर्थिक प्रगति के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं।  हालांकि, नए राज्यों के गठन के साथ देश में प्रशासनिक खर्चों में वृद्धि, संसाधनों के बंटवारे की चुनौतियाँ और क्षेत्रीय असंतुलन जैसे मुद्दे भी सामने आए हैं लेकिन इन राज्यों की विकास यात्रा ने कई नए राज्यों की उम्मीदों को भी जन्म दिया है। भविष्य में नए राज्यों के गठन के फायदे और नुकस...

70 साल बाद भी 'यंग' है आकाशवाणी का भोपाल केंद्र..!!

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मध्यप्रदेश में राजधानी भोपाल के सबसे खूबसूरत और वीवीआईपी इलाके श्यामला हिल्स में बने आकाशवाणी केंद्र में बारिश के बाद हल्की ठंडक है। सुबह सुबह स्टूडियो में मानस गान के बाद संगीत की स्वर लहरी बह रही है, जबकि पास ही न्यूज रीडर प्रदेश भर के श्रोताओं को लाइव ताजातरीन खबरें सुनाने के लिए स्वयं को तैयार कर रहा है। बाहर पार्किंग में आकाशवाणी से जुड़े स्टाफ की आवा जाही शुरू हो गई है और यहां के शांत वातावरण में कारों के हॉर्न की आवाजें गूंज रही हैं। आज यह केंद्र अपना 70 वां स्थापना दिवस मना रहा है, लेकिन उत्साह और युवा ऊर्जा से लबरेज इस केंद्र को देखकर लगता है जैसे यह कल ही शुरू हुआ हो।  सात दशक पहले, 1956 में 31 अक्टूबर को और मध्यप्रदेश के बनने से महज एक दिन पहले भोपाल के काशाना बंगले में स्थापित यह केंद्र आज भी शिक्षा, मनोरंजन, सूचना' के मंत्र को जीवंत बनाए हुए है। यही वजह है कि 70 साल बाद भी, यह केंद्र युवा ही लगता है। आकाशवाणी भोपाल का सफर भारत के रेडियो इतिहास से जुड़ा है। 1927 में मुंबई और कोलकाता में निजी ट्रांसमीटरों से रेडियो प्रसारण की शुरुआत हुई, लेकिन 1936 में इसे 'ऑल इंडिया...

8 हजार फीट ऊंचे शिखर पर 108 फीट के हनुमान…अद्भुत!!

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हिमाचल प्रदेश में ‘क्वीन ऑफ हिल्स’ शिमला के सबसे लोकप्रिय स्थान मॉल रोड पहुंचते ही दूर पर्वत की चोटी पर विराजमान पवनपुत्र हनुमान जी की प्रतिमा बरबस ही सभी का ध्यान खींच लेती है। इस प्रतिमा और बादलों की आंख मिचौली से शिमला के बदलते मौसम का अंदाजा भी लगता रहता है क्योंकि कभी यह प्रतिमा बादलों में छिपकर अदृश्य हो जाती है तो कभी सूर्य की किरणें को आत्मसात कर दिव्यता से चमकने लगती है।  यह प्रतिमा इस तरीके से स्थापित की गई है कि मॉल रोड से लेकर इसके आसपास के कई इलाकों से आप हनुमान जी के दर्शन कर सकते हैं और अब यह मॉल रोड के एक प्रमुख आकर्षणों में से एक है। इस पहाड़ को जाखू हिल्स और हनुमान जी को ‘शिमला के रक्षक’ कहा जाता है। आख़िर, हनुमान चालीसा में ऐसे ही थोड़ी लिखा गया है..’तुम रक्षक काहू से डरना।’ जाखू वाले हनुमान जी केवल एक मंदिर या पर्यटन स्थल नहीं है बल्कि यहां की गाथा रामायण काल से जुड़ी है और यह अकाट्य आस्था का स्थान है। शिमला की ऊंची चोटियों के बीच, समुद्र तल से लगभग 8 हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित यह जाखू मंदिर आस्था, प्रकृति और रोमांच का एक अद्भुत संगम है एवं शिमला के 'ताज' से...