कहां कण कण में बिखरा है धर्म, कर्म और मोक्ष का ज्ञान..!!
हमें भी इस पुण्य भूमि का स्पर्श करने और यहां कण कण में व्याप्त भगवान श्रीकृष्ण की कृपा को महसूस करने का अवसर मिला। इस दौरान गीता जयंती जैसा विशेष अवसर भी था। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गीता जयंती हर साल मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस बार यह पर्व 1 दिसंबर को मोक्षदा एकादशी के दिन मनाया गया। माना जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। गीता में स्वयं कहा गया है- ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेताः युयुत्सवः’ अर्थात यहाँ धर्म की स्थापना के लिए महान युद्ध हुआ। यह महान ग्रंथ कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग और जीवन के हर पहलू पर गहन मार्गदर्शन देता है इसलिए कुरुक्षेत्र को गीतोपदेश स्थली भी कहा जाता है।
कुरुक्षेत्र में हर साल गीता जयंती पर लगभग एक पखवाड़े तक चलने वाले अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव का आयोजन भी होता है। इसकी औपचारिक शुरुआत 2016 में हुई थी और प्रति वर्ष इस महोत्सव का फलक लगातार व्यापक होता जा रहा है। इस साल यह महोत्सव 25 नवंबर से 5 दिसंबर तक पवित्र ब्रह्म सरोवर परिसर में मनाया जा रहा है। ब्रह्म सरोवर के बारे में कहा जाता है कि सृष्टि के निर्माता ब्रह्माजी ने यही ब्रह्माण्ड की रचना की थी। सूर्यग्रहण के समय यहां स्नान-दान का विशेष महात्म्य है। पितृ तर्पण और श्राद्ध के लिए भी ब्रह्म सरोवर अत्यंत पवित्र माना जाता है।हम मध्यप्रदेश के लोगों के लिए इस साल अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव का खासतौर पर महत्व है क्योंकि मध्य प्रदेश अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2025 का भागीदार राज्य है और यहां हमारे प्रदेश के हस्तशिल्प, कला, कलाकारों, लोक संस्कृति और खानपान की धूम है। वहीं, इंग्लैंड को साझीदार देश घोषित किया गया।
मान्यता के अनुसार कुरुक्षेत्र के ज्योतिसर नामक स्थान पर इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में वर्णित कौरव-पांडव युद्ध के दौरान युद्ध मैदान में विराट स्वरूप के दर्शन देते हुए अर्जुन को गीता के अनमोल वचन सुनाए थे। इसका मतलब यह हुआ कि इसी दिन अत्यंत पवित्र, पूजनीय और अनुकरणीय माने जाने वाले ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ का जन्म हुआ था। कुरुक्षेत्र की इसी भूमि पर एक विशाल वट वृक्ष भी है जिसकी आयु करीब 5 हजार 126 साल बताई जाती है। इसके नीचे प्रतीकात्मक रूप में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन का रथ खड़ा हुआ है। यहीं भगवान श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप को भी दर्शाया गया है।बताया जाता है कि अपनी हिमालय यात्रा के समय आदि गुरु शंकराचार्य ने सर्वप्रथम इस स्थान को चिन्हित किया था। सन् 1850 में महाराजा काश्मीर द्वारा यहाँ पर एक शिव मन्दिर की स्थापना की गई थी। इसके पश्चात् सन 1924 में महाराजा दरभंगा ने यहाँ पर गीता उपदेश के साक्षी वट वृक्ष के चारों ओर एक चबूतरे का निर्माण करवाया था। तीर्थ के इसी महत्व को दृष्टिगत रखते हुए सन् 1967 में कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य द्वारा मुख्य चबूतरे के साथ गीता उपदेश स्थल का निर्माण कराया गया ।
कुरुक्षेत्र के महत्व को अंतरराष्ट्रीय पटल पर और व्यापक बनाने के लिए यहां भगवान श्रीकृष्ण के शंख पाञ्चजन्य से प्रेरित ‘पाञ्चजन्य स्मारक’ की स्थापना भी गई है। इसके अलावा, ‘महाभारत अनुभव केंद्र’ भी बनाया गया है। इस अनुभव केंद्र में महाभारत की गाथा को 3 डी, लाइट एंड साउंड शो और डिजीटल तकनीकी से दिखाया जा रहा है। हम कह सकते हैं कि नई तकनीक की मदद से करीब 3 घंटे के समय और 200 रुपए का मामूली शुल्क देकर हजारों साल पहले हुए 18 दिन लंबे युद्ध को मौजूदा दौर में महसूस किया जा सकता है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 25 नवंबर को इन नई सुविधाओं का शुभारंभ किया है।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि कुरुक्षेत्र केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि भारतीय चेतना का प्रतीक है जहाँ धर्म, कर्म, ज्ञान और मोक्ष की शिक्षा दी गई। इसलिए कुरुक्षेत्र को भारत का हृदयस्थल और देवभूमि भी कहा जाता है।
#कुरुक्षेत्र #kurukshetra #GeetaJayanti #गीता #mahabharat #ShriKrishna #श्रीकृष्ण #महाभारत @highlight



टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें