ढाई राज्यपाल और दो मुख्यमंत्रियों वाला अनूठा शहर…!!
एक शहर में ढाई राज्यपाल और दो मुख्यमंत्री!!…पढ़कर आप भी चौंक गए न? हम-आप क्या, कोई भी आश्चर्य में पड़ जाएगा कि कैसे एक शहर या सीधे शब्दों में कहें तो एक राजधानी में कैसे दो मुख्यमंत्री और ढाई राज्यपाल हो सकते हैं। राजनीति की स्थिति तो यह है कि अब एक ही दल में वर्तमान मुख्यमंत्री अपने ही दल के पूर्व मुख्यमंत्री को बर्दाश्त नहीं करते तो फिर एक ही शहर में यह कैसे संभव है कि ढाई राज्यपाल और दो मुख्यमंत्री हों और फिर भी कोई राजनीतिक विवाद की स्थिति नहीं बनती। अब तक मुख्यमंत्री पद पर एक से ज्यादा दावेदारियां, ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री और कई उपमुख्यमंत्री जैसी तमाम कहानियां हम आए दिन समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते रहते हैं लेकिन कोई शहर अपने सीने पर बिना किसी विवाद के दो मुख्यमंत्रियों की कुर्सी रखे हो और उस पर तुर्रा यह कि मुख्यमंत्रियो से ज्यादा राज्यपाल हों तो उस शहर पर बात करना बनता है। देश का सबसे सुव्यवस्थित शहर चंडीगढ़ वैसे तो अपने आंचल में अनेक खूबियां समेटे है लेकिन दो मुख्यमंत्री और ढाई राज्यपाल की खूबी इसे देश ही क्या दुनिया भर में अतिविशिष्ट बनाती है। जैसा की हम सभी जानते हैं कि चंडीगढ़ शहर, पंजाब और हरियाणा की राजधानी है इसलिए यहां पंजाब के मुख्यमंत्री भी रहते हैं तो हरियाणा के मुख्यमंत्री का भी सचिवालय है। अब जब मुख्यमंत्री दो हैं तो पंजाब और हरियाणा के राज्यपाल भी दो ही होंगे। लेकिन लेख का शीर्षक तो ढाई राज्यपाल' की बात कर रहा है तो फिर सवाल उठता है कि ये आधे राज्यपाल का गणित क्या है? दरअसल चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा की राजधानी होने के साथ साथ केंद्रशासित प्रदेश भी है इसलिए यहां लेफ्टिनेंट गवर्नर भी होते हैं। वैसे,अभी यह दायित्व भी पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया के पास है इसलिए ढाई राज्यपाल लिखा है। यदि चंडीगढ के प्रशासक या लेफ्टिनेंट गवर्नर का दायित्व किसी अन्य व्यक्ति के पास होता तो हमें तीन राज्यपाल लिखना पड़ता। यहां मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि ढाई राज्यपाल से आशय इस पद की गरिमा और दायित्वों पर टिप्प्णी करना नहीं है बल्कि दोहरा चार्ज होने के कारण हल्के फुल्के अंदाज में ढाई लिखा गया है। वैसे, लेफ्टिनेंट गवर्नर के 'पॉवर' की बात करें तो कई मामलों में वे पूरे मुख्यमंत्री पर भारी पड़ते हैं और दिल्ली से बेहतर इसका ज्वलंत उदाहरण और क्या हो सकता है। इतने राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों के कारण चंडीगढ़ का सेक्टर एक और दो वीआईपी रुतबा रखते हैं। इतना अहम शहर होने के बाद भी यहां 'वीआईपी मूवमेंट' उत्तर भारत के शहरों की तरह परेशान नहीं करता बल्कि आम लोगों की आवाजाही के बीच वीआईपी भी समन्वय के साथ 'मूव' करते रहते हैं। चंडीगढ़ का इतिहास और दो मुख्यमंत्रियों वाला शहर बनने की कहानी भी अनूठी है। दरअसल, आजादी के बाद पंजाब का एक हिस्सा पाकिस्तान चला गया और उसकी तत्कालीन राजधानी लाहौर भी। फिर शेष पंजाब,हरियाणा और हिमाचल को मिलाकर बने संयुक्त प्रांत की राजधानी के लिए 1953 में चंडीगढ़ बनाया गया। बताया जाता है कभी शिमला भी पंजाब की राजधानी थी। एक नवम्बर 1966 को पंजाब और हरियाणा अलग हो गए और इसके बाद, 1971 में हिमाचल प्रदेश का स्वतंत्र अस्तित्व वजूद में आ गया। हिमाचल को तो शिमला के रूप राजधानी की सौगात मिल गई परंतु हरियाणा और पंजाब का मन चंडीगढ़ पर अटक गया और जैसे महाभारत में द्रौपदी को अनचाहे ढंग से पांच पांडवों की पत्नी का दर्जा मिला था वैसे ही चंडीगढ़ को दो राज्यों की राजधानी का गौरव मिल गया । तब यही तय हुआ था कि हरियाणा के लिए अलग राजधानी मिलने तक चंडीगढ़ उसकी भी राजधानी बनी रहेगी। खास बात यह है कि छह दशक पूरे करने जा रहे इस शहर ने द्रौपदी की तरह कभी अपने आत्मसम्मान को खंडित नहीं होने दिया और अपने गौरव को हमेशा सर्वोपरि रखा है। शायद, इस शहर की खूबसूरती, व्यवस्थापन, पर्यावरण देखकर ही केंद्र सरकार का मन भी इस पर आया होगा और 1966 में उसने अपना एक प्रतिनिधि यहां बिठा दिया और इस तरह देश के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक चंडीगढ़ दो मुख्यमंत्रियों और तीन राज्यपालों का अनूठा शहर बन गया।
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