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हंगामा है क्यों बरपा..शादी ही तो की है!!

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गुलाम अली की यह एक लोकप्रिय ग़ज़ल है- ‘हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है, डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है।’ अकबर इलाहाबादी की लिखी इस ग़ज़ल का मतलब है- ‘ जरा सी बात पर बेवजह शोर क्यों मचा है, क्यों हंगामा कर रहे हैं।’ इस ग़ज़ल का उल्लेख इसलिए क्योंकि कुछ इसी तरह के हंगामे की स्थिति देश के सोशल मीडिया और मीडिया की ‘वायरल प्रवृत्ति’ ने हिमाचल प्रदेश में हुई एक शादी को लेकर बना रखी है। उनके लिए यह शादी किसी अजूबे से कम नहीं है और जब विषय वायरल होने का माद्दा रखता हो तो फिर सोशल मीडिया के वीर कैसे पीछे रह सकते हैं।  दरअसल,हिमाचल प्रदेश में हाटी समुदाय के दो भाइयों द्वारा एक ही लड़की के साथ विवाह करने के मामले ने ऐसा तूल पकड़ा कि देश तो देश, विदेशी मीडिया हाउस भी इसमें दिलचस्पी दिखाने लगे। सामान्य रूप से सामाजिक परंपराओं के लिहाज से यह विवाह अलग और अनूठा भी है लेकिन उस क्षेत्र और समुदाय के लिए सामान्य बात है।  यही वजह है कि जब मीडिया ने उस गांव या समुदाय के लोगों से इस विवाह पर प्रतिक्रिया मांगी तो अधिकतर का यही उत्तर था कि इसमें नई बात क्या है? इनका कहना गलत भी नहीं...

फिल्म शोले में गीत-संगीत: कालजयी विरासत

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भारतीय सिनेमा के इतिहास में कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जो अपनी कहानी, किरदारों और संगीत के दम पर अमर हो जाती हैं। रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित 1975 में रिलीज़ हुई फिल्म शोले ऐसी ही एक कृति है, जिसने न केवल भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी, बल्कि इसके गीत-संगीत ने भी दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी।  शोले का संगीत, जिसे संगीतकार आर.डी. बर्मन और पंचम दा के नाम से लोकप्रिय  राहुल देव बर्मन ने तैयार किया, और जिसके बोल आनंद बख्शी ने लिखे, आज भी उतना ही ताज़ा और प्रासंगिक है, जितना वह अपने समय में था।   शोले का संगीत अपने आप में एक अनूठा मिश्रण है, जिसमें भारतीय और पश्चिमी संगीत का सामंजस्य देखने को मिलता है।  पंचम दा ने इस फिल्म के लिए संगीत रचते समय न केवल कहानी की गहराई को समझा, बल्कि किरदारों की भावनाओं और परिस्थितियों को भी संगीत के माध्यम से जीवंत किया। फिल्म के गीत विविधता से भरे हैं—कभी रोमांटिक, कभी हास्यपूर्ण, कभी भावनात्मक, और कभी उत्साहवर्धक।   फिल्म का सबसे मशहूर गीत "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे" दोस्ती की भावना को इस तरह व्यक्त करता है कि यह आज...

'वर्क फ्रॉम होम' से रचा इतिहास और लिख दी भरोसे की नई इबारत

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आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग के राज्य संवाददाता के तौर पर हमारे पास नेशनल न्यूज़ रुम से केवल खबरों और वॉयस ओवर के लिए ही फोन आते हैं लेकिन यदि आकाशवाणी समाचार की प्रमुख महानिदेशक का फोन आए तो चौंकना लाज़िमी है और संदेशा भी ऐसा कि ‘आप तत्काल प्रभाव से प्रादेशिक समाचार एकांश (आरएनयू), भोपाल का प्रसारण 14 दिन के लिए बंद कर दिए दीजिए और अपनी पूरी टीम के साथ क्वारंटाइन हो जाइए.....’। वैसे तो किसी भी कार्यालय और कर्मचारियों के लिए बिन मांगे एक पखवाड़े की छुट्टी मिलना लाटरी निकलने जैसा था लेकिन हुआ उल्टा....हमारे न्यूज़ रूम में मुर्दैनी सी छा गयी,सभी के चेहरे लटक गए और मुझे लगा कि ज्यादा बात की तो दिन रात धुंआधार समाचार बनाने-टाइप करने-पढने वाली हमारी टीम के कई सदस्य रो पड़ेंगे...। आखिर जब प्रदेश के लोगों को सबसे ज्यादा हमारी और आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले विश्वसनीय समाचारों की जरूरत थी तब यदि हम चुपचाप घर बैठ जाएँ तो ये हमारे काम और सबसे ज्यादा हमारे साथ सालों से जुड़े श्रोताओं के साथ नाइंसाफी होगी और एक तरह का धोखा होगा।  मैंने जून 2018 में भोपाल में राज्य संवाददाता के साथ साथ एकांश प्...

जब सैनिकों के सम्मान में बाहर ही उतार दी चप्पल…!!

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वीर सैनिकों के लिए आयोजित कार्यक्रम में जब एक महिला चप्पल बाहर उतारकर शामिल हुई तो कार्यक्रम में मौजूद आम लोगों के साथ सैन्य अधिकारी भी आश्चर्यचकित रह गए। सैनिकों के प्रति इतनी अटूट श्रद्धा का भाव आजकल कम ही देखने को मिलता है कि उनके सम्मान समारोह को मंदिर की तरह पवित्र भाव से महसूस किया जाए। सनातनी परंपरा में तो मंदिर के बाहर ही जूते चप्पल उतारकर अंदर जाया जाता है लेकिन सैनिकों के सम्मान में चप्पल बाहर उतारकर आना वाकई हतप्रभ करने वाला मामला था।    दरअसल, कारगिल युद्ध की वर्षगांठ और इस दौरान हुए आपरेशन विजय में हिस्सा लेने वाले पूर्व सैनिकों के सम्मान में हिमाचल प्रदेश में सैन्य प्रशिक्षण कमान, शिमला ने मशहूर रिज (मॉल रोड) पर कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में एक महिला के चप्पल बाहर उतारकर आने ने सभी का ध्यान खींच लिया। सभागार की व्यवस्था सम्भाल रहे सैनिकों ने उनसे चप्पल पहने रहने का आग्रह किया लेकिन वे तैयार नहीं हुई। दो से तीन बार अनुरोध के बाद ही उस महिला ने चप्पल पहनी।  यह महज एक वाकया नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश में सैनिकों के प्रति आदर भाव का उदाहरण है। और इत...

केसरिया बालम, आओ नी..पधारो म्हारे देश..!!

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शाम का वक्त है, क्वीन ऑफ हिल्स शिमला में दिन भर के बाद थका मांदा सूरज पहाड़ों की चोटियों के पीछे छिपकर आराम करने को बेताब है और यही वह वक्त है जब प्रकृति अपना सबसे अनोखा जादू बिखेर रही है। शिमला और शायद सभी पहाड़ों में सांझ का आलम कुछ ऐसा होता है, मानो आकाश ने सिंदूरी रंग का कंबल ओढ़ लिया हो। लाल, केसरिया और गुलाबी रंगों के मेल से प्रकृति का चितेरा आसमान में एक ऐसी मनमोहक तस्वीर रचता है कि हम बस अचंभित से देखते रह जाते हैं । यह खूबसूरत नजारा केवल आंखों को सुकून नहीं देता, बल्कि दिल को भी शांति और ठहराव का अहसास कराता है। ऐसा लगता है जैसे ‘सूरज हुआ मद्धम, चांद जलने लगा..’, ‘केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश..’, ‘आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिंदूरी, मेरे मन को महकाए तेरे मन की कस्तूरी..’, ‘सुरमई शाम इस तरह आए सांस लेते हैं जिसतरह साए..’, ‘वो शाम कुछ अजीब थी..’, ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुल्हन बदन चुराए..’ जैसे पुराने लोकप्रिय गीतों से लेकर नए दौर का ‘शाम गुलाबी, सहर गुलाबी पहर गुलाबी है, गुलाबी ये शहर..’ जैसे तमाम गाने गीतकारों ने किसी पहाड़ी शहर में बैठकर ही लिखे होंगे क्यो...

ये चमक, ये दमक, फूलवन में महक, सब कुछ सरकार तुम्हई से है..।

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यह उन दिनों की बात है…90 का दशक था और हम मध्यप्रदेश के संस्कारधानी के नाम से मशहूर जबलपुर शहर के नामी शासकीय मॉडल विज्ञान कॉलेज से फूल पत्तियों से जुड़े विषय वनस्पति विज्ञान (बॉटनी) में एमएससी की अंतिम परीक्षा देकर बनी बनाई लकीर पर चलते हुए एम फिल और फिर  पीएचडी के सपने बुन रहे थे। सब कुछ ठीक था, अंक भी अच्छे थे,विषय भी और वातावरण भी अनुकूल था लेकिन फिर भी मन में एक बेचैनी थी..मन कुछ और करना चाहता था..कुछ लीक से हटकर। लेकिन पता नहीं था कि क्या और कैसे?   तभी अचानक एक दिन अखबार में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता संस्थान का विज्ञापन प्रकाशित हुआ। आज के विद्यार्थियों के लिए संस्थान शब्द अचरज लग सकता है क्योंकि उनके लिए तो यह विश्वविद्यालय है। वे भी सही हैं और हम भी क्योंकि उन दिनों यह संस्थान ही था, विश्वविद्यालय बाद में बना।  खैर, इस विज्ञापन में जनसंपर्क और पत्रकारिता के दो पाठ्यक्रमों के लिए 20-20 सीटों पर देश भर से आवेदन आमंत्रित किए गए थे । पहली बात तो यह है कि यह प्रदेश में अपनी तरह का पहला संस्थान था और दूसरा इसमें जनसंपर्क जैसा बिल्कुल नया पाठ्यक्रम प्रस...

सायोनारा भोपाल…अल्पविराम के बाद फिर रचेंगे किस्सों का नया संसार!!

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मेरे लिए भी यह बहुत ही भावुक और खास पल हैं। जिस शहर में पत्रकारिता का ककहरा सीखा, जहां ‘जब हम जवां होंगे..’ से ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे.. ‘ मार्का दिन गुजारे..उसे कैसे छोड़कर जा सकते हैं?   जहां दोस्ती और रिश्तों को सतत संवाद के साथ बुना-गढ़ा और निरंतर मुलाकात की खाद-पानी से जीवंत बनाए रखा..उस शहर एवं वहां बने रिश्तों के ताने बाने से बाहर निकलना आसान कैसे हो सकता है ?   भोपाल ने पहली नौकरी से लेकर नौकरी की अंतिम पंचवर्षीय पारी के पहले तक फ्रंट फुट पर खुलकर बल्लेबाजी करने का मौका दिया …उस महबूब शहर भोपाल से फिर कुछ साल दूर जाना वाकई मुश्किल है।  दरअसल, नौकरी की अपनी सीमाएं, दुश्वारियां, परिवार की जरूरत और शहर से प्यार के बीच के उलझे धागों को सुलझाना आसान नहीं है । शहर और परिवार में से किसी एक को चुनना तो और भी जटिल था..काफी सोच विचारकर मैंने परिवार चुना और शायद कोई भी भावनात्मक व्यक्ति यही करता।  वैसे भी, शहर तो स्थायी है,कायम है ही अपनी जगह पर,लेकिन परिवार के सदस्यों की जरूरत समय के साथ घटती बढ़ती रहती है और जब बात इकलौती बिटिया के स्नेह एवं साथ की हो तो...

शिमला: प्रेम की कविता सा अहसास

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‘क्वीन ऑफ हिल्स’ के नाम से विख्यात शिमला इन दिनों घनी धुंध और अल्हड़ बादलों की एक अलौकिक चादर में लिपटी हुई है, मानो प्रकृति ने इस पहाड़ी नगर को अपने रोमांटिक रहस्य में छिपा लिया हो। ऐसा लगता है जैसे स्वप्नदर्शी निर्देशक राज कपूर ने अपनी फिल्म राम तेरी गंगा मैली का लोकप्रिय गीत कोहरे की चादर लपेटे हूं.. इसी शहर से प्रेरित होकर फिल्माया था। यहां की यह अनूठी सुंदरता पर्यटकों और इस स्वनिल आभाष से अनजान हम जैसे लोगों को एक अलग ही दुनिया का अहसास कराती है। शहर की ढलान वाली सड़कों पर बने घरों की लाल और हरी छतें कोहरे की सफेद परतों से ढककर दूर से देखने पर किसी काल्पनिक चित्र की तरह प्रतीत होती हैं। ये घर, पुराने औपनिवेशिक आकर्षण के साथ, कोहरे में तैरते हुए एक ऐसी शांति और गहराई पैदा करते हैं, जो  सीधे दिल को छू जाती है। हवा में फैली हल्की ठंडक और नटखट बादलों से जन्म लेती रिमझिम फुहारें चेहरे को हौले से छूकर हनीमून के लिए आए प्रेमियों के लिए रोमांटिक माहौल रच देती हैं । रिज पर चर्च के सामने दिन भर हाथों में हाथ डाले प्रेमी जोड़े जमा रहते हैं। उनके पीछे शिमला का मशहूर चर्च कोहरे से ढका हुआ ...

स्वर्ण जयंती अंदाज कुछ इस तरह का हो !!

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आज 10 जुलाई 2025 को मनीषा जी का 50वां जन्मदिन है..स्वर्ण जयंती वर्ष..जीवन की साझा स्वर्णिम यादों का साल और हमारे रजत जयंती साथ का सुनहरा अध्याय। मनीषा जी सिर्फ मेरी पत्नी ही नहीं, बल्कि हमारे परिवार की धुरी हैं, उन्होंने प्यार, त्याग और समर्पण से हमारे घर को स्वर्ग बनाया है। यह दिन केवल उम्र का उत्सव नहीं, बल्कि मनीषा जी के अनमोल योगदान का सम्मान है। मनीषा जी मेरे जीवन की वह रोशनी हैं, जिन्होंने हर अंधेरे को दूर किया। आधी सदी का यह सफर एक अनमोल तोहफा है। तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारी हिम्मत, और तुम्हारा अटूट प्यार हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहा है। तुम्हारी छोटी-छोटी बातें—सुबह की चाय में तुम्हारा प्यार, खाने में मिठास, पल पल का साथ, कठिन दिनों में तुम्हारा धैर्य और हर खुशी में तुम्हारा साथ—ये सब मेरे जीवन की सबसे अनमोल यादें हैं। तुमने मेरे साथ हर चुनौती को मुस्कुराते हुए अपनाया है। इन 50 वर्षों में मनीषा जी ने हर भूमिका—माँ, पत्नी, बहू, और दोस्त—को इतने प्यार और जिम्मेदारी से निभाया कि हम सभी कायल हैं। इनकी हंसी बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाती है, और धैर्य मुश्किल वक्त में हिम्मत देता है। ह...

न्यूजरूम परिवार के नाम एक पाती

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  मेरे न्यूजरूम परिवार के सभी प्रिय सदस्यों, सभी को नमस्कार मजरूह सुल्तानपुरी  मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया आज मेरे लिए एक ऐसा क्षण है, जो मन में मिश्रित भावनाओं का तूफान लिए हुए है—खुशी, गर्व, और कहीं न कहीं एक हल्की-सी उदासी। सात साल पहले जब मैंने इस दफ्तर में कदम रखा था, तब यह स्थान मेरे लिए सिर्फ एक कार्यस्थल था। लेकिन आप सभी ने इसे मेरे लिए एक घर बना दिया, एक ऐसा परिवार जहाँ हर दिन नई सीख, हँसी, और अपनत्व का एहसास हुआ। आज, जब मैं ट्रांसफर के साथ एक नए सफर की ओर बढ़ रहा हूँ, तो यह विदाई मेरे लिए उतनी ही मुश्किल है, जितनी किसी अपने को अलविदा कहना। इन सात सालों में हमने मिलकर अनगिनत चुनौतियों का सामना किया। चाहे वो डेडलाइन का दबाव हो, प्रोजेक्ट्स की जटिलताएँ हों, या फिर नई योजनाओं को आकार देना हो—आप सभी का साथ मेरे लिए एक ढाल की तरह रहा। कॉफी ब्रेक में की गई हल्की-फुल्की बातें, लंच टाइम की वो छोटी-छोटी कहानियाँ, और उत्सवों में एक साथ नाचना-गाना—ये वो पल हैं जो मेरे दिल में हमेशा जिंदा रहेंगे। आप में से हर एक ने मुझे कुछ न कुछ सिखाय...

अभिशाप नहीं,सीधे संवाद का सटीक माध्यम है भी सोशल मीडिया

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इन दिनों इलेक्ट्रानिक मीडिया खासकर न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया को खरी-खोटी सुनाना एक फैशन बन गया है. मीडिया की कार्यप्रणाली के बारे में ‘क-ख-ग’ जैसी प्रारंभिक समझ न रखने वाला व्यक्ति भी ज्ञान देने में पीछे नहीं रहता. हालाँकि यह आलोचना कोई एकतरफा भी नहीं है बल्कि टीआरपी/विज्ञापन और कम समय में ज्यादा चर्चित होने की होड़ में कई बार मीडिया भी अपनी सीमाएं लांघता रहता है और निजता और सार्वजनिक जीवन के अंतर तक को भुला देता है. वैसे जन-अभिरुचि की ख़बरों और भ्रष्टाचार को सामने लाने के कारण न्यूज़ चैनल तो फिर भी कई बार तारीफ़ के हक़दार बन जाते हैं लेकिन सोशल मीडिया को तो समय की बर्बादी तथा अफवाहों का गढ़ माना लिया गया है.  आलम यह है कि सोशल मीडिया पर वायरल होते संदेशों के कारण अब ‘वायरल सच’ जैसे कार्यक्रम तक आने लगे हैं  लेकिन, वास्तविक धरातल पर देखें तो न्यू मीडिया के नाम से सुर्खियाँ बटोर रहे  मीडिया के इस नए स्तम्भ का सही ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो यह वरदान बन सकता है. कई बार मुसीबत में फंसे लोगों तक सहायता पहुँचाने में फेसबुक,ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के लोकप्रिय प्लेटफार्म ने गज़ब की त...

बस,चाय पकौड़े की कमी थी..

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ऐसा लगा जैसे प्रकृति अपने पूरे शबाव के साथ हमारे इस्तकबाल के लिए आ गई है। भोपाल से दिल्ली और फिर पंचकूला तक यात्रा सामान्य सी ही रही लेकिन जैसे ही हमने welcome to Himachal Pradesh का बोर्ड पार किया…बादलों के एक युवा उत्साही समूह ने तेज फुहारों के साथ हुलसकर हमारा स्वागत किया बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी नए हवाईजहाज की पहली यात्रा में पानी की फुहारों से वेलकम किया जाता है।  इस दौरान मौसम इतना खुशगवार था कि चाय पकौड़े की कमी खलने लगी। अब प्रकृति भले ही अपने बंधु बांधवों के साथ पूरे मूड में थी लेकिन चलती सड़क पर बारिश के बीच हमारे लिए चाय और पकौड़े बनाने की हिम्मत कौन दिखाता। बारिश ने विराम लिया तो धुंध को चीरकर पहाड़ों और घने पेड़ों ने हमें निहारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फिर धुंध भी छट गई और हमें हिमाचल के असली सौंदर्य से साक्षात्कार  का मौका मिलने लगा। बीच बीच में सड़क किनारे परिवार के साथ भुट्टे और गरमागरम मैगी खाते लोग अपने शहर भोपाल का अहसास करा रहे थे और यह संदेश भी दे रहे थे कि मौसम के अनुकूल खाने के मामले में हम सब एक हैं।  सड़क के बीचों बीच निडर होकर इठलाते कनेर और बो...

परंपराएं तोड़कर बदलाव की अंगड़ाई लेता रेडियो

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कल्पना कीजिए कि आप रेडियो पर फरमाइशी गीत जैसा कोई कार्यक्रम सुन रहे हैं और अपने फिल्म नदिया के पार का कौन दिशा में ले के चला रे गीत सुनाने का अनुरोध किया है। जैसे ही गीत शुरू होता है आपके मोबाइल या रेडियो सेट पर इस गाने के दृश्य भी दिखाई देने लगें। इसी तरह, आप रेडियो पर समाचार सुन रहे हैं और एकाएक न्यूज रीडर की जानी पहचानी आवाज़ के साथ उसका चेहरा भी दिखने लगे…आश्चर्य हो रहा है न!! तो इस अचंभे के लिए तैयार रहिए क्योंकि जल्दी ही नए जमाने का यह रेडियो आपके जीवन का हिस्सा बनने वाला है। इसे फिलहाल विजुअल रेडियो नाम दिया गया है। विजुअल रेडियो वास्तव में रेडियो प्रसारण का भविष्य है, जो ऑडियो और विजुअल अनुभव को एक साथ लाता है।  विजुअल रेडियो में एक आधुनिक प्रसारण तकनीक है जो पारंपरिक रेडियो की ऑडियो सामग्री को दृश्य तत्वों (विजुअल्स) के साथ जोड़ती है। इसमें रेडियो प्रसारण के साथ-साथ चित्र, वीडियो, ग्राफिक्स, टेक्स्ट, और अन्य मल्टीमीडिया सामग्री को एकीकृत किया जाता है, जिसे श्रोता रेडियो सेट, मोबाइल ऐप, या इंटरनेट के माध्यम से सुनने के साथ साथ रेडियो प्रसारण को देख भी सकते हैं। इसको हम प्रध...

शिमला में स्कैंडल पॉइंट!! क्या है असल माजरा

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पर्यटन स्थल में स्कैंडल प्वाइंट…पर्यटन स्थलों या नामचीन शहरों में सन सेट प्वाइंट, माउंटेन व्यू, लेक व्यू और सुसाइड प्वाइंट जैसे नाम तो हम सभी ने आमतौर पर सुने हैं और ये हमेशा ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहते हैं लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के सबसे लोकप्रिय स्थान का नाम स्कैंडल प्वाइंट भी हो सकता है? हिमाचल प्रदेश ही नहीं देश दुनिया के सबसे चर्चित पर्यटन स्थल शिमला में पर्यटकों के सर्वाधिक आकर्षण की केंद्र मॉल रोड (स्थानीय लोगों के लिए केवल मॉल) पर स्थित है यह स्कैंडल प्वाइंट। मौजूदा दौर में यह मॉल रोड के उन चुनिंदा स्थानों में से एक है जहां सबसे ज्यादा संख्या में लोग जुटते हैं और ठंड के दिनों में धूप तापते हैं। पर्यटकों की सुविधा के लिए प्रशासन ने यहां भरपूर मात्रा में बेंच भी लगाई हुई हैं ताकि वे आराम से बैठ सकें। जैसा कि हम सभी जानते है कि शिमला, हिमाचल प्रदेश की राजधानी के साथ साथ भारत का एक प्रमुख हिल स्टेशन भी है। यह अपने औपनिवेशिक आकर्षण और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए खास तौर पर प्रसिद्ध है। शिमला के केंद्र में स्थित माल रोड को शहर की धड़कन माना...