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ये नहीं प्यारे कोई मामूली अंडा..!!

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  ‘आओ सिखाऊँ तुम्हें, अंडे का फंडा इसमें छिपा है जीवन का फलसफ़ा अंडे में अंडा,फंडे में फंडा…।’ फिल्म ‘जोड़ी नंबर-एक’ का यह गाना भले ही मनोरंजन के लिए हो लेकिन अंडों में वाकई जीवन का फलसफा छिपा होता है और यदि वह अंडा ‘संडे हो या मंडे, रोज खाएं अंडे’ विज्ञापन वाला या हमारे राज्य की शान ‘कड़कनाथ’ का न होकर दुनिया के सबसे बड़े और शायद सबसे खतरनाक डायनासोर का हो तो सारा स्वाद धरा रह जाएगा।  डायनासोर तो अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनके अंडे जरूर इतिहास से वर्तमान को जोड़ने की अहम कड़ी हैं। अब करोड़ों साल पहले पाए जाने वाले डायनासोर के अंडे कोई समोसा या ब्रेड पकौड़ा तो हैं नहीं कि कहीं भी मिल जाएंगे। सबसे पहले तो इन अंडों का मिलना और फिर इतने साल बाद देखने का अवसर मिलना वाकई प्रकृति और विज्ञान के समन्वय के चमत्कार से कम नहीं है। वैसे, व्यंग्यात्मक अंदाज में  कहें तो असल डायनासोर भले ही नहीं बचे लेकिन इंसानों के भेष में डायनासोर लगातार बढ़ रहे हैं। इनमें से कोई अरबों रुपए खा जाता है तो कोई सोना निगलने-उगलने लगता है। खैर, मूल विषय पर लौटते हैं…हाल ही भोपाल में अंतरराष्ट्रीय वन ...

चालीस साल का कलंक है, मिटने में समय तो लगेगा

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जैसे-जैसे कंटेनरों का काफिला धीरे-धीरे भोपाल की सरहद को पार करते हुए आगे बढ़ रहा था वैसे-वैसे भोपाल के लोगों की जान में जान आ रही थी। आखिर, दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंककर पीता है और जब बात हजारों-लाखों परिवारों की तबाही के दर्द की हो तो अतिरिक्त सावधानी तो बनती ही है। इसलिए प्रशासन ने भी सुरक्षा,सतर्कता,सजगता, सावधानी और समझाइश में अधिकतम मानकों का पालन कर अपनी ओर से कोई कमी नहीं रहने दी।  हम बात कर रहे हैं, भोपाल में दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना की जन्मदाता यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में जमा अवशिष्ट या सरल भाषा में कहें तो जहरीले कचरे को यहां से हटाने की । हो सकता है कि दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में कचरे के पहाड़ों के साए में रह रहे लोगों के लिए यह सामान्य कचरा प्रबंधन की कवायद हो या फिर देशव्यापी स्वच्छता मुहिम का एक हिस्सा, लेकिन भोपाल के लोगों के लिए यह 40 साल के डर के बाद चिर परिचित दुश्मन से मिली मुक्ति है, आसन्न मंडराते खौफ से छुटकारा है, नासूर बन गए घाव की मरहम पट्टी है और देश की स्वच्छतम राजधानी के माथे पर लगा कलंक कुछ कम करने जैसी उपलब्धि है।  यूनियन कार्बाइ...

एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग..!!

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हम इंसान भी विचित्र होते हैं। एक चेहरे में कई चेहरे छुपाकर रखते हैं। नए साल में नए विचार और नए संकल्प लेना भी कुछ इसी तरह का मामला होता है । हाल ही में इंदौर के एक नव निर्मित मॉल के प्ले जोन में बने ऐसे कक्ष में जाने का मौका मिला जिसमें मिरर के जरिए एक ही तस्वीर की कई इमेज रची जा रही थीं,तभी यह ख्याल आया कि वास्तविक जीवन में भी हमें कितनी भूमिकाओं का निर्वाह करना पड़ता है और इसके लिए हमें एक चेहरे में कितने चेहरे लगाने पड़ते हैं। फिल्म दाग़ में साहिर लुधियानवी भी कुछ इसी तरह की बात कह चुके हैं। उन्होंने लिखा है: ‘एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग, जब चाहें बना ले अपना किसी को, जब चाहें अपनों को भी,  बेगाना बना देते हैं लोग।’ जैसा कि हम जानते हैं कि एक चेहरे में कई चेहरे छुपे होते हैं…का मतलब है कि एक व्यक्ति का बाहरी रूप या व्यक्तित्व उसके अंदर छिपे कई पहलुओं को पूरी तरह से नहीं दर्शाता। हर इंसान के अंदर एक से अधिक रूप, विचार, भावनाएँ और अनुभव होते हैं, जो समय, स्थिति और परिवेश के साथ बदलते रहते हैं। इसका मतलब यह है कि एक व्यक्ति केवल अपनी बाहरी पहचान के आधार पर नहीं पहचाना जा ...

चलो राम के धाम अयोध्या, राम बुलाते है..!!

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अयोध्या में भगवान राम के भव्य और दिव्य मंदिर के लोकार्पण का 1 साल पूरा होने को है। बीते साल 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मंदिर का लोकार्पण किया था और सैकड़ो साल बाद रामलला अपने घर में ससम्मान प्रतिष्ठित हुए थे। हालांकि, मंदिर का निर्माण अभी पूरा नहीं हो पाया है और कई काम अभी बाकी है लेकिन प्राथमिक तौर पर जो मंदिर की जो भव्यता, वास्तुशिल्प और सुंदरता दिखाई पड़ रही है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब यह मंदिर पूरी तरह से निर्मित हो जाएगा तो शायद इसकी गिनती दुनिया के गिने-चुने मंदिरों में होगी। यहां रामलला के साथ उनके परम भक्त पवन पुत्र हनुमान और सप्त ऋषियों सहित भारतीय पुरातन संस्कृति की पहचान रहे विभिन्न प्रतीकों को कलात्मक रूप में देखने का अवसर मिलेगा। टेंट में मौजूद रहे रामलला और अब मंदिर में विराजमान भगवान श्री राम के इस बदलाव के बीच अयोध्या पूरी तरह से बदल गई है और लगातार संवर रही है। अब अयोध्या अविकसित सा ग्रामीण अंचल न रहकर भगवान राम की भव्यतम राजधानी में बदल रही है। इस लेख के लेखक को पहले और बाद की दोनों ही अयोध्या को करीब से देखने का सौभाग्य मिला है। यही नहीं, म...