बस,चाय पकौड़े की कमी थी..

ऐसा लगा जैसे प्रकृति अपने पूरे शबाव के साथ हमारे इस्तकबाल के लिए आ गई है। भोपाल से दिल्ली और फिर पंचकूला तक यात्रा सामान्य सी ही रही लेकिन जैसे ही हमने welcome to Himachal Pradesh का बोर्ड पार किया…बादलों के एक युवा उत्साही समूह ने तेज फुहारों के साथ हुलसकर हमारा स्वागत किया बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी नए हवाईजहाज की पहली यात्रा में पानी की फुहारों से वेलकम किया जाता है। इस दौरान मौसम इतना खुशगवार था कि चाय पकौड़े की कमी खलने लगी। अब प्रकृति भले ही अपने बंधु बांधवों के साथ पूरे मूड में थी लेकिन चलती सड़क पर बारिश के बीच हमारे लिए चाय और पकौड़े बनाने की हिम्मत कौन दिखाता। बारिश ने विराम लिया तो धुंध को चीरकर पहाड़ों और घने पेड़ों ने हमें निहारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फिर धुंध भी छट गई और हमें हिमाचल के असली सौंदर्य से साक्षात्कार का मौका मिलने लगा। बीच बीच में सड़क किनारे परिवार के साथ भुट्टे और गरमागरम मैगी खाते लोग अपने शहर भोपाल का अहसास करा रहे थे और यह संदेश भी दे रहे थे कि मौसम के अनुकूल खाने के मामले में हम सब एक हैं। सड़क के बीचों बीच निडर होकर इठलाते कनेर और बो...