शिमला से क्यों रूठा है रूमानियत का रहबर

 


शिमला में दिलकश मौसम के कारण मॉल रोड इन दिनों प्रेमी जोड़ों और नव युगलों की रूमानियत में सराबोर है। देश भर से हनीमून मनाने के लिए शिमला पहुंचने वाले जोड़ों की संख्या रोज बढ़ रही है लेकिन अपने अद्भुत रंग,कलेवर एवं पतझड़ से पूरे वातावरण में रोमांस बिखेरने वाले चिनार पर इस रूमानियत का कोई असर नजर नहीं आ रहा। यश चोपड़ा से लेकर कई फिल्म निर्माताओं ने अपनी फिल्मों में चिनार के पीले,गुलाबी और दहकते सौंदर्य का इस्तेमाल कर जबरदस्त रोमांस दर्शाया है। शिमला में चिनार की इस बेरुखी की वजह से युवा न तो शाहरुख खान की तरह बांहे फैलाकर अपनी ‘सेनोरिटा’ को लुभा पा रहे हैं और न ही उनकी ‘बंदी’ चिनार के खूबसूरत पत्तों से इज़हार-ए-लव कर पा रही हैं।

रूमानियत के प्रतीक चिनार को पता नहीं क्यों शिमला की वादियां अब तक रास नहीं आ रहीं। कश्मीर की वादियों में तो यह अपने मनभावन रंग भरपूर बिखेरता है। एक एक पत्ता प्रेम,प्यार एवं रोमांस की पूरी कहानी का साक्षी बन जाता है लेकिन शिमला में चिनार के पेड़ न तो आतिश ए चिनार रच पा रहे हैं और न ही हरुद जैसा कुछ यहां नजर आ रहा है। गौरतलब है कि कश्मीर में चिनार के पेड़ों के पतझड़ के मौसम को हरुद कहते हैं। जब पत्ते हरे से लाल, नारंगी और पीले रंग में बदल जाते हैं, तो इस खूबसूरत दृश्य को आतिश चिनार भी कहा जाता है। 


आतिश चिनार का अर्थ है जब चिनार के पत्ते आग की तरह लाल हो जाते हैं।  इस दृश्य को यहां आतिश चिनार कहा जाता है, जिसका मतलब है-आग वाले चिनार या आग उगलते चिनार। परंतु, शिमला में आतिश चिनार तो दूर..पत्ते हरे से सीधे सूखे पत्ते में बदलकर कोई आकर्षण पैदा नहीं कर पा रहे। वैसे, आतिशे–चिनार उर्दू भाषा के विख्यात साहित्यकार शेख़ मुहम्मद अब्दुल्ला द्वारा रचित एक आत्मकथा है जिसके लिये उन्हें सन् 1988 में उर्दू भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

ऐसा नहीं है कि शिमला में लगाए गए चिनार के पेड़ों में पतझड़ नहीं हो रहा..बल्कि यहां भी भरपूर पतझड़ हो रहा  है, लेकिन यह कश्मीर की तरह मनमोहक नहीं है। खासतौर पर रिज पर लगे चिनार के पेड़ पतझड़ में आम पेड़ों की तरह ही नजर आ रहे हैं। इनके पत्ते बिना रंग बदले सूखते हैं,सिकुड़ते हैं और फिर झड़ जाते हैं जबकि कश्मीर में चिनार के पतझड़ की खूबसूरती इसके पत्तों के रंग बदलने पर ही विशेष रूप से केंद्रित है । 


इस बारे में जानकारों का कहना गए कि कश्मीर और शिमला में चिनार अलग-अलग वातावरण में उगाए गए हैं, और जलवायु में अंतर के कारण रंग और झड़ने की प्रक्रिया अलग हो सकती है।  शिमला का मौसम कश्मीर की तुलना में थोड़ा अलग है, खासकर दिन और रात के तापमान में। चिनार के पेड़ मौसम के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं और बदलते तापमान और आर्द्रता के कारण वे अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। यहां भी चिनार के पेड़ों की पत्तियां पतझड़ में रंग बदलती हैं, लेकिन यह प्रक्रिया कश्मीर की तरह खूबसूरत एवं बड़े पैमाने पर नहीं होती है।

हालांकि अब जलवायु परिवर्तन के कारण कश्मीर में भी तापमान बढ़ रहा है, जिससे चिनार के संवेदनशील पेड़ परंपरागत स्वभाव के अनुरूप व्यवहार नहीं कर पा रहे हैं। शायद, यही वजह है कि शिमला में लगाए गए चिनार के पेड़ों में भी पतझड़ तो होता है, लेकिन जलवायु में भिन्नता के कारण यह प्रक्रिया कश्मीर से अलग होती है। वैसे भी, चिनार शिमला या हिमाचल प्रदेश का मूल निवासी नहीं है इसलिए यह अब तक देवदार, ओक, चीड़ और बुरांस के साथ दोस्ती नहीं कर पाया है। हो सकता है उसे अपनी मूल जमीन से यह अलगाव पसंद नहीं आया हो। हालांकि, चिनार मूल रूप से कश्मीर का भी नहीं है। बताया जाता है कि 14 वीं शताब्दी में यह फारस से यात्रियों के साथ कश्मीर आया और धीरे धीरे यहां की आवोहवा में ढल गया। अब तो स्थिति यह है कि चिनार कश्मीर का एक प्रतिष्ठित प्रतीक बन गया है और ऐसा लगता है जैसे कश्मीर और चिनार एक दूसरे के लिए ही बने हैं।

जहां तक शिमला से चिनार के संबंधों की बात है तो बताया जाता है कि कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने शिमला को चिनार के पाँच पेड़ उपहार में दिए थे। उस समय इनमें से दो पेड़ रिज (आम बोलचाल में मॉल रोड) पर, दो वाइसरीगल लॉज (अब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान) में और एक यूएस क्लब में लगाए गए थे। खास बात यह है कि सभी पेड़ जीवित हैं और शहर की शोभा बढ़ा रहे हैं। हालाँकि, अब तो शिमला में चिनार के कई पेड़ रिज, माल रोड के पास नव निर्मित पार्क में सहित कई स्थानों पर देखे जा सकते हैं। 

चिनार के शिमला में आगमन को लेकर यह भी बताया जाता है कि इस पेड़ को रिज पर सबसे पहले तत्कालीन बागवानी और कृषि निदेशक एलएस नेगी ने लगाया था । अब शिमला में वन विभाग हर साल बड़ी संख्या में चिनार के पौधे लगा रहा है ताकि वे यहां भी कश्मीर के वातावरण की तरह रच बस जाएं एवं उनकी संख्या में और वृद्धि हो सके । इसलिए हम उम्मीद कर सकते हैं कि जैसे कश्मीर ने चिनार को और चिनार ने कश्मीर को गले लगा लिया, उसी तरह चिनार भविष्य में शिमला सहित हिमाचल को अपना लेंगे..और फिर यहां भी आतिश-ए-चिनार के साथ रूमानियत का की बयार बहेगी ।





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