ये नहीं प्यारे कोई मामूली अंडा..!!
‘आओ सिखाऊँ तुम्हें, अंडे का फंडा इसमें छिपा है जीवन का फलसफ़ा अंडे में अंडा,फंडे में फंडा…।’ फिल्म ‘जोड़ी नंबर-एक’ का यह गाना भले ही मनोरंजन के लिए हो लेकिन अंडों में वाकई जीवन का फलसफा छिपा होता है और यदि वह अंडा ‘संडे हो या मंडे, रोज खाएं अंडे’ विज्ञापन वाला या हमारे राज्य की शान ‘कड़कनाथ’ का न होकर दुनिया के सबसे बड़े और शायद सबसे खतरनाक डायनासोर का हो तो सारा स्वाद धरा रह जाएगा। डायनासोर तो अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनके अंडे जरूर इतिहास से वर्तमान को जोड़ने की अहम कड़ी हैं। अब करोड़ों साल पहले पाए जाने वाले डायनासोर के अंडे कोई समोसा या ब्रेड पकौड़ा तो हैं नहीं कि कहीं भी मिल जाएंगे। सबसे पहले तो इन अंडों का मिलना और फिर इतने साल बाद देखने का अवसर मिलना वाकई प्रकृति और विज्ञान के समन्वय के चमत्कार से कम नहीं है। वैसे, व्यंग्यात्मक अंदाज में कहें तो असल डायनासोर भले ही नहीं बचे लेकिन इंसानों के भेष में डायनासोर लगातार बढ़ रहे हैं। इनमें से कोई अरबों रुपए खा जाता है तो कोई सोना निगलने-उगलने लगता है। खैर, मूल विषय पर लौटते हैं…हाल ही भोपाल में अंतरराष्ट्रीय वन ...