25 वें जन्मदिन पर पिता का पत्र बेटी के नाम
🌹जन्मदिन मुबारक प्रिंसेस..🌹
हमारी नन्ही सी परी…देखते ही देखते सजीली राजकुमारी बन गई है। आज जब घड़ी ने बारह बजाए और हमने आँखें बंद कीं तो पूरे 25 साल का गुजरा समय किसी मनभावन फिल्म की भांति आंखों के सामने आ गया…11 दिसंबर, 2000 को सोमवार का दिन था और उस दिन पूर्णिमा थी। पूरी दुनिया को दूधिया रोशनी से जगमगाते हुए तुमने रात करीब 10 बजे हमारे जीवन में हौले से कदम रखा और फिर क्या था..हमारी दुनिया भी रोशन होती चली गई।
तुमको शायद न पता हो कि 11 दिसम्बर का दिन पर्वतीय पर्यावरण के महत्व के लिए मनाए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस के रूप में भी जाना जाता है और जन्म के बाद आज तुम्हारे 25वें जन्मदिन का जश्न भी हिमालय की गोद में पहाड़ों की रानी शिमला की बाहों में मनाने का अवसर मिला है।
जब तुमने अपने नन्हे हाथ को मेरे हाथ में रखा था तो लगा कि चांद हथेली पर उतर आया हो। जब पहली बार तुमने मेरी अंगुली पकड़ी थी तो इतना जोर लगाया था कि आज तक उसकी गर्माहट महसूस होती है और लगा जैसे तुम कह रही हो, कि पापा इसी तरह अंगुली थामे रहना। उस पल से लेकर आज तक, सच में हम लोग बस तुम्हारे लिए, तुम्हारे सपनों और तुम्हारी खुशियों के साथ साथ आगे बढ़ रहे हैं।
इन पच्चीस साल सालों में हमने हर साल साथ साथ केक काटा है, साथ साथ खाया है और कभी रात को तो कभी दिन के उजाले में जश्न मनाया है..याद है बेटा तुमको, तुम बचपन से कैसे गपागप केक खाती आ रही हो..कई बार तो हमारे लिए भी बमुश्किल बचा था और हमने तुम्हारे केक पर लट्टू हो जाने को कितनी बार कैमरे में कैद किया है, पर तुम बिंदास..इस सबसे परे… केक का आनंद उठाती रहती हो..यह बचपना ही तुम्हारी सबसे बड़ी ताक़त है, इसे सम्भाल कर रखना।
मम्मी पापा के लिए तुम कितनी खास हो…याद है, जब तुमने ताइक्वांडो सीखना शुरू किया और फ़िफ्थ क्लास में ही बढ़िया करते हुए जिला स्तरीय फाइनल तक पहुंची थीं लेकिन तुम्हारे मुकाबले तुमसे दोगुनी उम्र,कद काठी की लड़की को देखकर मैंने उसे वॉक ओवर दिला दिया था जबकि हमें पता था कि तुम उसे भी जबरदस्त चुनौती देती…लेकिन मम्मी पापा का दिल तो कोमल है। हमारी फूल सी राजनंदिनी को महज एक पदक के लिए हम मारपीट करते कैसे देख सकते थे..फिर हमने तुम्हारे रजत पदक का गोल्डन जश्न दिल्ली के अंतरिक्ष रेस्त्रां में मनाया था..वही जो देश का पहला घूमता हुआ होटल था और शायद वहां फिल्म नसीब की शूटिंग भी हुई थी।
तुमने शुरू से ही कैप्टन और एक सुलझे हुए एडमिनिस्ट्रेटर के गुण दिखाएं हैं जो आज तक कायम हैं। जब दिल्ली के मयूर पब्लिक स्कूल में शायद थर्ड क्लास में ही तुमने एनुअल डे सेलिब्रेशन की जबरदस्त एंकरिंग कर जमकर तालियां और टीचर्स की सराहना बटोरी थी तो हमारी आंखों में आंसू आ गए थे..खुशी के आंसू। शायद, तुम्हारी मम्मी तुम्हें यूं ही रेडियो/आकाशवाणी नहीं कहती ..तुम्हारी दिन भर की चटर पटर ने ही तुम्हें बड़े स्टेज पर बेझिझक संचालन का हौंसला दिया। और ये भी क्या सुखद संयोग है कि आकाशवाणी नाम तुम्हारा पड़ा और बाद में काम मुझे करना पड़ा। वैसे, बुआ लोगों ने भी बुलबुल नाम सोच समझकर ही रखा होगा।
तुम हमारी हिम्मत और हौंसला हो। याद है, जब दिल्ली से असम के अंजान और दूरदराज़ के क्षेत्र सिलचर में मेरा ट्रांसफर हुआ तो मुझे सबसे बड़ी चिंता यही थी कि अब हमारी बुलबुल के दोस्त छूट जाएंगे और उसका बचपना कुम्हला न जाए परन्तु तुमने कहा कि पापा, चिंता मत करो, मैं एक हफ्ते में दोस्त बना लूंगी और तुम्हारे इस एक वाक्य ने इतनी हिम्मत दी कि हम करीब पांच साल वहां रह गए और वहां से कई परिवार, दोस्तों और शुभचिंतकों का पूरा काफिला लेकर लौटे।
एक सच्ची बात बताएं बेटा..हम लाख हिम्मत, दिलेरी और मजबूती दिखाएं लेकिन सच यह है कि जब भी तुम घर से/हमसे दूर जाती हो तो कलेजे में हूक सी उठती है,दिल बैठ जाता है और मन उदास..पर,हम तुम्हारी उड़ान नहीं रोकना चाहते इसलिए तुम्हारे पंख लगातार मजबूत करते जाते हैं..फिर चाहे तुम्हारा भोपाल से बाहर पिकनिक पर जाना हो, दिल्ली की मशहूर ताजमहल होटल में प्रोफेशनल ट्रेनिंग हो या बीकानेरवाला में कैंपस सिलेक्शन हो या फिर ताज ग्रुप ज्वाइन करना हो..कुछ मन में अटकता तो जरूर है।
अब तुम पच्चीस की हो गई हो तो कुछ बातें भी नियत हैं कि तुम्हें एक दिन तो किसी दूसरे परिवार की पूनम बनना है इसलिए हमें यह डर तो लगता है कि हमारी नासमझ सी, भोली सी और भावुक सी बिटिया एक दिन दूर चली जाएगी और कैसे संभालेगी सब कुछ..फिर तुम्हारी मम्मी आश्वस्त होकर कहती हैं कि वो सब सम्भाल लेगी जैसे नौकरी में इंडिपेंडेंट है बिल्कुल वैसे ही हर दायित्व बेहतरीन तरीके से पूरा करेगी। मम्मी का भरोसा मुझे भी हौंसला देता है।
बहुत सारे किस्से हैं, बातें हैं, यादें हैं..तुम्हारा पहली बार स्कूल जाना,बीमार पड़ी तो अस्पताल में हमारा रात गुजारना, तुम्हारा क्लास में नाम बहुत पीछे आने के कारण संस्कृति से बदलकर आद्या करना,पहली बार खाना बनाना, वो हरी मिर्च की सब्जी, पनीर की खीर, बिना बेसन की कढ़ी, हमारी एनिवर्सरी पर खाना बनाते हुए तुम्हारा जल जाना और फिर भी अपना दर्द भूलकर बिना रुके पूरा खाना बनाकर सेलीब्रेट करना, तुम्हारे साथ ताजमहल जैसे होटल की पहली बार यात्रा, बारहवीं की परीक्षा शानदार अंकों के साथ पास करने के बाद नेशनल फुट वेयर डिजाइन इंस्टीट्यूट से लेकर सिंबायोसिस और आईएचएम जैसे नेशनल एक्जाम एक ही बार में निकालकर सभी जगह एडमिशन के झंडे गाड़ना…लिस्ट लंबी है।
आज तुम पच्चीस की हो गई हो और खूब समझदार भी । अब तुम अच्छे से जानती हो कि ज़िंदगी कितनी सहज एवं निष्ठुर हो सकती है। कौन तुम्हारा भला चाहता है और कौन बुरा..समाज में कैसे लोगों का बहुमत है। तुमने लड़ना भी सीख लिया है और जीतना भी । तुमने खोया भी, और फिर उससे ज्यादा पाया भी है। पर एक बात नहीं बदली और न कभी बदलेगी—जब भी तुम मुश्किल में होती हो या उपलब्धियों के साथ, तुम्हारी आँखें हमें ही ढूँढती हैं। बस हमारे लिए यही काफी है, तुम्हारा यह लगाव पूरी दुनिया जीत लेने की ताकत बन जाता है। अब तुम्हें कुछ सिखाने की जरूरत नहीं है बल्कि अब तो तुमसे सीखना है ।
फिर भी, हम इतना कहना चाहते हैं—जब भी थकोगी, तो हमारे कंधे तुम्हारे लिए उतने ही मज़बूत बने रहेंगे जैसे बचपन में तुम्हें कंधों पर बिठाकर घुमाया करते थे। जब भी रोना चाहोगी (आंसू खुशी में भी आते हैं), तो मेरी शर्ट और मम्मी का आंचल अभी भी उतनी ही मुलायम है। जब भी डर लगेगा, हम मजबूती से तुम्हारे पीछे खड़े हैं.. और जब भी खुश होना चाहोगी, हमारी हँसी तुम्हारी खिलखिलाहट को और बढ़ा देगी। हमारी प्रिय बिटिया रानी, तुम हमारे लिए वो कीमती किताब हो जिसे हम बार-बार पढ़ना तथा सहेजना चाहते हैं । तुम हमारा वो प्रिय गीत हो जिसे हम सदैव गुनगुनाना चाहते हैं । तुम हमारी लिए वो दुआ हो जिसे हम हर प्रार्थना, हर पूजा, हर साँस में माँगते हैं ।
❤️ पच्चीसवाँ जन्मदिन मुबारक हो,
हमारी राजदुलारी..लवली प्रिंसेस ❤️
सदैव तुम्हारे पीछे मौजूद
मम्मी पापा

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