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मीठे राजमार्ग के माथे पर क्यों लगी हैं लाल बिंदी…!!

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इन दिनों यदि आप ‘मीठे राजमार्ग’ से गुजर रहे होंगे तो आपको ताजे गुड़ की मदहोश करने वाली मिठास के साथ सड़क पर कुछ अनूठा..कुछ अलग भी नजर आएगा। ऐसा लगता है जैसे किसी ने राजमार्ग के माथे पर सुंदर सी लाल बिंदी लगा दी है। यह अनूठापन आकर्षक भी है और आपकी सुरक्षा का पहरेदार भी। मीठे राजमार्ग के बारे में और विस्तार से जानना हो तो आप इस लिंक के जरिए पढ़ सकते हैं। मीठा राजमार्ग: जहां बन रहे मदहोश करने… https://jugaali.blogspot.com/2024/12/blog-post_59.html बहरहाल, अभी बात मीठे राजमार्ग के अनूठेपन की। दरअसल भोपाल से जबलपुर तक बिना किसी रुकावट के जाने के लिए बनाया गया नेशनल हाइवे क्रमांक 45 इन दिनों अपने रेड कार्पेट के कारण देश भर में चर्चा में है। ये टेबिल टॉप शैली में बने रेड कार्पेट पूरी सड़क की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं। ये ऐसे लगते हैं जैसे महिलाएं माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी लगाती हैं। जैसे बिंदी सुहाग की सुरक्षा का प्रतीक मानी जाती है,इसी तरह यह रेड कार्पेट भी वाहन चालकों की सुरक्षा का प्रतीक है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एन एच ए आई) ने देश में संभवतः पहली बार यह अनूठा प्रयोग...

25 वें जन्मदिन पर पिता का पत्र बेटी के नाम

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 🌹जन्मदिन मुबारक प्रिंसेस..🌹 हमारी नन्ही सी परी…देखते ही देखते सजीली राजकुमारी बन गई है। आज जब घड़ी ने बारह बजाए और हमने आँखें बंद कीं तो पूरे 25 साल का गुजरा समय किसी मनभावन फिल्म की भांति आंखों के सामने आ गया…11 दिसंबर, 2000 को सोमवार का दिन था और उस दिन पूर्णिमा थी। पूरी  दुनिया को दूधिया रोशनी से जगमगाते हुए तुमने रात करीब 10 बजे हमारे जीवन में हौले से कदम रखा और फिर क्या था..हमारी दुनिया भी रोशन होती चली गई। तुमको शायद न पता हो कि 11 दिसम्बर का दिन पर्वतीय पर्यावरण के महत्व के लिए मनाए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस के रूप में भी जाना जाता है और जन्म के बाद आज तुम्हारे 25वें जन्मदिन का जश्न भी हिमालय की गोद में पहाड़ों की रानी शिमला की बाहों में मनाने का अवसर मिला है। जब तुमने अपने नन्हे हाथ को मेरे हाथ में रखा था तो लगा कि चांद हथेली पर उतर आया हो। जब पहली बार तुमने मेरी अंगुली पकड़ी थी तो इतना जोर लगाया था कि आज तक उसकी गर्माहट महसूस होती है और लगा जैसे तुम कह रही हो, कि पापा इसी तरह अंगुली थामे रहना। उस पल से लेकर आज तक, सच में हम लोग बस तुम्हारे लिए, तुम्हारे स...

व्यंग्य: गो मूत्र से वोट कहते हैं

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आवश्यकता आविष्कार की जननी है और भारत आविष्कारों (पढ़िये चमत्कारों) का देश है। आविष्कार (चमत्कार) भी ऐसे-ऐसे कि अमेरिका-जापान जैसे 'आविष्कार केंद्रित' देश और नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक भी दांतों तले अंगुली दबा लें। हमें स्कूल के दिनों से रटाया जाता है कि शून्य का आविष्कार भारत ने ही किया था। इस खोज का कितना लाभ हम उठा पाए यह तो वैदिक, ज्योतिष एवं कर्मकांडों को स्कूल-कालेजों में अनिवार्य विषय बनवाने वाले 'शिक्षा शंकराचार्य' जाने, पर इस शून्य को एक से लेकर नौ अंकों के साथ मनचाही बार प्रयुक्त कर 'रिश्वत' का आविष्कार जरूर हमने कर दिखाया है क्योंकि 'रिश्वत हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, इसे हम लेकर रहेंगे' की तर्ज पर 'रिश्वोत्री' (रिश्वत की गंगोत्री) को पूरे देश में समान गति से बहते देखकर इस आविष्कार की सार्थकता एवं कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है जैसी 'राष्ट्रीय भावनाओं का प्रकटीकरण' होता है। 'राष्ट्रीय भावनाओं का प्रकटीकरण' वाक्य का इस्तेमाल करने के लिए मैं हमारे हिन्दू मठाधीशों से माफी मांगता हूं। दरअसल इसका तो उन्हें पेटेंट करा...

वर्षा विगत चुनाव ऋतु आई...

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वर्षा विगत चुनाव ऋतु आई...... पढ़ कर इस गुस्ताख़ी के लिए संत तुलसीदास जी माफ़ करें क्योंकि उन्होंने तो वर्षा विगत शरद ऋतु आई... लिखा है। मौसम विभाग के बाबू भी नाराज़ न हों क्योंकि मौसम परिवर्तन की सूचना देना तो उनकी बपौती है। फिर चाहे वे गर्मी में पानी गिरने की और वर्षा में तीखी गर्मी की भविष्यवाणी क्यों न करते हों और उनके पूर्वानुमानों पर आस लगाकर कितने ही किसान हर साल बर्बाद होते हों। खैर, मौसम विभाग के किस्से तो कहानी घर घर की तरह देशभर में समान रुप से चर्चित हैं। यहाँ पेश है संत तुलसीदास की इन प्रसिद्ध पंक्तियों पर रामायण काल और आधुनिक काल की दो सखियों की बात-चीत:   सखी (एक): हे सखी, देख वर्षा ऋतु बीतने को है। शरद ऋतु के स्वागत की तैयारियों में धरती हरियाली और रंग-बिरंगे फूलों से सज गयी है।   सखी (दो): तुम गलत समझ रही हो सहेली, यह सजावट शरद ऋतु के स्वागत की नहीं, बल्कि चुनाव की तैयारियाँ हैं। जिसे तुम हरियाली और रंग-बिरंगे फूल समझ रही हो वे राजनीतिक पार्टियों के झंडे, बैनर, पोस्टर है। पगली ये चुनाव ऋतु है।   सखी (एक): पर देख, फूले काँस सकल महि छाये वर्षा...

कूड़ा नहीं ज़नाब, सोना कहिए सोना...!!!

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एक विज्ञापन की चर्चित पंचलाइन थी कि "जब घर में पड़ा है सोना, तो फिर काहे को रोना”, और आज लगभग यही स्थिति हमारे नगरों/महानगरों में की है क्योंकि वे भी हर दिन जमा हो रहे टनों की मात्रा में कचरा अर्थात सोना रखकर रो रहे हैं। इसका कारण शायद यह है कि या तो उनको ये नहीं पता कि उनके पास जो टनों कचरा है वह दरअसल में कूड़ा नहीं बल्कि कमाऊ सोना है और या फिर वे जानते हुए भी अनजान बने हुए हैं? अब यह पढ़कर एक सवाल तो आपके दिमाग में भी आ रहा होगा कि बदबूदार/गन्दा और घर के बाहर फेंकने वाला कूड़ा आखिर सोना कैसे हो सकता है? इस पहेली को सुलझाकर आपका इस निबंध को आगे पढ़ने का उत्साह खत्म करने से पहले हम इस बात पर चर्चा करते हैं कि सही तरह से निपटान की व्यवस्था नहीं होने के कारण कैसे आज कचरा हमारे नगरों/महानगरों और गांवों के लिए संकट बन रहा है। दिल्ली में रहने वाले लोगों ने तो गाज़ियाबाद आते जाते समय अक्सर ही कचरे के पहाड़ देखे होंगे। ऊँचे-ऊँचे, प्राकृतिक पर्वत मालाओं को भी पीछे छोड़ते कूड़े के ढेर, उनसे निकलता ज़हरीला धुंआ और उस पर मंडराते चील-कौवे...ये पहाड़ शहर का सौन्दर्य बढ़ने के स्थान पर धब्बे की...

एक मुलाकात…फलों के राजा से!!

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आइए, आपको मिलवाते हैं फलों के राजा हिमाचल से…जहाँ फल केवल उत्पाद नहीं बल्कि गर्व हैं। शिमला की पहाड़ियों पर लाल-गुलाबी सेब किसी राजकुमार से कम नहीं हैं। किन्नौर का अखरोट इतना चटकदार जैसे फलों का सेनापति। कुल्लू की चेरी महारानी सी लजाती है तो आड़ू गालों पर लाली लिए किसी राजकुमारी सा लगता है। नाशपाती, खुबानी, आलू बुखारा, केला, जापानी फल, मशरूम और कीवी राजा के नवरत्नों में शामिल हैं। यहाँ की मिट्टी में हिमालय का गौरव घुला मिला है…हवा में बर्फ की शान है तो धूप इतनी नफ़ासत से पड़ती है कि हर फल ‘रॉयल’ और ‘डिलिशियस’ बन जाता है। इसलिए आप जब भी कोई फल खाओ और मुँह से वाह निकले, तो समझ जाइए कि  वह फलों के राजा के दरबार से आया है। हिमाचल प्रदेश को प्रकृति ने शिद्दत से संवारा और अपनी पूरी उदारता से नवाजा है। हिमालय की गोद में बसा यह प्रदेश केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए ही विख्यात नहीं है, बल्कि अपने विविध,लज़ीज़,रसीले और सेहत से भरपूर फलों के कारण भी प्रसिद्ध है इसलिए इसे भारत का फलों का टोकरा (Fruit Basket of India) भी कहा जाता है। यहाँ देश के सबसे स्वादिष्ट, रसीले और उच्च गुणवत्ता वाले फलो...

शिमला से क्यों रूठा है रूमानियत का रहबर

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  शिमला में दिलकश मौसम के कारण मॉल रोड इन दिनों प्रेमी जोड़ों और नव युगलों की रूमानियत में सराबोर है। देश भर से हनीमून मनाने के लिए शिमला पहुंचने वाले जोड़ों की संख्या रोज बढ़ रही है लेकिन अपने अद्भुत रंग,कलेवर एवं पतझड़ से पूरे वातावरण में रोमांस बिखेरने वाले चिनार पर इस रूमानियत का कोई असर नजर नहीं आ रहा। यश चोपड़ा से लेकर कई फिल्म निर्माताओं ने अपनी फिल्मों में चिनार के पीले,गुलाबी और दहकते सौंदर्य का इस्तेमाल कर जबरदस्त रोमांस दर्शाया है। शिमला में चिनार की इस बेरुखी की वजह से युवा न तो शाहरुख खान की तरह बांहे फैलाकर अपनी ‘सेनोरिटा’ को लुभा पा रहे हैं और न ही उनकी ‘बंदी’ चिनार के खूबसूरत पत्तों से इज़हार-ए-लव कर पा रही हैं। रूमानियत के प्रतीक चिनार को पता नहीं क्यों शिमला की वादियां अब तक रास नहीं आ रहीं। कश्मीर की वादियों में तो यह अपने मनभावन रंग भरपूर बिखेरता है। एक एक पत्ता प्रेम,प्यार एवं रोमांस की पूरी कहानी का साक्षी बन जाता है लेकिन शिमला में चिनार के पेड़ न तो आतिश ए चिनार रच पा रहे हैं और न ही हरुद जैसा कुछ यहां नजर आ रहा है। गौरतलब है कि कश्मीर में चिनार के पेड़ों के...

ब्रह्म सरोवर: इतिहास, आस्था और अद्भुत सौंदर्य का संगम

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यह ब्रह्मसरोवर है…भारत की प्राचीन आध्यात्मिक धरोहरों में से एक । हर वर्ष गीता जयंती समारोह के दौरान ब्रह्मसरोवर की भव्यता चरम पर रहती है। इस वर्ष भी 25 नवंबर से 5 दिसंबर तक अंतर राष्ट्रीय गीता महोत्सव चल रहा है। कहा जाता है कि यही वह पवित्र स्थल है जहाँ सृष्टि के सृजन कर्ता भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। महाभारत में भी ब्रह्म सरोवर का विशेष महत्व देखने को मिलता है । हरियाणा के कुरुक्षेत्र में स्थित लगभग 3600 फुट लंबा और 1500 फुट चौड़ा यह सरोवर भारत के सबसे बड़े मानव-निर्मित जलाशयों में से एक है। चारों ओर बने घाट, शांत जल, और बीच में स्थित सर्वेश्वर महादेव मंदिर इसे दिव्यता का अनूठा स्पर्श देते हैं। देश-विदेश से आए श्रद्धालु यहाँ पवित्र स्नान कर जीवन के दोषों से मुक्त होने की कामना करते हैं।  सिर्फ धार्मिक ही नहीं, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी ब्रह्मसरोवर अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ के घाटों, दीवारों और शिलालेखों में प्राचीन भारतीय सभ्यता के निशान आज भी महसूस किए जा सकते हैं।  हम कह सकते हैं कि ब्रह्मसरोवर सिर्फ एक जलाशय नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास, सौंदर्य और आध...

कहां कण कण में बिखरा है धर्म, कर्म और मोक्ष का ज्ञान..!!

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यह कुरुक्षेत्र है.. पावन गीता के जन्म की पुण्य पावन भूमि..जहां सदियों पहले इस महाग्रंथ का प्रादुर्भाव हुआ जो आज भी दुनिया भर के लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है। कुरुक्षेत्र भारतीय इतिहास, संस्कृति, धर्म और दर्शन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह हरियाणा राज्य में स्थित वह पवित्र स्थल है जिसे भारतीय संस्कृति में धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे के नाम से जाना जाता है। हमें भी इस पुण्य भूमि का स्पर्श करने और यहां कण कण में व्याप्त भगवान श्रीकृष्ण की कृपा को महसूस करने का अवसर मिला। इस दौरान गीता जयंती जैसा विशेष अवसर भी था। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गीता जयंती हर साल मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस बार यह पर्व 1 दिसंबर को मोक्षदा एकादशी के दिन मनाया गया। माना जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। गीता में स्वयं कहा गया है- ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेताः युयुत्सवः’ अर्थात यहाँ धर्म की स्थापना के लिए महान युद्ध हुआ। यह महान ग्रंथ कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग और जीवन के हर पहलू पर गहन मार्गदर्शन देता है इसलिए कुरुक्षेत्र को गीतोपदेश स्थ...

एक अनूठा मंदिर…जहां प्रसाद की जगह चढ़ते हैं घोड़े!!

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जी हां, वाकई मंदिर में प्रसाद की जगह चढ़ते हैं घोड़े और वे भी सफेद घोड़े, लाल घोड़े, पीले, काले, नारंगी, हरे घोड़े..बस घोड़े ही घोड़े। आप देखकर अचरज में पड़ जाएंगे क्योंकि मंदिर में तो नारियल- चिरौंजी या लड्डू-पेड़े चढ़ते हैं तो फिर इतने घोड़ों का क्या काम। दरअसल समझने के लिए हम कह सकते हैं कि यहां प्रसाद के रूप में घोड़े अर्पित किए जाते हैं।  अरे रुको जरा…आपकी बड़ी होती आंखों को थोड़ा छोटा कर लीजिए और कंफ्यूज मत होइए। हम बात कर रहे हैं खिलौने वाले घोड़ों की, न की असल की..आखिर, कितना भी बड़ा मंदिर हो वहां सैकड़ों घोड़े कैसे बन पाएंगे? लेकिन असलियत यही है कि कहानी असल घोड़ों से ही शुरू हुई थी..जो बदलते वक्त के साथ जरूर खिलौने वाले घोड़ों में तब्दील हो गई है।  तो पहले जानते हैं असल घोड़ों की कहानी…महाभारत का युद्ध शुरू होने में बस कुछ ही दिन बचे थे। कौरवों की विशाल सेना और तैयारियों को देखकर पांडवों का मन भय से भरा था और वे कुछ विचलित नज़र आ रहे थे। यह बात युद्ध भूमि में गीता उपदेश के भी पहले की है। भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के मन को पढ़कर मुस्कुराते हुए बोले- “जाओ, पहले माँ भद्रक...

देश में इकलौता और दुनिया में सबसे अलग..क्या है ये !!

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लकड़ी और पत्थर से बनी इस इमारत में कुछ तो खास बात है कि दुनिया भर से लोग इसे पैसे देकर देखने आते हैं। यहां भारतीय लोग 100 रुपए देकर और विदेशी 200 रुपए देकर अन्दर से देख सकते हैं। अचरज की बात यह है कि यह इमारत आगरा के ताजमहल या अयोध्या के राम मंदिर जैसा स्थान भी नहीं है कि दुनिया में और कहीं न हो। दुनिया भर के कई देशों में अपने हम नाम और समान आर्किटेक्चर  शैली के भाई बंधुओं के बाद भी इसका आकर्षण बरकरार है। शायद इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि इसके समकालीन साथी समय के साथ दम तोड़ चुके हैं और दूसरा कारण यह भी है कि विदेशी पर्यटक और खासकर ब्रिटेन के लोग इसे अपनी विरासत से जोड़कर देखते हैं।  हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के मशहूर गैटी/गेयटी थिएटर (Gaiety Theatre)  की । जिसे अब गेयटी हेरिटेज कल्चरल कॉम्प्लेक्स के नाम से जाना जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि अंग्रेजों ने लंबे समय तक शिमला का इस्तेमाल अपनी सत्ता के शीर्ष केंद्र की तरह किया है और इसीलिए अपने मनोरंजन के कई ठिकाने भी यहां बनाए। इनमें से मॉल रोड अंग्रेजों की शिमला को सबसे खूबसूरत देन है और इसी मॉल...

आइए, चले…देश के आखिरी गांव !!

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  वैसे तो, पूरा हिमाचल प्रदेश ही रोमांच और प्रकृति के अबूझ रहस्यों से भरपूर है लेकिन यहां भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां सड़क मार्ग से गुजरकर आप देश की सबसे रोमांचक यात्राओं में से एक का आनंद ले सकते हैं। तो चलिए, हम चलते हैं हिमाचल में स्थित और भारत चीन सीमा के पास देश के सबसे आखिरी गांव की यात्रा पर। करीब साढ़े 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित छितकुल की यात्रा एक रोमांचक तीर्थयात्रा की तरह है। यहां आकर हमारी सड़क यात्रा भी खत्म हो जाती है और हमारा धैर्य भी, फिर हमसे रूबरू होती हैं बर्फ़ की सफेद चादर ओढ़े हिमालय की गर्वीली चोटियां। छितकुल को भारत तिब्बत सीमा पर देश का आखिरी गांव कहा जाता है। यदि सकारात्मक अंदाज़ में कहें तो यह इस इलाके में देश का पहला गांव है क्योंकि इसके जरिए ही हम देश के दर्शन के लिए आगे बढ़ते हैं। यहाँ की हवा इतनी शुद्ध है कि इसे भारत की सबसे स्वच्छ हवा माना जाता है तो जाहिर है आपको हर सांस में ताजगी का अहसास भी होता है और आप इस शुद्धता को फेफड़ों में सहेजकर अवश्य ले जाना चाहेंगे। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में सतलुज और बस्पा नदियों के संगम के पास बसा भारत का आखिरी/प...

राष्ट्रपति निवास,नाटी किंग और लज़ीज़ धाम

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175 साल का सफर पूरा कर रहे मशोबरा के राष्ट्रपति निवास की पृष्ठभूमि, पहाड़ों पर बहती ठंडी हवा, देवदार के घने जंगलों से गुजरकर आती भीनी भीनी खुशबू, लोकधुनों की मिठास और हिमाचल के पारंपरिक धाम की लज़ीज़ महक और इन सबके साथ नाटी किंग कुलदीप शर्मा और उनकी दिलकश आवाज पर झूमते लोग…किसी भी दिन का इससे बेहतर आगाज और क्या हो सकता है। तकरीबन चार घंटे का वक्त किसी मनपसंद फिल्म की तरह कब गुजर गया,पता ही नहीं चला। जब चलने की बारी आई तो मन ने कहा कुछ देर और ठहर जाएं लेकिन जिम्मेदारी ने कहा और ठहरे तो फिर काम का क्या होगा क्योंकि जो देखा है उसे ख़बर बनाकर मीडिया के साथियों को भी तो भेजना है। तभी तो, हिमाचल के लोगों को पता चल पाएगा कि राज्य में सांस्कृतिक मोर्चे पर कितना कुछ हो रहा है। दरअसल, राष्ट्रपति निवास, शिमला में शनिवार एक नवंबर को सालाना शरद उत्सव का आयोजन किया गया था। यह तारीख हमारे लिए तो वैसे भी खास है क्योंकि यह हमारे राज्य मध्यप्रदेश का स्थापना दिवस है और यदि आज हिमाचल प्रदेश में नहीं होते तो पक्का भोपाल में किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा होते। शायद, मन को पढ़कर यह अवसर खुद चलकर हमारे ...

नए राज्य: विकास, चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ

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बहु भाषा बोली, विविध संस्कृति, खानपान, क्षेत्रीय ढांचा, विशाल क्षेत्रफल से परिपूर्ण हमारा देश अपनी प्रशासनिक और क्षेत्रीय जटिलताओं के कारण हमेशा से ही दुनिया भर के आकर्षण का केंद्र रहा है। स्वतंत्रता के बाद से ही देश में नए राज्यों के गठन की मांग उठती रही है और तत्कालीन सरकारों ने समय समय पर क्षेत्रीय, भाषाई और विकास की जरूरत के आधार पर इन मांगों को पूरा भी किया है।    यदि हाल के वर्षों की बात करें तो वर्ष 2000 में एक साथ तीन राज्यों छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड के गठन ने भारत के संघीय ढांचे में एक नया अध्याय जोड़ दिया था। ये तीनों राज्य अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे कर चुके हैं और इस अवधि में इन्होंने विकास, नवाचार और सामाजिक-आर्थिक प्रगति के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं।  हालांकि, नए राज्यों के गठन के साथ देश में प्रशासनिक खर्चों में वृद्धि, संसाधनों के बंटवारे की चुनौतियाँ और क्षेत्रीय असंतुलन जैसे मुद्दे भी सामने आए हैं लेकिन इन राज्यों की विकास यात्रा ने कई नए राज्यों की उम्मीदों को भी जन्म दिया है। भविष्य में नए राज्यों के गठन के फायदे और नुकस...

70 साल बाद भी 'यंग' है आकाशवाणी का भोपाल केंद्र..!!

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मध्यप्रदेश में राजधानी भोपाल के सबसे खूबसूरत और वीवीआईपी इलाके श्यामला हिल्स में बने आकाशवाणी केंद्र में बारिश के बाद हल्की ठंडक है। सुबह सुबह स्टूडियो में मानस गान के बाद संगीत की स्वर लहरी बह रही है, जबकि पास ही न्यूज रीडर प्रदेश भर के श्रोताओं को लाइव ताजातरीन खबरें सुनाने के लिए स्वयं को तैयार कर रहा है। बाहर पार्किंग में आकाशवाणी से जुड़े स्टाफ की आवा जाही शुरू हो गई है और यहां के शांत वातावरण में कारों के हॉर्न की आवाजें गूंज रही हैं। आज यह केंद्र अपना 70 वां स्थापना दिवस मना रहा है, लेकिन उत्साह और युवा ऊर्जा से लबरेज इस केंद्र को देखकर लगता है जैसे यह कल ही शुरू हुआ हो।  सात दशक पहले, 1956 में 31 अक्टूबर को और मध्यप्रदेश के बनने से महज एक दिन पहले भोपाल के काशाना बंगले में स्थापित यह केंद्र आज भी शिक्षा, मनोरंजन, सूचना' के मंत्र को जीवंत बनाए हुए है। यही वजह है कि 70 साल बाद भी, यह केंद्र युवा ही लगता है। आकाशवाणी भोपाल का सफर भारत के रेडियो इतिहास से जुड़ा है। 1927 में मुंबई और कोलकाता में निजी ट्रांसमीटरों से रेडियो प्रसारण की शुरुआत हुई, लेकिन 1936 में इसे 'ऑल इंडिया...

8 हजार फीट ऊंचे शिखर पर 108 फीट के हनुमान…अद्भुत!!

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हिमाचल प्रदेश में ‘क्वीन ऑफ हिल्स’ शिमला के सबसे लोकप्रिय स्थान मॉल रोड पहुंचते ही दूर पर्वत की चोटी पर विराजमान पवनपुत्र हनुमान जी की प्रतिमा बरबस ही सभी का ध्यान खींच लेती है। इस प्रतिमा और बादलों की आंख मिचौली से शिमला के बदलते मौसम का अंदाजा भी लगता रहता है क्योंकि कभी यह प्रतिमा बादलों में छिपकर अदृश्य हो जाती है तो कभी सूर्य की किरणें को आत्मसात कर दिव्यता से चमकने लगती है।  यह प्रतिमा इस तरीके से स्थापित की गई है कि मॉल रोड से लेकर इसके आसपास के कई इलाकों से आप हनुमान जी के दर्शन कर सकते हैं और अब यह मॉल रोड के एक प्रमुख आकर्षणों में से एक है। इस पहाड़ को जाखू हिल्स और हनुमान जी को ‘शिमला के रक्षक’ कहा जाता है। आख़िर, हनुमान चालीसा में ऐसे ही थोड़ी लिखा गया है..’तुम रक्षक काहू से डरना।’ जाखू वाले हनुमान जी केवल एक मंदिर या पर्यटन स्थल नहीं है बल्कि यहां की गाथा रामायण काल से जुड़ी है और यह अकाट्य आस्था का स्थान है। शिमला की ऊंची चोटियों के बीच, समुद्र तल से लगभग 8 हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित यह जाखू मंदिर आस्था, प्रकृति और रोमांच का एक अद्भुत संगम है एवं शिमला के 'ताज' से...

क्या है शिमला का इटली से प्राकृतिक कनेक्शन..!!

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क्वीन ऑफ हिल्स शिमला के बारे में यह तो सभी को पता है कि अंग्रेजों ने अपने आराम के लिए इस स्थान को सजाया संवारा था लेकिन यहां इटेलियन कनेक्शन भी है। अंग्रेजों ने भले ही इसे सत्ता प्रतिष्ठान का केंद्र बनाया था और यहां की वादियों से देश दुनिया को रूबरू कराया लेकिन अन्य देशों के लोग भी शिमला के कैनवास को अपने रंगों से रंगने में पीछे नहीं रहे हैं। इसी शृंखला में एक बेहतरीन स्थान है - क्रेग्नानो नेचर पार्क।  क्रेग्नानो नेचर पार्क प्रकृति के चितेरो के लिए एक ऐसा कैनवास है जिसपर वे अपनी कलात्मकता से नए नए रंग भर सकते हैं, मनमाफिक पटकथा लिख सकते हैं और सुकून और सेहत के खुशनुमा पल गुजार सकते हैं। देवदार, चीड़ और चिनार के पत्तों के बीच से झांकती सूरज की नटखट किरणें हो या खूबसूरत फूलों पर अठखेलियां करती रंग बिरंगी तितलियां या पक्षियों के कलरव से उपजा दिलकश संगीत..या फिर अनोखी दिल को छू लेने वाली शांति। यहां आकर आपको प्रकृति से निकटता का अनूठा अनुभव होता है।   शिमला से मशोबरा की ओर तथा लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित इस क्रैग्नानो नेचर पार्क तक महज 40 मिनट की हरीभरी और ऊंचे देवदार की छत्रछ...

इस बार जलाएं एक दिया उम्मीदों का..!!

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फोन में घुसकर ऑनलाइन लाइटिंग,सजावट का सामान और कपड़े तलाशने में समय बर्बाद करने की बजाए एक बार सपरिवार घर से बाहर निकलिए और सड़क पर दिए बेचती बूढ़ी अम्मा की आंखों में पलती उम्मीदों की रोशनी देखिए या फिर रंगोली के रंग फैलाए उस नहीं सी बालिका के चेहरे पर चढ़ते उतरते रंग महसूस कीजिए..क्या आप हम इस बार ऐसे ही किसी व्यक्ति/परिवार के घर में उम्मीदों का दिया नहीं जला सकते?  हमें करना ही क्या है…बस,इस बार स्थानीय और खासतौर पर पटरी पर बाज़ार सजाने वालों से खरीददारी करनी है और अपने बच्चों में भी यही आदत डालनी है।  जाहिर सी बात है रोशनी, खुशहाली, समृद्धि और सामूहिकता का पर्व दीपावली क़रीब है। घर घर में सफाई,रंगाई पुताई और दीप पर्व से जुड़ी तैयारियों का दौर जारी है इसलिए सामान खरीदने का दौर भी शुरू हो गया है।  दीप पर्व केवल रोशनी और खुशियों का प्रतीक भर नहीं है, बल्कि यह सामुदायिक एकजुटता और आर्थिक सहयोग का भी अवसर है। इसलिए,इस दीवाली जब हम बाजारों में रंग-बिरंगे दीयों, मिठाइयों, और सजावटी सामानों की खरीदारी के लिए निकलें, तो अपनी आदत में क्यों न एक छोटा सा बदलाव लाएं ?  इस बार,...